नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर सरकारी नीतियां संकटग्रस्त ग्रामीण की ओर झुकती नजर आएंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की दर नोटबंदी और जीएसटी के सुस्त प्रभावों से उबरते हुए 2018 में सात फीसदी जा सकती है। उद्योग चैंबर एसोचैम ने रविवार को इस बात की जानकारी दी।
औद्योगिक संस्था द्वारा आगामी वर्ष के लिए जारी ‘परिदृश्य’ के मुताबिक, लोकसभा चुनाव से पहले सरकारी नीतियां तनावग्रस्त ग्रामीण परि²श्य की ओर झुकने के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था 2018 में नोटबंदी और जीएसटी को लागू करने से पड़े सुस्त प्रभाव से हुई बाधा के बाद सात फीसदी की दर पर पहुंच जाएगी।
परिदृश्य में कहा गया है कि 2017-2018 की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.3 फीसदी वृद्धि के बावजूद 2018 की सितंबर तिमाही के अंत तक आर्थिक वृद्धि सात फीसदी की महत्वपूर्ण दर को छू लेगी। जबकि अगले साल मानसून के हल्के रहने के साथ दूसरी छमाही तक मंहगाई दर 4.5 से पांच फीसदी के बीच बनी रहेगी।
एसोचैम के अध्यक्ष संदीप जाजोदिया ने कहा कि यह अनुमान सरकारी नीतियों, अच्छे मानसून, औद्योगिक गतिविधियों में तेजी और क्रेडिट वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा दरों में स्थिरता के आधार पर लगाया गया है।
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उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक रूप से कोई बड़ा फेरबदल नहीं होता है तो कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर चिंता कम हो सकती है।
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औद्योगिक संस्था ने कहा कि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनजर राजनीतिक अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र की ओर झुक सकती है, जहां कुछ समय से तनाव देखा जा रहा है।
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एसोचैम को लगता है कि आगामी केंद्रीय बजट किसानों की तरफ झुका होगा, जबकि उद्योग का ध्यान विभिन्न क्षेत्रों पर केंद्रित होगा, जहां रोजगार पैदा होता है।
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