सबगुरु न्यूज-वाराणसी। जो भाजपा उत्तर प्रदेश चुनाव शुरू होने से पूर्व जारी की गई स्टार प्रचारकों की सूची में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बजाय उत्तर प्रदेश के स्थानीय भाजपा नेताओं को चुनाव प्रचार में प्रचारक बनाने की रणनीति पर काम कर रही थी, एकाएक उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फिर से स्टार प्रचारक बनाने की कहां आवश्यकता पड गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावों के तीन चरण के बाद अवध, बुंदेलखंड में चुनाव प्रचार में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया गया, वहीं अंतिम दो चरणों के पूर्वांचल के चुनावों में तो प्रधानमंत्री की कैम्पिंग तक करवा दी।
राजनीतिक पंडित इसके तीन कारण मान रहे हैं। या तो भाजपा को यह लग रहा है कि वह उत्तर प्रदेश में बहुमत से दूर है और यहां पर हंग असेम्बली की संभावना है, जिसे स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में स्वीकार कर चुके हैं। दूसरा कारण भाजपा का वह विश्वास है, जिसमें वह दावा कर रही है कि उत्तर प्रदेश में वह स्पष्ट बहुमत के साथ आ रही है और ऐसे में इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाए इसलिए उन्होंने अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्टार प्रचारक के रूप में फिर से प्रमोट करने का निर्णय किया है।
तीसरा वाराणसी में भाजपा के पास तीन सीटें हैं, जातीय गणित और अंदरूनी विरोध से यह आशंका है कि इन तीन में से भी एकाध सीट कम हो जाए। ऐसे में विपक्ष को प्रधानमंत्री पर सीधे हमले का मौका मिल जाएगा। ऐसे में वित्त मंत्री अरूण जेटली व्यापारियों से, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद वकीलों से और पीयूष गोयल, जेपी नड्डा समेत अन्य केबीनेट मंत्री चाय की थडियों और घाटों पर लोगों से मिल रहे हैं।
अब तक पोलिंग के ट्रेंड के हिसाब से इतनी कम पोलिंग किसी सूरत में भाजपा को बहुत ज्यादा फायदा होने की ओर इशारा नहीं करती। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके हमसाया राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए ये समझना मुश्किल नहीं है कि उत्तर प्रदेश की राह उनके लिए इतनी आसान भी नहीं है, जितनी लोकसभा चुनाव के दौरान थी। वह इस बात से भी वकिफ थे कि नरेन्द्र मोदी नहीं आते तब भी 2014 में भाजपा 180 से 225 सीटों के साथ सबसे बडे राजनीतिक दल के रूप में उभरना था। प्रधानमंत्री ने अपनी बेहतर मार्केटिंग पाॅलिसी से इसे मोदी लहर का नाम जरूर दिलवा दिया, लेकिन इस हकीकत से वह भी गैर वाकिफ नहीं थे कि मोदी लहर दरअसल, कांग्रेस की एंटी इंकम्बेंसी का नाम था।
अब चूंकि केन्द्र में उनकी सरकार है और राज्य में अखिलेश की ऐसे में उनके पास केन्द्र में भ्रष्टाचार नहीं होने के दावे के अलावा करने के लिए कुछ और नहीं है। जिस तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दिल्ली का विकास बाधित करने का आरोप लगाते हैं, वैसी ही मजबूरी अपने भाषणों में उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर लगाते प्रतीत हो रहे हैं।
वैसे छठे चरण में भी उत्तर प्रदेश में पोलिंग साठ फीसदी से आगे नहीं निकल पाई है, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए वाराणसी को बचाने की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ गई है। क्योंकि भाजपा के समर्थक माने जाने वाले अगडी जाति के वोटरों का रुझान मतदान केन्द्र की ओर कम है। 2002, 2007 और 2012 के पोलिंग प्रतिशत पर नजर डालें तो इतनी कम पोलिंग में भाजपा से ज्यादा बेहतर स्थिति में सपा और बसपा रही हैं।
भाजपा के नेता भले ही यह दावा करें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय केबीनेट समेत भाजपा और आरएसएस का राष्ट्रीय काडर वाराणसी में इसलिए जमा हुआ है कि वह पूर्वांचल की सभी 89 सीटों से समान दूरी पर पडता है तो यह बात विपक्ष को हजम नहीं हो रही है। यदि प्रधानमंत्री और उत्तर केन्द्रीय केबीनेट यदि गोरखपुर को भी पूर्वांचल का मुख्यालय बनाते तो यही स्थिति रहती।
दरअसल, वाराणसी जिले में 2012 के चुनावों में भाजपा को आठ में से मात्र तीन ही सीटें मिली थी। दो सीटें बसपा ने, एक-एक सपा, कांग्रेस और अपना दल के पास हैं। प्रधानमंत्री के पास 2012 से बेहतर प्रदर्शन का भी दबाव है, लेकिन वर्तमान स्थिति में जातीय समीकरण, वाराणसी जिला भाजपा में टिकिट वितरण को लेकर फूटा आक्रोश और चैथे, पांचवे और छठे चरण में हुआ कम मतदान ने भाजपा को अलार्मिंग स्थिति में ला दिया है। भाजपा जानती है कि यदि यहां पर तीन से ज्यादा सीटें नहीं जीती तो विपक्ष इसे मोदी लहर के थमने के रूप में लेगा जो देशभर में होने वाले आगामी चुनावों में उसके लिए मुसीबत बढा सकती है। वर्तमान में आठों सीटों पर बीजेपी की स्थिति संकट में है।
