नई दिल्ली। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्रधिकरण (ट्राई) की सख्ती के बाद मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां आपस में एग्रीमेंट की कवायद में जुट गई हैं।
ट्राई की एक बैठक में टेलीकॉम कंपनियों को स्पष्ट कर दिया गया कि जिओ, एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया के बीच झगड़े का असर कस्टमर पर नहीं पड़ना चाहिए, इसके लिए चाहें तो वे आपस में नया समझौता कर सकते हैं।
रिलायंस कम्युनिकेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजीव नारायण ने शनिवार को कहा कि इंटरकनेक्टिविटी विवाद को लेकर अगले हफ्ते कोई समाधान निकलने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि सभी कंपनियां इस संबंध में कवायद में जुटी हैं। जिओ ने आरोप लगाया था कि टेस्टिंग के दौरान ही एक हफ्ते में पांच करोड़ कॉल ड्रॉप हो गए क्योंकि पुराने जीएसएम ऑपरेटरों ने इंटरकनेक्टिविटी एग्रीमेंट का पालन नहीं किया।
इसके बाद सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ने पीएमओ को पत्र लिख कर कहा था कि जिओ की वजह से बढ़े ट्रैफिक को अन्य कंपनियां मैनेज करने की स्थिति में नहीं हैं।
विवाद बढ़ने पर ट्राई ने सभी प्रमुख कंपनियों की बैठक बुलाकर सख्त लहजे में उन्हें आपस में विवाद सुलझाने को कहा था। ट्राई के एक अधिकारी के मुताबिक विवाद नहीं सुलझने पर हम कार्रवाई करने को मजबूर होंगे।
इस बीच रिलायंस द्वारा शुरू की गई जिओ सर्विस से बेहाल टेलीकॉम कंपनियों आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी से दूरी बना सकती हैं।
रिलायंस के सामने टिके रहने के लिए एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया जैसी टेलीकॉम कंपनियां अपने टेरिफ रेट को घटाने पर मजबूर हैं वहीं टेलीकॉम कंपनियों पर 4 लाख करोड़ का कर्ज भी है।
जानकारों के मुताबिक टेलीकॉम कंपनियां इस माहौल में स्पेक्ट्रम की नीलामी में ज्यादा आक्रामक तरीके से बिडिंग नहीं कर पाएंगी। इसकी जगह वे सेलेक्टिव बिडिंग करेगी। ऐसे में सरकार को इस बार स्पेक्ट्रम की नीलामी में कम राजस्व मिल सकता है।
टेलीकॉम कंपनियों पर इस बात का भारी दबाव है कि वह कैसे अपने ग्राहकों को रिलायंस जिओ की तरफ जाने से रोकें। इसके लिए एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया जैसी कंपनियां अपने टेरिफ रेट बदलने को मजबूर हैं।
टेलीकॉम कंपनियों को कॉलड्राप के मामले में छूट दिए जाने के पीछे भी यही तर्क था। अदालत में टेलीकॉम कंपनियों के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि ट्राई के अनुसार हम हर दिन 250 करोड़ रुपए कमा रहे हैं, लेकिन कहीं बात का जिक्र नहीं है हम पर भारी कर्ज का बोझ है।