नई दिल्ली। भारत के पहले चन्द्र मिशन चन्द्रयान-1 को नासा के वैज्ञानिकों ने आठ साल बाद नई इंटर प्लानेटरी रेडार तकनीक के माध्यम से खोज निकाला है वह अब भी चांद की जमीन से 200 किमी उपर चक्कर लगा रहा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 28 अक्टूबर 2008 को चन्द्रयान प्रथम को चन्द्रमा पर भेजा था। किसी स्मार्ट कार के मुकाबले आधे आकार के इस यान का संपर्क पृथ्वी से 29 अगस्त 2009 को टूट गया था।
नासा ने चंद्रयान के साथ अपने एक मानवरहित यान लूनर रिकोन्नैस्संस ऑर्बिटर (एलआरओ) को भी खोजा है। नासा के एक वैज्ञानिक मरिना ब्रोजोविक के मुताबिक इसरो चंद्रयान के मुकाबले अमेरिका के यान को खोजना ज्यादा आसान था क्योंकि यह एक्टिव था।
इसरो के मुताबिक चंद्रयान ने चांद की कक्षा में करीब 3400 चक्कर पूरे किए। नासा का कहना है कि पुरानी ऑप्टिकल दूरबीन तकनीक से चंद्रमा की उज्ज्वल चमक में छिपी छोटी वस्तुओं को खोजना बेहद मुश्किल होता है।
हालांकि, इंटरप्लानेटरी रडार की नई तकनीकी से जेट प्रणोदन प्रयोगशाला (जेपीएल) के वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए दो अंतरिक्ष यान खोज लिए हैं।
इंटरप्लानेटरी रडार पृथ्वी से कई लाख मील की दूरी पर छोटे क्षुद्रग्रहों पर निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन शोधकर्ताओं को यह नहीं पता था कि इससे चांद जितनी दूरी पर स्थित छोटे आकार के यान को भी खोजा जा सकता है।