जयपुर/ब्यावर। बीते कुछ समय से इंटरनेट चलाते समय यूजर्स को महसूस होता हैकि कुछ वेबसाइटें बड़ी तेजी से ओपन हो जाती है, जबकि कुछ को ओपन होने में काफी समय लगता है। ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे वजह आखिर क्या है? इसको लेकर आमतौर पर कोई भी ध्यान नहीं देता।
आमतौर पर नेट पर सर्फिंग करने वाले यह सोच कर रह जाते हैं कि नेट की स्पीड कम है इसलिए साइड ओपन नहीं हो रही। कभी किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत होता है। इसके पीछे छिपे राज के बारे में एक्पर्ट से जानकारी ली गई। एक्पर्टस का कहना है कि नेट की स्पीड कभी अलग अलग नहीं हो सकती। अगर ऐसा होता है तो इसके पीछे सर्विस प्रोवाइडर का हाथ है।
सूत्रों के अनुसार नेट की स्पीड स्लो करने के पीछे नेट सर्विस प्रोवाइडर उपभोक्ता के साथ धोखा कर रहे हैं। कुछ नेट सर्विस प्रोवाइडर आजकल पैसे के लालच में उपभोक्ता की जेब पर डाका डालने से बाज नहीं आ रहे। होता यह है कि जो उन्हे अधिक पैसा देता है ये सिर्फ उन्हीं वेबसाइटों की स्पीड तेज रखते हैं। जिन वेबसाइटों से उन्हें अतिरिक्त पैसा नहीं मिलता उनकी स्पीड कम कर दी जाती है।
कुछ खास कंपनियों की वैबसाइड पर नजर डाले तो साफ जाहिर होगा कि वेबसाइटों की स्पीड में विभिन्नता है। फ्लिपकाट, फेसबुक, व्हाट्सअप, टिवटर जैसी साइटें आसानी से खुल जाती हैं। जबकि कई वेबसाइटें खुलने में अधिक समय लेती हैं। कहा जाता है कि नामी वेबसाइटो से सर्विस प्रोवाइडर को मोटी रकम मिलती है इसलिए वे उन्हें अलग स्पीड देते हैं।
कानून के मुताबिक स्पीड सभी वेबसाइटों के लिए समान होनी चाहिए। स्पीड कम करने से इंटरनेट उपभोक्ताओं की आजादी पर अंकुश लग रहा है। सर्फिंग की आजादी में जिस तरह भेदभाव बरता जा रहा है वह अपराध की श्रेणी में आता है। सर्विस प्रोवाइडरो की दादागिरी के चलते आम उपभोक्ता को नुकसान उठाना पड़ता है।
इसके अलावा कुछ प्रोवाइडर नेट के बैलेंस से छेड़छाड़ करते है जिसका खमियाजा उपभोक्ता को उठाना पड़ता है। बहुत कम डाउनलोडिंग और अपलोडिंग पर ही नेट बैलेंस खत्म हो जाने शिकायते आम हैं। नेट यूटिलिटी को लेकर ट्राई के नियमों को धता बताते हुए ये सर्विस प्रोवाइडर आम ग्राहकों की मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूकते।
(जैसा ब्यावर निवासी एक यूजर हेमेन्द्र सोनी ने बताया)