जोधपुर। जोधपुर की एक स्थानीय अदालत ने शुक्रवार को एक 17 वर्षीय किशोरी द्वारा बाल्यावस्था में हुई अपनी शादी को रद्द कराने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी की है। सरिता ने अपनी याचिका में कहा है कि जब वह तीन साल की थी, तभी उसकी शादी कर दी गई थी।
परिवार अदालत की न्यायाधीश रेखा भार्गव ने किशोरी के तथाकथित पति को नोटिस जारी कर एक महीने के अंदर अदालत में पेश होने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता किशोरी सरिता का कहना है कि उसके तथाकथित ससुराल वाले, स्थानीय समुदाय के लोग और गांव के नेता उस पर अपने ससुराल जाने का दबाव बना रहे हैं।
सरिता और उसकी विधवा मां शुरू में तो डर गई थीं, लेकिन उन्होंने आखिर हिम्मत जुटाकर वे पुनर्वास मनोविज्ञानी कृति भारती और गैर सरकारी संगठन सारथी ट्रस्ट के प्रबंधकों से मिलीं, जिन्होंने उन्हें बाल विवाह को अदालत में चुनौती देने की सलाह दी।
सरिता ने एक बयान जारी कर कहा कि मैं इस विवाह को स्वीकार नहीं करती। मैं पढ़ना चाहती हूं और अपना भविष्य बनाना चाहती हूं। बाल्यावस्था में हुई अपनी शादी को रद्द कराने के लिए मैंने कृति दीदी के सहयोग से अदालत में याचिका दायर की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि मुझे जल्द ही न्याय मिलेगा।
जोधपुर के सुंथाला क्षेत्र की रहने वाली सरिता का विवाह उसी जिले के प्रतापनगर निवासी महेंदर उर्फ गोगी से सितंबर 2003 में हुआ था। समुदाय के लोगों के दबाव में सरिता के पिता ने महेंदर के साथ उसका विवाह कराया था। विवाह के बाद जल्द ही सरिता के पिता का देहांत हो गया।
सरिता के ससुराल वाले बाद में सरिता की मां पर सरिता को ससुराल भेजने का दबाव बनाने लगे, लेकिन सरिता और सरिता की मां ने इससे इनकार कर दिया और सरिता का बाल्यावस्था में हुई शादी को भी मानने से इनकार कर दिया।
सरिता ने कहा कि वह और उसकी मां को ससुराल वालों की तरफ से लगातार पड़ रहे दबाव और दुर्व्यवहार के चलते बेहद तनाव से गुजरना पड़ा।
उसने बताया कि जब दबाव उनकी सहन से बाहर हो गया तो वे भारती के पास पहुंची और मदद मांगी और अदालत का दरवाजा खटखटाया।