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india's strategy to break China's String of Pearls
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‘स्ट्रिंग आफ पर्ल्स को तोडता भारत’

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‘स्ट्रिंग आफ पर्ल्स को तोडता भारत’
india's strategy to break China's String of Pearls
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प्रशान्त झा
अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य में चीन सैन्य महाशक्ति बनने की ओर तेजी से पैर पसार रहा है। दक्षिणी चीन सागर में अन्तराष्ट्रीय जलक्षेत्र में कृतिम द्वीप बनाकर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को उसने और मजबूत कर लिया है इससे इस क्षेत्र में होने वाली व्यापार सहित हर गतिविधी पर वह नजर रख सकता है।

इसी प्रकार चीन ने भारत को घेरने के लिए स्ट्रिंग आफ पर्ल्स की नीति के तहत भारत के पडौसी देशों की जमीन पर पैर विकास और उन्नतीकरण के नाम पर पैर पसारने शुरू कर दिए जिसके अन्तर्गत म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ उसने व्यापार के नाम पर बंदरगाह निर्माण आदि की आड में हिन्दमहासागर में अपनी नौसेनिक गतिविधियां और परमाणु पण्डुब्बी की आवाजाही प्रारम्भ कर दी।

दक्षिणी चीन सागर के देशों में तेल की खोज पर भी उसने भारत को धमकाया था। भारत के बिल्कुल पडौस में पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में सैन्य जमावडे से उसके इरादे स्पष्ट होते हैं।

भारत ने हाल ही में अमरीका से लाजिस्टिक समझौते की ओर कदम बढाते हुए युद्ध जैसे हालात में एक दूसरे के सैन्य ठिकानों के उपयोग का महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर लिया है जिससे भारत को हिन्द महासागर में डियेगो गारशिया एवं अमरीका को अण्डमान निकोबार से युद्ध के दौरान अपने सैनिक साजोसामान के इस्तेमाल का रास्ता साफ हो सकेगा साथ ही अमरीका, जापान और भारत के बीच बढती सैन्य साक्षेदारी व सैन्य अभ्यास अपने आप में एक मजबूत किले बन्दी से कम नहीं है।

भारत दक्षिण चीन सागर के देशों से सैन्य सहयोग बढाते हुए वियतनाम को अत्याधुनिक ब्रहमोस मिसाइल बेच रहा है इसके साथ ही ईरान में चाबहार बन्दरगाह और तजिकिस्तान में भारत द्वारा हवाईअड्डे के विकास की खबरें इस आशय को बल देती हैं।

हिन्द महासागर में चीन की परमाणु पण्डुब्बीयों की बढती गतिविधियों के चलते भारत भी अपने परमाणु और परम्परागत पण्डुब्बी बेडे में तेजी से इजाफा कर रहा है ताकि चीन की चालबाजियों को रोका जा सके। भारत ने हाल ही में स्कार्पियन श्रेणी की पहली पण्डुब्बी कलवरी का जलावतरण किया है और इस श्रेणी की पांच और पण्डुब्बीयां बनाई जानी हैं।

स्वदेश निर्मित पहली परमाणु पण्डुब्बी अरिहन्त ने भी अपने सभी परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे कर भारत के इरादों को बुलन्द कर दिया है। हालांकि चीन के पनडुब्बी बेडे में 60 से ज्यादा पनडुब्बीयां है जिनमें से 5 परमाणु पनडुब्बीयां हैं। भारत के पास कुल 15 पनडुब्बीयां हैं जिनमें से रूस से लीज पर ली हुई आई एन एस चक्र और छोटी स्वदेशी पण्डुब्बी अरिहन्त सहित दो परमाणु पण्डुब्बीयां शामिल हैं।

भारत की अरिहन्त क्षेणी की दो और पनडुब्बीयां निकट भविष्य में बनाने की योजना है जिनमें से आई एन एस अरिदमन अभी निर्माणाधीन है और अगले कुछ वर्षों में भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगी। अरिदमन अरिहन्त से अपेक्षाकृत बडी और अधिक शक्तिशाली होगी जहां अरिहन्त में 12 के 15 मिसाईल (750 कि.मी. रेंज) व 4 के 4 मिसाईल (3500 कि.मी. रेंज) ले जाने की क्षमता है।

वहीं अरिदमन में 24 के 15 व 8 के 4 बैलेस्टिक मिसाईल ले जाने की क्षमता होगी। ये पनडुब्बीयां भारत को पानी के भीतर से धातक प्रहार करने की क्षमता के साथ ही सैकेण्ड स्ट्राईक की क्षमता भी प्रदान करेंगी। वहीं चीन के विशाल पण्डुब्बी बेडे से निपटने के लिए भारत ने अमरीका से अत्याधूनिक पी 8 आई पनडुब्बी नाशक विमान भी हासिल कर लिए हैं जो सागर की गहराई से पनडुब्बी को खोज कर नष्ट करने में विश्वप्रसिद्ध हैं।

मोदी सरकार की इन्हीं नीतियों के दम पर जहां भारत अपने पडोसियों से संबंध सुधारने में सफल रहा है वहीं सैन्य महाशक्ति बनने की ओर भी उसके कदम तेजी से अग्रसर हैं और इसी के चलते वह चीन के स्ट्रिंग आफ पर्ल्स नामक चक्रव्यूह को तोडता व पाकिस्तान को अलग थलग छोडता नजर आ रहा है।