सूरत। एनसीईआरटी दिल्ली में राजनीतिक शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेशर शंकर शंरण ने रविवार को भारतीय विचार मंच और भाजपा की ओर से आयोजित जेएनयू का सच विचार गोष्ठी में देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में माक्र्सवाद के हावी होने से उत्पन्न समस्या पर विस्तार से चर्चा की।
उन्होंने कहा कि जेएनयू में पहले भी देश को पसंद नहीं आने वाली घटनाएं होती थी, लेकिन वह कभी इतनी चर्चा में नहीं आई। इस बार देश के अस्तित्व को ही चुनौती दी जा रही थी, जिससे यह पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया, और लोगों की प्रतिक्रियाएं-विरोध शुरू होने लगे।
शंकर शरण ने कहा कि देश में कयुनिस्ट राजनीति कमजोर और सारी दुनिया में समाप्तप्राय हो चुकी है। 30 से 40 साल पहले स्थिति दूसरी थी और दुनिया में कयुनिस्ट आनेवाला यह कयुनिस्ट मानते थे।
जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद उनकी याद में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना का सुझाव इंदिरा गांधी की नजदीकी रही राज थापर के पति रोमेश थापर ने दिया था। इस वजह से जेएनयू वामपंथ और कांग्रेस के गठजोड़ का नतीजा था।
जेएनयू बनाने के बाद इंदिरा गांधी जल्द ही प्रधानमंत्री बन गई। उनके प्रमुख सचिव पी.एन.हक्सर पुराने माक्र्सवादी थे। उन्होंने अकादमियों, उच्च पदों और नियुक्तियां करने वाले पदों पर अनेक माक्र्सवादियों की नियुक्ति की।
बौद्धिक क्षेत्र में माक्र्सवादियों ने कांग्रेस के समय से ही वर्चस्व बनाना शुरू कर दिया था, जिसकी फलश्रुति जेएनयू में भी देखने को मिल रही है। जेएनयू में सभी विभागों में माक्र्सवाद नहीं है, विज्ञान और दूसरे विभागों में इसका असर कम है। पर समाज विज्ञान में इसका सर्वाधिक प्रभाव है। इन माक्र्सवादियों ने यहां सोशल साइंस को भ्रष्ट कर दिया है।
एंटी हिन्दुत्व, बीजेपी, आरएसएस और हर वह चीज प्रो, जो भारत को डिवाइड कर सके, फूड डाल सके। यहां सर्पूण भारत की नहीं एक खास राजनीति की चिंता करने वालीे माक्र्सवादी विचारकों का जमघट हो गया है। उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद में समाज को वर्ग में बंटा हुआ, वर्ग संघर्ष बताया गया है। इसमें बीच का रास्ता नहीं है। या तो उनका विरोध है या समर्थक।
यहां असहमति की कोई जगह नहीं है। ऐसी विचारधारा से समाज में वैमनस्य हावी होती जाती है। इसी विचारधारा को जेएनयू में डाला गया है जिससे ज्ञान की नई खोज के बजाए विभाजित करने वाली सभी विचारधाराओं को सहानुभूति मिलती है।
याकूब मेमन, अफजल, उत्तरपूर्व भारत का हिस्सा नहीं, दलितों पर अत्याचार, दलित हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं, हिंदू धर्म में ब्राह्मणों की तानाशाही आदि विकृत बातों को इसी वजह से माक्र्सवाद में जगह मिल जाती है। शंकर शरण ने कहा कि माक्र्सवादी इतिहासकारों के कारण राम मंदिर का हल नहीं निकल पाया।
पुरातात्विकविदों ने स्पष्ट किया था कि बाबरी मस्जिद के नीचे पहले से मंदिर के अवशेष हैं। इस पर कई मुस्लिम नेता यह प्रमाणित होने पर दावा छोडऩे की बात करने लगे थे। तभी माक्र्सवादी इतिहकारों ने मोर्चा संभाल कर मंदिर के अवशेष होने को कोरा बताते हुए प्रचार अभियान शुरू कर दिया जिससे वार्ता बीच में रुक गई।