बीस वर्ष बाद एकता की राह पर चल पड़ा ‘‘जनता परिवार’’ क्या अंतिम पड़ाव तकपहुंच पायेगा और यदि पहुंच गया तो वह अपने घोषित उद्देश्य ‘‘भाजपा रोको’’ में सफल होगा या फिर अस्ताचल की ओर जा रही कांग्रेस की-को और भी कमजोर करेगा? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो जनता परिवार की एकता की चर्चा के साथ उठ खड़े हुए हैं।
कांग्रेस देशव्यापी वैकल्पिक भूमिका खोती जा रही है। राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी का भले ही वरचस्व स्थापित हो गया हो, लेकिन बंगाल, उडत्रीसा, तामिलनाडू, आंध्र, तेलांगना और पंजाब में अभी भी क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला है। इसमें महाराष्ट्र और कश्मीर को आंशिक रूप से शामिल किया जा सकता है। आम तौर पर क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें चाहे केंद्र में साझीदार हो या नहीं केंद्रीय सरकार से तालमेल करके ही चलती रही हैं, चुनाव के अवसर को छोड़कर।
जो ‘‘पार्टियां’’ जनता परिवार में शामिल होने का संकल्प वयक्त कर चुकी हैं उनका एकीकृत स्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में उस समय उभरा जब जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर और लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने मिलकर एक पार्टी बनाने का संकल्प किया। जनता दल बना और अजीत सिंह उसके अध्यक्ष बने जिन्हें मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश विधायक दल के नेता पद के चुनाव में मात देकर मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला। चंद्रशेखर सांसद भर रह गये और अजीत सिंह विश्वनाथ प्रताप सिंह के नजदीक खिसक गए।
बिहार जिसकी राजनीतिक स्थिति परिवार की एकता की अपरिहार्यता बन गई है, न अलग होकर लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल बना लिया, जो आज भी अस्तित्व में है। नितीश कुमार उनके सिपहसालार थ। बाद में आरजेडी का भी विभाजन हो गया। जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में-समता पार्टी बनी नितीश कुमार उनके सिपहसालार बन गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का वरचस्व था उन्होंने समाजवादी नाम को पुनः जीवित किया।
अजीत सिंह ने अपने पिता चैधरी चरण सिंह द्वारा स्थापित लोकदल नाम का सहारा लिया तो हरियाणा में चैधरी देवीलाल ने इंडियन नेशनल लोकदल बना लिया। कर्नाटक में देवगौड़ा ने जनता सेक्युलर का सहारा लिया जो बचा खुचा रहा वह जनता दल यूनाइटेड कहलाया जिसके शरद यादव आजकल अध्यक्ष हैं। इनमें से किसी भी क्षत्रप ने पिछले बीस वर्षों में अपने प्रभाव क्षेत्र में ‘‘परिवार’’ के किसी अन्य घटक को पैर रखने के लिए जमीन नहीं दिया।
विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार जहां बिखरे परिवार का सर्वाधिक राजनीतिक वरचस्व रहा है और आज भी है। इस दौरान कांग्रेस या भाजपा से जूझने के बजाय परिवार के लोग आपस में ही सिर फुटौव्वल करते हुए कभी भाजपा का साथ देते रहे और कभी कांग्रेस का। इस जनता परिवार के एक सदस्य रामविलास पासवान हवा का रूख पहचानने में सबसे प्रवीण निकले यही कारण है कि वे निरंतर केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने हुए हैं। जो जनता दल के अध्यक्ष थे अजीत सिंह उनको पूरी तरह से ‘‘अश्पृश्य’’ मान लिया गया है।