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3 दिसम्बर विश्व विकलांगता दिवस : अवसर में बदलना होगा विकलांगता के अभिशाप को - Sabguru News
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3 दिसम्बर विश्व विकलांगता दिवस : अवसर में बदलना होगा विकलांगता के अभिशाप को

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3 दिसम्बर विश्व विकलांगता दिवस : अवसर में बदलना होगा विकलांगता के अभिशाप को
international of People with disability
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3 दिसम्बर को पूरी दुनिया में विश्व विकलांग दिवस मनाया जाता है। सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसम्बर 1991 से प्रतिवर्ष विश्व विकलांग दिवस को मनाने की स्वीकृति प्रदान की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 65 करोड़ लोग विकलांग की श्रेणी में आते हैं। यह दुनिया की सम्पूर्ण जनसंख्या का 8 प्रतिशत है।

विश्व विकलांग दिवस का उद्देश्य आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ हो रहे भेद-भाव को समाप्त किया जाना है। यह दिवस शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए मनाया जाता है। इस भेद-भाव में समाज और व्यक्ति दोनों की भूमिका रेखांकित होती रही है।


आज दुनिया में करोड़ो व्यक्ति विकलांगता का शिकार है। विकलांगता अभिशाप नहीं है क्योंकि शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाये तो विकलांगता व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाती है। यदि सकारात्मक रहा जाये तो अभाव भी विशेषता बन जाते हैं।

विकलांगता से ग्रस्त लोगों को मजाक बनाना, उन्हें कमजोर समझना और उनको दूसरों पर आश्रित समझना एक भूल और सामाजिक रूप से एक गैर जिम्मेदराना व्यवहार है। आज हम इस बात को समझे कि उनका जीवन भी हमारी तरह है और वे अपनी कमजोरियों के साथ उठ सकते है।


पंडित श्रीराम शर्मा ने एक सूत्र दिया है, किसी को कुछ देना है तो सबसे उत्तम है कि आत्म विश्वास जगाने वाला उत्साह व प्रोत्साहन दें। भारत के वीर धवल खाडे ने विकलांगता के बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को तैराकी का स्वर्ण जीता था।

हाल ही में दोहा के कतर शहर में आयोजित विश्व पैरा ओलम्पिक खेलों में राजस्थान के चूरू जिले के खिलाड़ी देवेन्द्र झाझडिय़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता में रजत पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया है। आपके आस पास ही कुछ ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्होंने अपनी विकलांगता के बाद भी बहुत से कौशल अर्जित किये है। दुनिया में अनेकों ऐसे उदाहरण मिलेंगे, जो बताते है कि सही राह मिल जाये तो अभाव एक विशेषता बनकर सबको चमत्कृत कर देती है।


भारत विकासशील देशों की गिनती में आता है। विज्ञान के इस युग में हमने कई ऊंचाइयों को छुआ है। लेकिन आज भी हमारे देश, हमारे समाज में कई लोग है जो हीन दृष्टी झेलने को मजबूर है। वो लोग जो किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाते है अथवा जो जन्म से ही विकलांग होते है, समाज भी उन्हें हीन दृष्टि से देखता है। जबकि ये लोग सहायता एवं सहानुभूति के योग्य होते है।


आज दुनिया विश्व विकलांगता दिवस मना रही है, साथ ही विकलांगों के लिए एक बेहतर जीवन और समाज में समान अधिकार के लिए अपनी आवाज को बुलंद कर रही है। लेकिन इसी बीच एक यह भी सच्चाई है कि भारत में विकलांग आज भी अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए दूसरों पर आश्रित है।


भारत में विकलांगों से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आधीन होता है। भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय व गरिमा सुनिश्चित करता है और स्पष्ट रूप से यह विकलांग व्यक्तियों समेत एक संयुक्त समाज बनाने पर जोर डालता है। हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदला है। यह माना जाता है कि यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।


भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास में सरकारी सेवा में आरक्षण देना, योजनाओं में विकलांगो की भागीदारी को प्रमुखता देना, आदि को शामिल किया जाता रहा है। हालांकि भारत में बहुत सी ऐसी सरकारी योजनाएं हैं जो विकलांगों की मदद के लिए हैं लेकिन आज भी सिर्फ चालीस फीसदी विकलांग भारतीयों को विकलांगता प्रमाणपत्र ही मुहैया कराया जा सका है। ऐसे में विकलांगों के लिए सरकारी सुविधाएं महज मजाक बनकर रह गयी हैं।

