संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने कश्मीर पर पाकिस्तान की अनुचित टिप्पणी को खारिज करते हुए जोर दिया कि कश्मीर भारत का हिस्सा है और यहां पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं।…
संयुक्त राष्ट्र की सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक मामलों से संबंधित यूएनजीए समिति में अपने संबोधन में भारत के मयंक जोशी ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में सभी स्तरों पर नियमित रूप से स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुलेआम चुनाव होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र में स्थित पाकिस्तानी मिशन में तैनात एक सलाहकार दियार खान ने कहा कि उनके देश को अफसोस होता है कि जम्मू और कश्मीर के लोगों को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्णय का अधिकार समय बीतने के साथ समाप्त नहीं हो जाता, और न ही आतंकवाद के आरोपों द्वारा इसे खारिज किया जा सकता है।
जोशी ने कश्मीर पर पाकिस्तान के अनुचित बयान को खारिज कर दिया और कहा कि वे तथ्यात्मक रूप से गलत हैं। राज्य में सभी स्तरों पर नियमित रूप से स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुलेआम चुनाव होते हैं।
पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने जवाब में मुद्दे को हवा देते हुए सवाल किया कि नई दिल्ली कश्मीर को भारत का हिस्सा बताता है, जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में कश्मीर को विवादित क्षेत्र माना गया है। कश्मीर में चुनाव पर उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासन द्वारा कराया गया चुनाव संयुक्त राष्ट्र के जनमत संग्रह का विकल्प नहीं हो सकता।
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि कश्मीर में चुनाव अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की निगरानी में कराए गए हैं, जिसने उन चुनावों में कोई गलती नहीं पाई थी। अपने अगले जवाब में पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने दावा किया कि चुनाव विदेशी नियंत्रण में हुए, जो निष्पक्ष नहीं हो सकते।
इसके जवाब में भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि पाकिस्तानी प्रतिनिधि का विदेशी नियंत्रण का संदर्भ अप्रासंगिक है क्योंकि कश्मीर भारत का हिस्सा है।
भारत ने चेताया कि परमाणु आतंकवाद का खतरा वैश्विक समुदाय के लिए चुनौती है। भारत ने स्वतंत्र रूप से परमाणु सामग्री को आतंकवादियों की पहुंच से बचाने के लिए मजबूत राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई का आह्वान किया।
संयुक्त राष्ट्र स्थित भारतीय मिशन में प्रथम सचिव अभिषेक सिंह ने सोमवार को कहा कि परमाणु आतंकवाद का खतरा सबसे अहम चुनौती है जिसका सामना पूरा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कर रहा है।”
उन्होंने कहा, अतिसंवेदनशील परमाणु सामग्री को आतंकियों की पकड़ से दूर रखने के लिए परमाणु सुरक्षा को मजबूत बनाने में जिम्मेदार राष्ट्रीय कार्रवाई और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होगी।
2005 में परमाणु सामग्री की भौतिक सुरक्षा पर समझौता (सीपीपीएनएम) संशोधन लाया गया था, जिसके मुताबिक, परमाणु सुविधाओं और सामग्री का उपयोग करते समय, संग्रहित या लाते-ले जाते समय वह देश परमाणु पदार्थो की सुरक्षा के लिए कानूनी रूप से बाध्य होगा। तस्करी और चोरी के मामलों में इसे दोबारा जब्त करने के लिए इसका दायरा बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी लिया जा सकता है।
इस संशोधन को लागू करने के लिए सम्मेलन में भागीदार 151 देशों में से एक तिहाई देशों की सहमति की जरूरत है, जो केवल 81 देशों की सहमति के कारण लटका हुआ है।