कोलकाता। मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने की घोषणा से जहां एक ओर ईसाइयों में खुशी की लहर है,वहीं चमत्कार के आधार पर मदर को संत की उपाधि दिए जाने को युक्तिवादियों ने सख्त विरोध किया है। युक्तिवादियों का कहना है कि मदर टेरेसा को काल्पनिक चमत्कार के आधार पर संत की उपाधि देना टेरेसा को अपमान करना है।
मदर टेरेसा के चमत्कार को प्रबीर घोष की चुनौती
भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति के अध्यक्ष प्रबीर घोष ने कहा कि ऐसा कहना कि मदर चमत्कारी हैं, पूर्णतया गलत है। उन्होंने दावा कि मोनिका को मदर टेरेसा की मृत्यु के एक साल बाद सिरदर्द और पेटदर्द की शिकायत के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिन डॉक्टरों ने मोनिका बेसरा नाम की इस महिला का इलाज किया था उनका कहना है कि मदर की मृत्यु के कई साल बाद महिला भी वह दर्द सहती रही।
घोष ने कहा कि मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद तक मोनिका बेसरा का इलाज होता रहा था। मदर टेरेसा स्वयं किसी भी चमत्कार में विश्वास नहीं करती थीं। वो झाड़-फूंक, तंत्रमंत्र आदि में विश्वास नहीं मानती थी। टेरेसा जब भी बीमार पड़ती थी तो वे इलाज के लिए अस्पताल जाती थीं। किन्तु बड़ी दुःख की बात है कि मदर टेरेसा को मिथ्या चमत्कारी सबूत के आधार पर रोमन कैथोलिक चर्च के संत की उपाधि दिये जाने की घोषणा की है।
इसका हम युक्तिवादी, तर्कवादी संगत विरोध करते हैं। यदि उन्हें संत की उपाधि ही देनी है तो मदर के मानवसेवा के नाम पर दी जाए। मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रवक्ता सुनीता कुमार और वेटिकन सिटी को चुनौती देते हुए घोष ने कहा कि एक हादसे में उनके बांए कंधे की हड्डी पांच टुकड़े हो गई है। यह एक साल पहले का हादसा है। उन्होंने कहा कि यदि मदर टेरेसा के चमत्कार से उसके कंधे को स्वस्थ कर दिया जाए तो मैं यह स्वीकार कर लूंगा कि मदर को चमत्कारी शक्ति है। क्या पोप प्रबीर घोष की चुनौती का सामना करेंगे?
घोष ने कहा कि इस तरह के दावे हर धर्म में चमत्कारिक संप्रदाय स्थापित करने के लिए किए जाते हैं। जैसे आजकल मदर टेरेसा के नाम पर ईसाई धर्म कर रहा है। यदि मिथ्या दावों और चमत्कारों को आधार पर मदर को संत की उपाधि दी जाती है तो वह उनकी परंपरा के साथ नाइंसाफ़ी होगी। यदि इस तरह के चमत्कारों की कहानियां फैलाई गईं तो गांव-जवार में रहने वाले कम पढ़े लिखे लोग बीमारियों का अस्पताल में इलाज करवाने की बजाए चमत्कारियों को ही सहारा लेेंगे। सिर्फ और सिर्फ अंधविश्वास ही फैलेगा।
मदर टेरेसा को मिलेगी संत की उपाधि
मदर टेरेसा को इस वर्ष 2016 के सितंबर में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। मदर टेरेसा द्वारा कोलकाता में स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रवक्ता सुनीता कुमार ने कहा कि हमें अब वेटिकन से आधिकारिक पुष्टि मिल गई है कि चर्च द्वारा दूसरे चमत्कार की पुष्टि की गई है और मदर को संत की उपाधि दी जाएगी। हमें इसे लेकर बहुत उत्साहित और खुश हैं।
वर्ष 2002 में वेटिकन ने आधिकारिक रूप से एक चमत्कार को स्वीकार किया था जिसके बारे में कहा जाता है कि टेरेसा ने अपने निधन के बाद यह चमत्कार किया। पारंपरिक रूप से संत की उपाधि की प्रकि”या के लिए कम से कम दो चमत्कारों की जरूरत होती है।
टेरेसा के साथ काम कर चुकीं सुनीता ने कहा कि पहला चमत्कार कई साल पहले कोलकाता में हुआ था। अब का मामला ब्राजील का है जहां उनकी पूर्व की प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया है।
मदर टेरेसा एक परिचय
मदर टेरेसा के अनमोल बचनों में से एक हैं, चमत्कार यह नहीं है कि हम यह काम करते हैं, बल्कि यह है की ऐसा करने में हमें ख़ुशी मिलती है। उनका असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। मदर टेरेसा का वर्ष 1910 के 26 अगस्त को जन्म एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, ओटोमन सामराज्य (आज का सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था।
कलकत्ता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना करने वाली मदर टेरेसा का वर्ष 1997 के 5 सितंबर को निधन हो गया था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए।
भारत सरकार ने वर्ष 1962 में पद्मश्री और वर्ष 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था। ग़रीबों और असहायों की सहायता करने के लिए किये गए कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को वर्ष 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार दिया गया था।
मदर टेरेसा मेरे लिए भगवान समान हैं : मोनिका बेसरा
पश्चिम बंगाल के दक्षिणी दिनाजपुर जिले की एक जनजातीय महिला मोनिका बेसरा ने वर्ष 1998 के 5 सितंबर की रात को याद करते हुए कहा कि मैंने जब मदर टेरेसा की तस्वीर की ओर देखा तो मुझे उनकी आंखों से सफेद रोशनी की किरणें आती दिखाई दीं। उसके बाद मैं बेहोश हो गई। अगली सुबह उठने पर ट्यूमर गायब हो गया था।
बेसरा ने कहा कि वह मेरे लिए भगवान समान हैं। यह शुभ समाचार है कि अब उन्हें संत की उपाधि दी जाएगी। वर्ष 2003 के 29 अक्टूबर को तत्कालीन पोप जॉन पॉल द्वितीय ने एक समारोह में मदर टेरेसा को ‘कोलकाता की धन्य टेरेसा’ (बेटिफाइड) घोषित किया था। ‘बीटीफिकेशन’ संत की उपाधि की तरफ पहला कदम होता है।
संत की उपाधि के लिए चमत्कार की जरूरत
संत की उपाधि दिए जाने के लिए दो चमत्कारों की पुष्टि होना जरूरी है। इन चमत्कारों में उस संत की छवि से की गई प्रार्थना द्वारा किसी बीमारी से स्वस्थ्य होना शामिल हैै। वेटिकन की एक समिति इन चमत्कारों की छानबीन करती है। समिति चमत्कारों की पुष्टि कर देती है। उसके बाद पोप वेटिकन के समारोह में संत की उपाधि प्रदान करने की घोषणा करते हैं।