मुंबई। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की नृत्य शैली के कई दीवाने हैं लेकिन खुद बिग बी जिनके दीवाने हैं और जिनकी नृत्य शैली उन्होंने अपनाई, उस अभिनेता को आज की पीढ़ी नहीं जानती है। यह अभिनेता थे पचास के दशक के सुपरस्टार ‘भगवान दादा’।
फिल्म जगत में भगवान दादा के नाम से मशहूर भगवान आभा जी पल्लव से फिल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही। वह ऐसे हंसमुख इंसान थे जिनकी उपस्थिति मात्र से माहौल खुशनुमा हो उठता था। हंसते हंसाते रहने की प्रवृति को उन्होने अपने अभिनय, निर्माण और निर्देशन में खूब बारीकी से उकेरा। उनका यह अंदाज आज भी उनके चहेतों की यादों में तरोताजा है।
भगवान दादा का जन्म 01 अगस्त 1913 को मुंबई में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक मिल वर्कर थे। बचपन के दिनों से भगवान दादा का रूझान फिल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। अपने शुरूआती दौर में भगवान दादा ने श्रमिक के तौर पर काम किया।
भगवान दादा ने अपने फिल्मी करियर के शुरूआती दौर में बतौर अभिनेता मूक फिल्मों में काम किया। इसके साथ ही उन्होंने फिल्म स्टूडियो में रहकर फिल्म निर्माण के तकनीक सीखनी शुरू कर दी। इस बीच उनकी मुलाकात स्टंट फिल्मों के नामी निर्देशक जी.पी.पवार से हुई और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे।
बतौर निर्देशक वर्ष 1938 प्रदर्शित फिल्म बहादुर किसान भगवान दादा के सिने करियर की पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने जी.पी.पवार के साथ मिलकर निर्देशन किया था। इसके बाद भगवान दादा ने राजा गोपीचंद, बदला, सुखी जीवन, बहादुर, दोस्ती जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया लेकिन ये सभी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई।
वर्ष 1942 में भगवान दादा ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और जागृति पिक्चर्स की स्थापना की। इस बीच उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नही पहुंचा। वर्ष 1947 में भगवान दादा ने अपनी खुद की स्टूडियो कंपनी जागृति स्टूडियो की स्थापना की।
भगवान दादा की किस्मत का सितारा वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म अलबेला से चमका। राजकपूर के कहने पर भगवान दादा ने फिल्म अलबेला का निर्माण और निर्देशन किया। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने भगवान दादा को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया।
आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। सी.रामचंद्रन के संगीत निर्देशन में भगवान दादा पर फिल्माये गीत शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के ..उन दिनों युवाओं के बीच क्रेज बन गए थे। इसके अलावा ‘भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे, ‘शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’ भी श्रोतोओं के बीच लोकप्रिय हुए थे।
फिल्म अलबेला की सफलता के बाद भगवान दादा ने झमेला, रंगीला, भला आदमी, शोला जो भड़के, हल्ला गुल्ला जैसी फिल्मों का निर्देशन किया लेकिन ये सारी फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई। हालांकि इस बीच उनकी वर्ष 1956 में प्रदर्शित फिल्म भागम भाग हिट रही। वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म लाबेला बतौर निर्देशक भगवान दादा के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। दुर्भाग्य से इस फिल्म को भी दर्शकों ने बुरी तरह नकार दिया।
फिल्म लाबेला की असफलता के बाद बतौर निर्देशक भगवान दादा ने फिल्मों में काम मिलना बंद कर दिया और बतौर अभिनेता भी उन्हें काम मिलना बंद हो गया। परिवार की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें अपना बंगला और कार बेचकर एक छोटे से चाल में रहने के लिए विवश होना पड़ा।
इसके बाद वह माहौल और फिल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर भगवान दादा चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फिल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे, उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फिल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएं करनी शुरू कर दीं।
बाद में हालात ऐसे हो गए कि भगवान दादा को फिल्मों में काम मिलना पूरी तरह बंद हो गया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम युग के अभिनेता भगवान दादा ने चार फरवरी 2002 को गुमनामी के अंधरे में रहते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।