नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निजी चिकित्सक केपी माथुर ने एक खुलासा किया है कि इंदिरा गांधी अपने पुत्र संजय गांधी के निधन के बाद अपनी छोटी बहू मेनका को राजनीति में लाना चाहती थीं लेकिन मेनका ऐसे लोगों के साथ थीं जो राजीव के विरोधी थे।
सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक पी माथुर ने अपनी नई किताब ‘द अनसीन इंदिरा गांधी’ में ये दावा किया है। माथुर के अनुसार इंदिरा गांधी को भले है सोनिया के प्रति अनुराग अधिक था लेकिन संजय की मौत के बाद उनका झुकाव मेनका की ओर भी हो गया था।
कोणार्क प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में कहा गया है इंदिरा का झुकाव मेनका को उनके करीब नहीं ला पाया। सोनिया आम तौर पर घरेलू मामलों का जिम्मा संभालती थीं जबकि राजनीतिक मामलों में प्रधानमंत्री मेनका के विचारों पर गौर करती थीं क्योंकि मेनका की राजनीतिक समझ अच्छी थी।
पी माथुर ने करीब 20 साल तक दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चिकित्सक के तौर पर काम किया और वह हर सुबह इंदिरा से मिलते थे। यह सिलसिला वर्ष 1984 में इंदिरा का निधन होने तक चला। इंदिरा के साथ अपने अनुभवों को ही डा. माथुर ने किताब की शक्ल दी है।
किताब में डॉ माथुर ने लिखा है कि संजय के निधन के बाद इंदिरा का मेनका के प्रति रवैया बेहद नर्म हो गया। वह तो यह भी चाहती थीं कि मेनका राजनीति में उनकी मदद करें लेकिन मेनका अक्सर उन लोगों के साथ रहीं जो राजीव के विरोधी थे।
डॉ माथुर ने किताब में संजय विचार मंच के उस सम्मेलन का जिक्र किया है जो लखनऊ में हुआ था। उनके अनुसार इंदिरा तब विदेश दौरे पर थीं और वहां से उन्होंने मेनका को संदेश भेजा था कि वह इस सम्मेलन को संबोधित न करें। लेकिन मेनका नहीं मानीं और सम्मेलन को संबोधित किया।
किताब के अनुसार राजीव और सोनिया के विवाह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया के बीच तालमेल स्थापित होते समय नहीं लगा। सोनिया इंदिरा को बहुत सम्मान देती थीं और इंदिरा सोनिया को बहुत प्यार करती थीं। सोनिया ने जल्द ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लीं।
पढ़ने में गहरी दिलचस्पी रखने वाली इंदिरा रविवार और अवकाश के अन्य दिनों में किताबें पढ़तीं। उन्हें बायोग्राफी तथा लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाएं खास तौर पर पसंद दीं। वह अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में आने वाले क्रॉसवर्ड पजल भी हल करती थीं।