लखनऊ। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बड़े दिलवाले इंसान हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में सामान्य लोगों का भी सदैव सम्मान किया है। उनका विशाल व्यक्तित्व पूरी दुनिया के लिए बेमिसाल है।
लखनऊ तो उनकी कर्मभूमि रही। यहां के कण-कण में उनकी आत्मा का वास रहा। इसीलिए वह यहां के लोगों के लिए वह जन्म से लेकर मृत्यु तक का ख्याल रखते रहे। वह कभी भी गुस्से में नहीं दिखे। यह कहना है लखनऊ में अटल जी के खास मित्र और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टण्डन का।
अटल बिहारी वाजपेयी आज 91 साल के हो गए हैं। उनके जन्मदिन के अवसर पर हिन्दुस्थान समाचार से एक विशेष वार्ता में टण्डन ने पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़ी कुछ खास बातें साझा की। वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि वर्तमान का यह दुर्भाग्य है कि आज जितना बड़ा नेता होगा वह जनता से उनता ही दूर हो जाता है। लेकिन, अटल जी के साथ ऐसा कभी नहीं रहा।
जाति और धर्म की सीमा उन्हें छू तक नहीं पाई। सभी के साथ इतनी अधिक आत्मीयता वाला नेता अब नहीं रहे। उन्होंने कहा कि अटल जी से यही सीखने की जरुरत है कि उनके आदर्श और व्यवहार के चलते जो उनके विरोधी थे वे भी उनकी बुराई करते कभी नहीं सुने गए।
टण्डन ने बताया कि अटल जी को कभी गुस्सा नहीं आता था। वह इतने सौम्य और व्यवहार कुशल हैं कि बड़ी गंभीर बातों को भी कभी-कभी बड़े हल्के में सुलझा देते थे। पार्टी के छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी सम्मान करने में उन्हें हिचक नहीं होती थी।
इस संबंध में एक घटना का उल्लेख करते हुए टण्डन ने बताया कि एकात्म मानववाद के प्रणेता पं दीन दयाल उपाध्याय का लखनऊ से बहुत नजदीक का नाता रहा और उन्होंने यहां काफी समय भी बिताया था। इसलिए मेरी प्रबल इच्छा थी कि यहां उनकी स्मृति में कोई स्मारक बनवाया जाए।
जब मैं प्रदेश सरकार में मंत्री बना और अटल जी यहां से सांसद थे तो गनेशगंज इलाके में पं0 दीन दयाल उपाध्याय स्मारक के लिए भूमि तलाशी गयी। कुछ लोगों ने उसे अवैध तरीके से कब्जा कर रखा था। किसी तरह उसे खाली कराकर भूमि पूजन के लिए मैने अटल जी से अनुरोध किया। वह आए और भूमि पूजन किया।
कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद लोग मेंरे लिए नारा लगाने लगे तो मैंने देखा कि नारा लगाने वालों में अटल जी भी थे। वह कह रहे थे, ‘टण्डन जी संघर्ष करो, हम आपके साथ हैं।’ इतना कहकर टण्डन गंभीर हो गए और थोड़ी देर बाद बोले, ‘यह था अटल जी का बड़प्पन।’
यही नहीं अटल जी का एक बार सैंडल टूट गया तो चैक में एक मोची के गये और वहीं बैठ गये। मोची जब तक उनका सैंडल ठीक कर रहा था तब तक वह उसे कविताएं सुनाते रहे। अगर उन्हें कभी अनजान व्यक्ति मिल जाता तो उसे भी वह यह एहसास नहीं होने देते थे कि वह पहली बार मिला है।
टण्डन ने कहा कि अटल लखनऊ की आवो हवा में इतने रमे थे कि उन्हें यहां के लोगों की जन्म से लेकर मौत तक का ख्याल रहता था। इसीलिए श्मसान से लेकर अस्पताल तक हर जगह उनके नाम के पत्थर आज भी लगे पड़े हैं। लखनऊ की सड़कों का चैड़ीकरण मैंने उन्हीं की प्रेरणा से करवाई थी।
पूर्व प्रधानमंत्री की याद में थोड़ा और गंभीर होते हुए लालजी टण्डन ने कहा कि अटल जी यद्यपि आज कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन देश में जितनी भी समस्याएं हैं, उनके समाधान की जब भी चर्चा होती है तो उसमें अटल जी प्रासंगिक हो जाते हैं। हर समस्या के समाधान के साथ उनका नाम अनायास आना उनके विराट व्यक्तित्व को सिद्ध करता है।
एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि अटल जी प्रारम्भिक जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे। कवि के रुप में उनकी पहली पहचान बनी। भाजपा से पहले जनसंघ की जब स्थापना हुई तो उसके अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के वह सहयोगी के रुप में रहे। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरु हुई।
लखनऊ से अटल के आत्मीय संबंध बताते हुए टंडन ने कहा कि यहां से सांसद बनने से पहले वह पुराने शहर में घूमते हुए कई गलियों में बैठकें लगाते थे। वे अपनी मनपंसद जगहों पर बैठकर कविताओं को लिखते थे। उन्हें पुराना लखनऊ बेहद पसंद था। वह खाने-पीने के भी बहुत शौकीन थे। चौक चौराहे पर मिलने वाली लस्सी, ठंढ़ई उन्हें बेहद पसंद थी। शाम के वक्त गरम दूध भी पीते थे वह भी मलाई अलग से डलवाकर।
चौक स्टेडियम के पास में एक ठेले पर चाट खाने भी पहुंच जाते थे। हालांकि चाक खाने के उनके यहां कई ठिकाने थे। एक दूसरे सवाल के जवाब में भाजपा नेता ने बताया कि राजनीति में आने से पहले अटल जी ने लखनऊ से मदरलैंड, राष्ट्रधर्म, स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे कई समाचार पत्र पत्रिकाओं का सफल सम्पादन भी किया।
अटल बिहारी वाजपेयी अपने लखनऊ प्रवास के दौरान गोमती नदी के किनारे कुड़िया घाट पर बहुत जाया करते थे और वहीं लोगों को अपनी कविताएं सुनाया करते थे।
उनके मित्र लालजी टण्डन पिछले कई वर्षों से इसी कुड़िया घाट पर अटलजी का जन्मदिन बड़े भव्य ढंग से मना रहे हैं। आज उन्हें किसी आवश्यक कार्य से मुम्बई जाना था फिर भी समय निकालकर पहले कार्यक्रम किए फिर मुम्बई गए।