श्रीहरिकोटा। भारत ने गुरुवार को अपने छठे दिशा सूचक उपग्रह को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया और इस तरह अब यह ‘जीपीएस’ जैसी अपनी खुद की क्षेत्रीय दिशा सूचक उपग्रह प्रणाली से महज एक कदम दूर है।
प्रणाली के कामकाज सटीक और कार्य सक्षम रहने की उम्मीद है। इसमें भूक्षेत्रीय और समुद्री दिशा बोध, आपदा प्रबंधन और वाहनों की ट्रैकिंग, यात्रियों को दिशा की जानकारी देने में सहायता, चालकों के लिए दृश्य एवं ध्वनि माध्यमों से दिशा सूचना आदि शामिल हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का पीएसएलवी सी 32 रॉकेट चेन्नई से करीब 100 किलोमीटर दूर यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम चार बजकर एक मिनट पर रवाना हुआ और बाद में इसने आईआरएनएसएस 1 एफ को उप भूतुल्यकालिक हस्तांतरण कक्षा सब जीटीओ में स्थापित कर दिया।
इसरो ने प्रक्षेपण में एक मिनट की देरी की ताकि अंतरिक्ष में मलबों से संभावित टक्कर को टाला जा सके। इसे मूल रूप से शाम चार बजे प्रक्षेपित किया जाना था।
इसरो उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद एक बयान में बताया कि अंतरिक्ष मलबा अध्ययनों के मुताबिक टक्कर टालने के लिए प्रक्षेपण के समय को संशोधित कर शाम चार बजकर एक मिनट किया गया। हाल के समय में यह दूसरा मौका है जब प्रक्षेपण के समय में संशोधन किया गया। इससे पहले साल 2014 में पीएसएलवी सी 23 के प्रक्षेपण में ऐसा किया गया था। यह पीएसएलवी की 33 वीं लगातार सफल उड़ान थी।
इसरो के अध्यक्ष एएस किरन कुमार ने मिशन कंट्रोल सेंटर में कहा कि पीएसएलवी सी 32 ने उपग्रह को सही कक्षा में स्थापित कर दिया। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय दिशा सूचक प्रणाली को पूरा करने में अब सिर्फ एक उपग्रह बचा है, जिसे हम अगले महीने प्रक्षेपित करने की उमीद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आईआरएनएसएस 1 एफ के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिस पर हम सभी को बहुत गर्व है।
उन्होंने ट्वीट किया कि आईआरएनएसएस 1 एफ का सफल प्रक्षेपण एक ऐसी उपलब्धि है जिस पर हम सभी को बहुत गर्व है। मैं अपने वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और इसरो को सलाम करता हूं।
मिशन निदेशक बी जयकुमार ने कहा कि हमारी खुद की दिशा सूचक प्रणाली के छठे उपग्रह को सुरक्षित रूप से बखूबी स्थापित कर दिया गया। यान पीएसएलवी सी 32 ने यह काम शानदार तरीके से किया और इस दौरान हासिल किया गया उपग्रह का झुकाव लक्ष्य के काफी करीब है।
प्रक्षेपण के बाद विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक बी सिवन ने बताया कि जीएसएलवी मार्क 3 डी 1 का प्रक्षेपण इस साल के आखिर में किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं हम आईआरएनएसएस श्रृंखला में आखिरी उपग्रह के साथ अगले मिशन की तैयारी कर रहे हैं और जीएसएलवी मार्क 3 डी 1 के जरिए सबसे भारी उपग्रह को प्रक्षेपित कर एक शानदार मिशन के साथ इस साल को विदा देंगे।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक कुन्ही कृष्णन ने बताया कि पीएसएलवी ने एक बार फिर से अपनी क्षमता साबित कर दी है। यह दुनिया के सबसे भरोसेमंद रॉकेटों में एक है।
भारतीय क्षेत्रीय दिशासूचक उपग्रह प्रणाली आईआरएनएसएस के तहत प्रस्तावित सात उपग्रहों के प्रक्षेपण की श्रृंखला में यह छठा उपग्रह है। इस उपग्रह का जीवन काल 12 साल है।
आईआरएनएसएस अमरीका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जीपीएस की तर्ज पर दिशा सूचक सेवाएं मुहैया कराएगा। 54 घंटे की उल्टी गिनती के खत्म होने पर रॉकेट सुनियोजित तरीके से रवाना हुआ और इसके सभी चार स्तरों ने उपग्रह के अलग होने तक बखूबी काम किया।
उपग्रह के कक्षा में स्थापित होने के बाद आईआरएनएसएस 1 एफ के दोनों सौर पैनल खुद ब खुद तैनात हो गए।
इसरो वैज्ञानिकों ने बताया कि कर्नाटक के हासन स्थित मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी उपग्रह को नियंत्रित करेगी, ताकि इसे उसकी कक्षा में और उपर उठाया जा सके। यह काम एक महीने में होने की संभावना है।
किरन कुमार ने बताया कि इस श्रृंखला में प्रक्षेपित किए गए पांचवें उपग्रह आईआरएनएसएस 1 ई ने अब काम करना शुरू कर दिया है। इसे 20 जनवरी को प्रक्षेपित किया गया था।
इस के प्रक्षेपण के लिए आईआरएनएसएस उपग्रहों के पिछले प्रक्षेपणों के समान ‘एक्स एल’ प्रारूप का इस्तेमाल किया गया। इस श्रृंखला में प्रथम उपग्रह का प्रक्षेपण जुलाई 2013 में किया गया था। दिशासूचक संकेत देने के अलावा आईआरएनएसएस 1 एफ में एक अत्यधिक सटीक ‘रूबीडियम परमाणु घड़ी’ भी लगी हुई है।