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आमिर को नहीं देश से प्रेम, घर में झगड़ा होने पर कोई घर नहीं छोड़ता : जैनमुनि तरुण सागर - Sabguru News
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आमिर को नहीं देश से प्रेम, घर में झगड़ा होने पर कोई घर नहीं छोड़ता : जैनमुनि तरुण सागर

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आमिर को नहीं देश से प्रेम, घर में झगड़ा होने पर कोई घर नहीं छोड़ता : जैनमुनि तरुण सागर
jain muni Tarun Sagar commented on aamir khan
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मथुरा। भारत की प्रकृति, संस्कृति व अतीत की स्मृति यह बताती है कि भारत कल भी सहिष्णु था, आज भी है और कल भी रहेगा। असहिष्णुता की कहीं भी कोई जगह नहीं है। आमिर का बयान उनके घर का विवाद है। भला घर में विवाद होने पर कोई घर छोड़ता है क्या? ऐसा कोई नहीं करता है। यह बयान बताता है कि आमिर को देश से प्रेम नहीं है।

ये बातें जैनमुनि  तरुण सागर ने शनिवार को कहीं। उन्होंने कहा, मुगल और अंग्रेजी संस्कृति अगर लोगों पर हाबी ना हो, तो सहिष्णुता बरकरार रहेगी। असहिष्णुता के नाम पर चर्चाएं जारी हैं। लेकिन यह चर्चा कराने वालों को जानना होगा कि सिर्फ भारत की संस्कृति में सहिष्णुता पाई जाती है।

आदिकाल से यह चली आ रही है। यहां की प्रकृति और संस्कृति में सहिष्णुता रची-बसी है। स्मृति में भी नहीं कि कभी असहिष्णुता का माहौल नहीं बन पाता है। उन्होंने कहा, आमिर खान का बयान उनके घर के विवाद का परिणाम हो सकता है। घर के विवाद में कोई देश छोड़ता है क्या? ]

मछली जल में रहकर जल का मूल्य नहीं समझती। जब कोई मछुआरा उसे पकड़कर रेत पर डालता है तब मछली की नजर में जल का महत्व आता है।
उन्होंने आमिर खान का नाम लिए बगैर कहा, ईराक और सीरिया जाएं। पता चल जाएगा कि असहिष्णुता क्या होती है? ऐसा बयान देने वालों में देशभक्ति की भावना नहीं होती।

उन्होंने सम्मान वापस करने वालों साहित्यकारों को भी आड़े हाथों लिया। बोले, सम्मान वापसी केवल सस्ती लोकप्रियता और मीडिया में बने रहने का स्टंट है। इसे सियार की बोली से समझा जा सकता है। एक सियार के बोलने भर से जंगल के सभी सियार उसी की आवाज निकालते हैं। उन्हें नहीं पता होता है कि बात क्या है?

उन्होंने सफाई देते हुए कहा, साहित्यकारों की तुलना जानवरों से नहीं कर रहा हूॅ। लेकिन ऐसा ही कुछ माहौल देश में बना है। विरोध करने के संविधान में और तरीके बताए गए हैं। लोकतांत्रिक तरीका अपनाना चाहिए। सम्मान वापसी एक गलत परंपरा है।

मुनिश्री ने बीफ मामले पर भी खुलकर बोला। कहा कि देश में बहुसंख्यक गाय को मां मानते हैं। सम्मान देते हैं। इसलिए अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। दो अच्छे पड़ोसी एक दूसरे की भावनाओं का खयाल रख भाई-चारे से रहते हैं।

बहुसंख्यक व अल्पसंख्यकों को भी ऐसे ही रहना चाहिए। उन्होंने अल्पसंख्यकों को पड़ोसी देश से भी दूर रहने की नसीहत दी। बताया कि यह समरस समाज की स्थापना के लिए जरूरी है। एक देश के निवासियों का एक साथ रहना और देश के प्रति समर्पण का भाव जरूरी है।