भारत में आज भी विकलांगता प्रमाणपत्र हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों के कई दिनों के चक्कर लगाने के बाद भी लोगों मायूस होना पड़ता है। हालांकि सरकारी दावे कहते हैं कि इस प्रक्रिया को काफी सरल बनाया गया है लेकिन हकीकत इससे काफी दूर नजर आती है।


विकलांगता का प्रमाणपत्र जारी करने के सरकार ने जो मापदण्ड बनाये हैं, अधिकांश सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक उनके अनुसार विकलांगों को विकलांग होने का प्रमाणपत्र जारी ही नहीं करते है। जिसके चलते विकलांग व्यक्ति सरकारी सुविधायें पाने से महरूम हो जाते हैं। सरकार के आंकड़ो पर नजर डालें तो 2013-14 में महज 39.28 फीसदी लोगों को विकलांगता का प्रमाणपत्र प्राप्त है। वहीं पश्चिम बंगाल में 41 फीसदी लोगों को यह प्रमाणपत्र प्राप्त है।


2011 के जनगणना के अनुसार देश मे 2.68 करोड़ विकलांग है जिनमें से महज 1.05 करोड़ लोगों को विकलांगता का सर्टिफिकेट हासिल है। पश्चिम बंगाल में 20.17 लाख लोग विकलांग है जिनमें से 8.27 लाख लोगों को विकलांगता का प्रमाणपत्र प्राप्त है।

जबकि नागालैंड में महज 5.7 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 7 फीसदी, दिल्ली में 21 फीसदी विकलांगो के पास विकलांगता का प्रमाणपत्र है जोकि सरकार की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। वहीं त्रिपुरा इस मामले में सबसे बेहतर है। यहां 97.72 फीसदी विकलांगो को विकलांगता का प्रमाणपत्र  प्राप्त है। तमिलनाडु में 84 फीसदी लोगों के पास विकलांगता का प्रमाणपत्र प्राप्त है।


देश में विकलांगों के लिए सरकार ने कई नीतियां बनायी है। उन्हें सरकारी नौकरियों, अस्पताल, रेल, बस सभी जगह आरक्षण प्राप्त है। साथ ही विकलांगो के लिए सरकार ने पेशन की योजना भी शुरु की है। लेकिन ये सभी सरकारी योजनाएं उन विकलांगों के लिए महज एक मजाक बनकर रह गयी हैं। जब इनके पास इन सुविधाओं को हासिल करने के लिए विकलांगता का प्रमाणपत्र ही नहीं है।


हाल ही में केन्द्र की मोदी सरकार ने देशभर के विकलांग युवाओं को बड़ा तोहफा दिया हैं। सरकार ने शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को सरकारी नौकरी में 10 साल तक की छूट दी है। केन्द्र सरकार में सीधी भर्ती वाली सेवाओं के मामले में दृष्टि बाधित, बधिर और चलने-फिरने में विकलांग या सेरेब्रल पल्सी के शिकार लोगों को उम्र में 10 साल की छूट दी है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने इस बावत नए नियमों की घोषणा कर दी है। नए नियम के मुताबिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणी के लोगों को 15 साल और छूट मिलेगी जबकि अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को 13 साल की छूट हासिल होगी।

यहां गौर तकने वाली बात ये है कि सरकार की ये खास छूट उन आवेदकों को मिलेगी जिनकी अधिकतम उम्र 56 साल से ज्यादा नहीं है। आपको बता दें कि इससे पहले सरकारी नौकरियों के लिए एससी-एसटी को अधिकतम उम्र सीमा में 5 साल छूट थी जबकि ओबीसी को 8 साल तक की छूट का प्रावधान था।


विश्व विकलांग दिवस पर कई तरह के आयोजन किये जाते है, रैलियां निकाली जाती है, विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद ये सब भुला दिया जाता है, लोग अपने-अपने कामों में लग जाते है और विकलांग जन एक बार फिर हताश हो जाते है।

विकलांगता शारीरिक अथवा मानसिक हो सकती है किन्तु सबसे बड़ी विकलांगता हमारे समाज की उस सोच में है जो विकलांग जनों से हीन भाव रखती है और जिसके कारण एक असक्षम व्यक्ति असहज महसूस करता है। देश में विकलांगों को दी जाने वाली सुविधाएं कागजों तक सिमटी हुई हैं। विकलांगों को अन्य देशों में जो सुविधाएं दी जा रही हैं उसकी एक चौथाई सुविधाएं भी यहां नहीं मिल रही।

रमेश सर्राफ धमोरा