सिरोही। मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना राज्य की मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना है। सरकार ने इस योजना के लिए सभी जिला कलक्टर पर स्थानीय स्तर पर प्रवासियों, एनजीओ, सामाजिक सस्थानों, ग्राम पंचायतों से धन उगाहने का राज्य के सभी जिला कलक्टरों को आदेश दिए हैं और सख्ती इतनी कि पूरी प्रशासनिक मशीनरी इसमें पूरी तरह से झोक दी गई है।
दो साल में सरकार ने जनहित में लोगों को राहत दिए जाने के लिए इतना दबाव शायद नहीं बनाया होगा जितना दबाव इस योजना के लिए दिखाई दे रहा है। वैसे प्रशासनिक अधिकारियों और भाजपा नेताओं को दावा है कि यह सहयोग राशि इसलिए ली जा रही है कि जनता की भागीदारी इसमें बढे, लेकिन राज्य सरकार के बढते बजटीय घाटे और केन्द्र सरकार से ऋण लेने की सीमा बढाने के लिए लिखा गया अनुरोध पत्र इस दावे की हकीकत को खोल रहा है कि राज्य सरकार के खजाने में कितना पैसा शेष बचा।
इस पर सवाल यह उठता है कि जब जल स्वावलम्बन अभियान में जो भी काम शामिल किए गए हैं वह सभी नरेगा में हैं और इसके लिए पर्याप्त बजट है तो इस योजना को जलग्रहण को सौंपने की आवश्यकता कहां पडी। आम तौर पर मनरेगा में सबसे ज्यादा काम की आवश्यकता मार्च से जून तक पडती है और उस दौरान सबसे ज्यादा काम जल संग्रहण योजनाओं के ही आते हैं।
ऐसे में मार्च से पहले मशीनों से वाटरशेड डिपार्टमेंट के माध्यम से मशीनों से जिन गांवों में यह काम करवा लिया जाएगा वहां पर मार्च से जून के बीच मनरेगा के कामों में दिक्कत आनी स्वाभाविक है। ऐसे में अरबों रुपये जो मनरेगा के माध्यम से ग्रामीणों में वितरीत करके ग्रामीणों के स्वाभिमान को बढा सकते थे वह एक ही व्यक्ति तक सीमित होगा।
मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना के तहत प्रथम चरण में राज्य भर में एक हजार करोड रुपये से ज्यादा का काम होना है। इनमें डीसिल्टिंग, नाडी खुदाई, एनीकट निर्माण, तालाब खुदाई आदि शामिल हैं।
यदि यह काम मनरेगा के तहत अभियान के रूप में किया जाता तो यह पैसा ग्रामीणों में जाता और ग्रामीणों की खरीद क्षमता बढने से देश की अर्थव्यवस्था मजबूती आती, लेकिन वाटरशेड के माध्यम से अरबों रुपये के ये काम ठेके और मशीनों से करवाने से यह पैसा सीमित लोगों तक पहुंचेगा। जिससे प्रधानमंत्री की मंशानुसार अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की बजाय विशेष वर्ग तक यह काम पहुंचेगा।
सोशल आॅडिट की व्यवस्था नहीं!