वाराणसी जिले की पिंडरा सीट पर कांग्रेस के अजय राय बेहतर स्थिति में है। अजय राय वही हैं जो लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लडे थे। यहां भाजपा से अवधेशसिंह और बसपा से बाबूलाल प्रत्याशी हैं।
वाराणसी-दक्षिण सीट पर बंगाली बहुल इस इलाके में पार्टी के वरिष्ठ और लोगों में ईमानदार छवि के कारण दादा के नाम से विख्यात श्यामदेव राॅय चैधरी का टिकिट काटकर भाजपा यहां पर जबरदस्त विरोध झेल रही है। जबकि दादा 1989 से दादा कभी भी यहां से नहीं हारे थे। भाजपा ने यहां से नीलकंठ तिवारी को भाजपा प्रत्याशी बनाया है।
वैसे भाजपा ने डेमेज कंट्रोल के लिए रविवार की रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के दौरान दादा को सार्वजनिक रैली में आगे लाकर नुकसान की भरपाई की कोशिश की, लेकिन इसकी संभावनाएं यहां कम ही है। ब्राहमण बहुल इस सीट पर सपा ने पूर्व सांसद राजेश मिश्रा को तथा बसपा ने राकेश त्रिपाठी की अपना प्रत्याशी बनाया है।
रोहनिया विधानसभा सीट भाजपा की सहयोगी अपना दल की जाति के पटेल समुदाय की बहुलता वाली सीट है। अनुराधा पटेल का यहां पर दबदबा माना जाता है, लेकिन उनकी मां के उनके खिलाफ विरोध का बिगुल फूंकने के बाद सोनेलाल पटेल समर्थक पटेल समुदाय के मतदाताओं के बंटने की संभावना ने भाजपा की नींद हराम कर दी है।
सपा ने यहां पर पटेल समुदाय के महेन्द्रसिंह पटेल को, बसपा ने प्रमोद कुमारसिंह को तथा भाजपा ने सुरेन्द्र नारायणसिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा की पटेल समुदाय को टिकिट देने की चाल यहां भाजपा के लिए समस्या बन गई है। इसलिए सोमवार को अपने प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस गढवाघाट आश्रम में अपना कार्यक्रम रखा हैं।
इसके अलावा इसी विधानसभा में पडने वाले रामनगर में ब्राहम्ण वोटरों को रिझाने के लिए कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निवास पर उन्हें श्रद्धांजलि देने को मजबूर होना पडा और रोहनिया में रैली का भी आयोजन किया जा रहा है। यहां से सोनेलाल पटेल की पत्नि कृष्ण पटेल खुद स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड रही हैं।
वाराणसी उत्तर सीट भाजपा के पास है। यहां पर वर्तमान विधायक रविंद्र जायसवाल को भाजपा ने फिर टिकिट दिया है। 2012 में भाजपा प्रत्याशी जायसवाल बसपा के वर्तमान प्रत्याशी सुजीत कुमार मौर्य से मात्र 2000 वोटों से जीते थे। इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के अंसारी मतदाताओं की संख्या काफी है। मुख्तार अंसारी के बसपा से जुडने से इन मतदाताओं के बसपा के समर्थन में आने की पूरी संभावना से भाजपा को यह सीट भी खोने का डर मंडरा रहा है।
वाराणसी कैंट को भाजपा भले ही अपनी सुरक्षित सीट मान रही है, लेकिन यहां पर परिवारवाद को बढावा देने को विपक्ष मुद्दा बनाए हुए है। यह भाजपा ने यहां पर एमएलए ज्योत्सना श्रीवास्तव के पुत्र सौरभ श्रीवास्तव को टिकिट दिया है। इस परिवार के लोग ही इस सीट पर से लम्बे समय से भाजपा का टिकिट पा रहे हैं।
ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं में इस सीट पर भी जबरदस्त आक्रोश है। श्याम राॅय चैधरी फैक्टर के कारण यदि बंगाली समुदाय यहां पर भाजपा के खिलाफ वोट डालता है तो भाजपा की यह सीट भी खतरे में पड सकती है। कांग्रेस-सपा गठबंधन से यहां पर कांग्रेस के अजय श्रीवास्तव को और बसपा ने रिजवान अहमद को टिकिट दिया है। यहां से 24 उम्मीदवार मैदान में है।
शिवपुर विधानसभा सीट पर में भाजपा ने अनिल राजभर को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं बीएसपी ने पूर्व मंत्री ठाकुर विरेन्द्रसिंह और सपा ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीब माने जाने वाले आनन्द मोहन यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है।
यहां पर बसपा के प्रत्याशी ठाकुर विरेन्द्रसिंह को सबसे मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है। सोमवार के अपने वाराणासी के कार्यक्रम में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने इस क्षेत्र का कार्यक्रम रोहनिया के साथ इस सीट को भी ध्यान में रखकर बनाया है।
सेवापुरी सीट पर सपा के वर्तमान एमएलए और मंत्री सुरेन्द्रसिंह पटेल बसपा के प्रत्याशी महेन्द्रनाथ पांडे तथा भाजपा अपना दल के प्रत्याशी नील रतनसिंह पटेल से ज्यादा मजबूत स्थिति में बताए जा रहे हैं। यहां भी कुर्मी समुदाय के मतदाताओं अनुप्रिया पटेल और सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल के मध्य बंटने की आशंका है।
अजगरा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इन वोटरों को ररुझान बसपा और कांग्रेस की ओर रहता है। बसपा ने यहां से वर्तमान एमएलए त्रिभुवन राम को तथा सपा ने लालजी सोनकर अपना प्रत्याशी बनाया है। मुख्य मुकाबला यहां पर इन्हीं दोनों के मध्य है। भाजपा का यहां पर कोई प्रत्याशी नहीं है। अलायंस जरूर लड रहा है।