सबगुरु न्यूज उदयपुर। मेवाड़ की दो सबसे बड़ी झीलें 1973 के बाद पहली बार एक साथ छलकने को तैयार है। एक ओर उदयपुर जिले की जयसमंद झील व दूसरी ओर राजसमंद जिले की राजसमंद झील। 27.5 फीट भराव क्षमता वाली जयसमंद झील तो लगातार दूसरे साल छलकने को आतुर है। जयसमंद झील का जलस्तर 26 फीट नौ इंच के स्तर को छू गया।
अब यह पूर्ण भराव क्षमता से महज 6 इंच दूर है। वहीं राजसमंद झील का जल स्तर 29 फीट के पार हो गया है। बरसात का दौर कमजोर पड़ने से अब पानी को इस आंकड़े तक पहुंचने में कम से कम दो दिन और लग सकता हैं।
जल संसाधन विभाग के अनुसार दोनों झीलों में पानी की आवक बनी हुई है लेकिन दो दिन से बारिश थमने से आवक में कुछ कमी आई है। आवक जारी रहने और बरसात के आने पर यह अगले दो दिन में कभी छलक सकती है। ऐसा होने के साथ ही मेवाड़ मे ये दोनों झील एक बार फिर एक साथ छलक कर नई इबारत गढेगी। पिछले 44 वर्षों में राजसमंद झील 1973, 1994, 2006 व 2016 में ओवरफ्लो हुई। वहीं राजसमंद झील वर्ष 1973 के बाद अब तक एक बार भी नहीं छलकी है। ऐसे में राजसमंद के छलकने का पूरे मेवाड़ को इंतजार है।
एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित मीठे पानी की झील जयसमंद है तो राजसमंद अपनी बांध पर लगे दुनिया सके सबसे बड़े अभिलेख राजप्रशस्ति के लिए प्रसिद्ध है। विश्व विख्यात जयसमंद झील में 9 नदियां और 99 नालों का पानी समाहित होता है। वहीं राजसमंद झील के बांध पर बनी नौ चैकियां अपनी शिल्पकारी और सौन्दर्य के लिए दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करती है।
जयसमंद झील
जयसमंद झील वर्ष 1730 में बनकर तैयार हुई एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की इस झील के ओवरफ्लो होने का तरीका भी अनूठा है। भीण्डर क्षेत्र के केरेश्वर क्षेत्र से निकलने वाली गोमती नदी पर महाराज जयसिंह ने इसका निर्माण ऐसा करवाया कि पाल पर सबसे ऊपर बने 6 हाथी की सूंड को पानी पार करते ही झील ओवरफ्लो हो जाती थी। हालांकि झील के इतिहास में ऐसा एक बार ही हो पाया। वर्ष 1973 में पहली बार झील इसी तरह ओवरफ्लो हुई तो डूब क्षेत्र के कई गांवों में हाहाकार मच गया। बाद में रपट की ऊंचाई 1973 के हालात को देखकर घटा दी गई। नई व्यवस्था में पाल पर बने आखिरी हाथी के पैरों में बंधी जंजीरों को पानी छू ले तो समझो जयसमंद ओवरफ्लो हो गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 14 हजार 400 मीटर लंबाई एवं 9 हजार 500 मीटर चैड़ाई में में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी का स्वरूप मानी जाती है। दो पहाडियों के बीच में ढेबर दर्रा को कृत्रिम झील का स्वरूप दिया गया।
राजसमंद झील
वहीं, राजसमंद झील का निमार्ण 1662 ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने आमेट क्षेत्र के रामदरबार से निकलने वाली नदी गोमती नदी पर करवाया था। यह लगभग 1.75 मील चैड़ी, 6.4 किमी लंबी और 30 फीट गहरी है। झील के दक्षिणी छोर पर, विशाल तटबंध नौचैकी सफेद संगमरमर से बना है। इसमें संगमरमर छतों और पत्थर के कदम हैं जो झील के पानी को छूते हैं। यहां पांच तोरण बने हैं और करीब नौ चबूतरे बने हैं। इन नौ चबूतरों में प्रत्येक में नौ सीढ़ियां हैं। साथ ही तटबंध की पूरी लम्बाई में नौ ये खूबसूरत से नक्काशीदार मंडप बने हैं। इन्हें सूरज की तस्वीरें, रथ, देवता, पक्षियों और विस्तृत नक्काशी के साथ सज्जित किया है। नौचैकी मेवाड़ पर लगे अभिलेख राजप्रशस्ति में 1017 पदों में मेवाड़ का इतिहास अंकित है।