सूत्रो के अनुसार मनरेगा और वाटरशेड विभाग के तहत करवाए जाने वाले कामों में एक अंतर है कि वाटर शेड में सोशल आॅडिट की व्यवस्था नहीं है, ऐसे में जन भागीदारी व जवाबदेही के नाम पर जनता से पैसा उगाहने की दलील बेमानी है। जबकि मनरेगा में सोशल आॅडिट होने से जनभागीदारी रहती है।
वाटरशेड की अव्यवस्थाएं छिपी नहीं
वाटरशेड के नाम किस तरह से अनियमितता होती है, इसका उदाहरण सिरोही जिले की कूमा परियोजना है। जिसमें बिना एमबी के ही लाखों रुपये का भुगतान किए जाने का मामला कांग्रेस के एक विधायक ने विधानसभा में उठाया था। इस मामले में एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश भी हुए थे।
एक बीडीओ ने एफआईआर दर्ज करवाने के प्रयास किए राजनीतिक हस्तक्षेप ने उसका क्या हश्र किया हुआ यह पंचायत हल्के में आम है। इस प्रकरण में कांग्रेस की चुप्पी धार लेना इस आरोप को भी पुख्ता करती है कि वाटरशेड में होने वाली अनियमितता की राशि इतनी बडी होती है कि दोनों राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का मुंह बंद करना मुश्किल नहीं होता।
कांग्रेस ने ही इस मामले को उठाया और इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं हो पाना यही दर्शाता है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे को विधानसभा में जनहित की बजाय राजनीतिक या आर्थिक हित साधने के लिए उठवाया था और संभवतः वो हित सधने के बाद जिले में इसकी एफआईआर दर्ज करवाने में कांग्रेसी नेताओं की रुचि खतम हो गई है।
पानी छिपा देता है हर अनियमितता
मशीनों के माध्यम से कितना क्यूबिक फीट मिट्टी की खुदाई की गई, एक बार ठेका करने के बाद यह पता लगा पाना मुश्किल है कि वाकई उतनी ही खुदाई की गई है या नहीं। क्योंकि जिस वाटरशेड डिपार्टमेंट को यह काम सौंपा गया है, उसके पास टेक्नीकल टीम का भी अभाव है।
ऐसे में बारिश के बाद इन गड्ढों में पानी भर जाने के बाद यह शिकायत और जांच करना भी मुश्किल है कि वाकई उतनी ही खुदाई की गई थी, जितनी ठेके में प्रदर्शित है। पानी भरने के बाद ठेकेदार व इंजीनियरों के पास यह बहाना है कि काम पूरा था, लेकिन बारिश होने से सिल्ट फिर से जम गई।
निर्बंध योजना का बजट डालना भी सवालिया निशान
सरकार ने मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में प्रत्येक ग्राम पंचायतों के निर्बंध योजना के तहत दिए जाने वाले बजट को भी शामिल कर लिया है। इस बजट से पंचायत समितियों व ग्राम पंचायतें ग्रामीणों के लिए विकास कार्य करवाए जाते हैं। पूर्व विधायक संयम लोढा ने इस बजट के इस्तेमाल को असंवैधानिक भी बताया है।
उन्होंने प्रेस नोट जारी करके बताया कि मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में सरकार के माध्यम से निर्बंध कोष के 349 करोड रुपये का हस्तांतरण किया जाना 73 वें संविधान संशोधन में किए गए प्रावधानों का उल्लंघन है। लोढा ने 1 जनवरी, 2016 को राज्य सरकार की ओर से जारी आदेश के माध्यम से निर्बंध कोष योजना के पैसे को मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना के तहत हस्तांरित करने को असंवैधानिक बताया है।
लोढा इसी तरह के आदेश का विरोध पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान भी जता चुके हैं। लोढा ने दावा किया कि इस राशि को सरकार बिना ग्राम पंचायतों की स्वीकृति के नहीं ले सकती। सू़त्रों की मानें तो इसी मुद्दे को लेकर सिरोही के सरपंचों की एक बैठक भी प्रस्तावित है।
शुभारम्भ आज
सिरोही जिले में चयनित 26 ग्राम पंचायतों के 42 गांवों में कल 27 जनवरी से लगभग 20 करोड़ रूपये की लागत से प्रथम चरण में शुरू होने वाले जल संरक्षण कार्यों से मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का शुभारम्भ किया जायेगा।
देवस्थान,गोपालन राज्य मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री ओटाराम देवासी बुधवार को 11 बजे शिवगंज पंचायत समिति के ग्राम झाड़ोली वीर में जल संरक्षण कार्य से जिला स्तर पर अभियान का शुभारम्भ करेंगे। इस अवसर पर जिला कलक्टर,मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित अन्य जन प्रतिनिधि भी साथ होंगे।
इसके अतिरिक्त सिरोही के कृष्णगंज,रेवदर के मगरीवाड़ा,पिंडवाड़ा के रोहिड़ा तथा आबूरोड पंचायत समिति के ग्राम खड़ात मेें घ्लॉक स्तरीय समारोह के आयोजन से अभियान का शुभारम्भ किया जायेगा। शेष गांवों में भी वहां के जन प्रतिनिधि,भामाशाह तथा संत महात्माओं से अभियान का शुभारम्भ किया जायेगा।