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भारत की आत्मा बहुलवाद में बसती है : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी - Sabguru News
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भारत की आत्मा बहुलवाद में बसती है : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

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भारत की आत्मा बहुलवाद में बसती है : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
India's soul resides in pluralism says President Pranab Mukherjee in final presidential address
India's soul resides in pluralism says President Pranab Mukherjee in final presidential address
India’s soul resides in pluralism says President Pranab Mukherjee in final presidential address

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद व सहिष्णुता में बसती है और हमें अपने जन संवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।

राष्ट्र को संबोधित अपने विदाई संदेश में उन्होंने कहा कि समावेशी समाज का निर्माण विश्वास का एक विषय होना चाहिए। उन्होंने अहिंसा की शक्ति को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि मैं आपके साथ कुछ सच्चाइयों को साझा करना चाहूंगा, जिन्हें मैंने इस अवधि के दौरान आत्मसात किया है। भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं है।

इसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास शामिल है। सदियों के दौरान, विचारों को आत्मसात करके हमारे समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है। हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है। यह शताब्दियों से हमारी सामूहिक चेतना का अंग रही है।

उन्होंने कहा कि संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता ही भारत को विशेष बनाती है। उन्होंने कहा कि हमें सहिष्णुता से ताकत मिलती है। जन संवाद के विभिन्न पहलू हैं। हम तर्क-वितर्क कर सकते हैं, हम सहमत हो सकते हैं या हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।

मंगलवार को राष्ट्रपति पद से मुक्त होने वाले प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सहृदयता और सहानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नींव है। परंतु प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं।

उन्होंने कहा कि इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है। हमें अपने जन संवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा। एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जाग्रत करना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांधीजी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां आबादी का प्रत्येक वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। वह चाहते थे कि हमारे लोग एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यो की दिशा में आगे बढ़ें।

उन्होंने कहा कि वित्तीय समावेशन समतामूलक समाज का प्रमुख आधार है। हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी नीतियों के फायदे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।