जेहादी आतंकियों की बर्बर हिंसा से दुनिया में यह बहस हो रही है कि इस्लाम का चेहरा लगाकर हिंसा का तांडव करने वाले ये कैसे मुसलमान। हाल ही में बांग्लादेश की बहुचर्चित लेखिका तस्लीमा नसरीन जिन्हें बांग्लादेश से इसलिए बाहर कर दिया कि उन्होंने अपने उपन्यास में इस्लाम को लांछित किया है।
कट्टर पंथियों ने उनके खिलाफ मौत का फतवा भी जारी कर दिया है। उन्होंने जेहादी आतंकियों की बर्बरता के बारे में कहा है कि आतंकी बनना हो तो मुस्लिम हो जाओ। जिस इस्लाम के नाम पर आतंकी लोगों का खून बहाते हैं, वे अब मुस्लिम, गैर मुस्लिम में भी अन्तर नहीं करते।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, सीरिया तो मुस्लिम देश है, वहां भी हमले कर आतंकी निर्दोष मुस्लिमों का भी कत्ल कर रहे हैं। शिया मुस्लिमों को वे मुस्लिम नहीं मानते, इसलिए उनका खून बहाते हैं, उनकी मस्जिदों पर हमले करते हैं।
अब सऊदी अरब का मक्का मदीना जहां जाकर मुसलमान अपने जीवन को सार्थक मानते हैं। सऊदी अरब में गत सोमवार की रात आतंकियों ने विस्फोट किए, जिसमें छह सुरक्षाकर्मी सहित चालीस मारे गए। मुस्लिम आतंकियों ने इस्लाम की सबसे पवित्र मस्जिद अल मस्जिद उन नबवी को रमजान में निशाना बनाया।
बताया जाता है कि 1400 वर्ष पूर्व पैगम्बर मोहम्मद साहेब ने बनाया था, इस विस्फोट में चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गए हैं। कई लोग घायल हुए थे। अल कातिफ में शिया मस्जिद के बाहर आत्मघाती हमला करने में 34 लोग मारे गए।
जेहाद में हमला करने वाले के बारे में बताया गया कि वह पाकिस्तानी था। कुल मिलाकर यह भी कहा जा सकता है, ये जिहादी आतंकी इस्लाम के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। यदि यही स्थिति रही तो तस्लीमा की तरह मानवता के लिए इस्लाम ही सबसे घातक हो जाएगा।