Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
जयपर लिटरेचर फेस्टिवल में विवादित मसलों पर करण ने दी बेबाक राय - Sabguru News
Home Entertainment Bollywood जयपर लिटरेचर फेस्टिवल में विवादित मसलों पर करण ने दी बेबाक राय

जयपर लिटरेचर फेस्टिवल में विवादित मसलों पर करण ने दी बेबाक राय

0
जयपर लिटरेचर फेस्टिवल में विवादित मसलों पर करण ने दी बेबाक राय
karan johar in jaipur literature festival
karan johar in jaipur literature festival
karan johar in jaipur literature festival

जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन बॉलीवुड डायरेक्टर करण जौहर ने अपनी सफलता के किस्से साझा किए। इस दौरान आत्मकथा ‘द अनसूटेबल बॉय’ लिखने वाली पूनम सक्सेना के साथ शोभा डे की बातचीत खासी चर्चा में रही।

पिंक सिटी जयपुर के डिग्गी पैलेस के फ्रंट लोन में दोपहर बाद आयोजित सेशन में करण जौहर ने बचपन की फेमनिन फीलिंग, फिल्मों में समलैंगिगता, शाहरुख खान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बेबाक अपनी राय जाहिर की।

पूनम सक्सेना के साथ करण जौहर से संवाद करने वाली शोभा डे के सवालों पर उन्होंने मसलों पर अपने दिल की बात उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे पैन्सी (समलैंगिग पुरुष) शब्द से नफरत है, मैंने बचपन में इसे बहुत सुना है। मैं बचपन में थोड़ा फेमनिन था और इस वजह से मुझे स्कूल में इसे सुनना पड़ता था. इसी बोझ के साथ में घर लौटता था।

करण ने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा कि उनका बचपन भी आम बच्चों की तरह गुजरा। छुटपन में वे बहुत मोटे थे। उन्होंने कहा कि उनके पापा सिंधी और मां पंजाबी संस्कृति की रही। मां को तो मैं मोटा-ताजा, गोलू-मोलू पसंद था, मां ने कभी खाने-पीने में कंट्रोल नहीं किया। नतीजतन बचपन का मोटापा मेरी जवानी में भी मेरे साथ था।

karan johar in jaipur literature festival
karan johar in jaipur literature festival

जब मैं 26 साल का था तब मेरा वजन करीब 158 किलो रहा। मोटापे केकारण मैं भीड़ में काफी इन्सिक्योर फील करता था। पढ़ाई के मामले में कभी ज्यादा अच्छा नहीं रहा हालांकि बोर्ड में 88 परसेंट नंबर आए तो मां बहुत खुश हुई। मुझे आटर्स में इंट्रेस्ट था लेकिन मां सांइस में। जैसे तैसे मां मान गई और मैने आर्टस में ग्रेजुएशन पूरा किया।

करण ने बताया कि दक्षिण मुंबई में मैं पला बढ़ा। हिंदी फिल्मों को बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता था। इसलिए अपने दोस्तों को मैने पिता के व्यवसाय के बारे में सच नहीं बताया कि वे फिल्म बनाते हैं। दोस्तों को कहता कि पिता बिजनसमैन हैं। तब कोई नहीं जानता था कि मैं हिंदी फिल्मों का कितना बड़ा फैन था और चुपके-चुपके बॉलीवुड सॉन्ग्स पर डांस किया करता था।

खासकर मुझे बचपन में श्रीदेवी और जयाप्रदा की तरह डांस करने में मजा आता था। जब घर पर किसी गेस्ट का आना होता तो पिताजी ‘ढपलीवाले’ पर डांस करने को कहते और मैं ढपली लेता और कहता मैं जया प्रदा हूं और उन्हीं के स्टेप्स करने लगता।

अभिव्यक्त की आजादी को लेकर करण ने बेबाक बयानी करते हुए कहा कि अब तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मजाक लगती है। मेरे जैसे फिल्म डायरेक्टर को हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं किसी बात पर कोई नोटिस न थमा दे। ऐसे ही एक मामले में राष्ट्रगान पर 14 साल से कानून लड़ाई में उलझा हुआ हूं।

सैक्सुअल, इनटॉलरेंस और सेंसरशिप को लेकर भी करण ने अपनी बात रखी। हालांकि उन्होंने कहा कि ये ठीक भी है कि वे छिपकर कर रह रहे हैं। हमारे देश में ऐसा कानून है जो वे सबके सामने आएं। सामने आ जाएंगे तो 377 बार प्रताड़ित किया जाएगा। फिल्म दोस्ताना के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें होमोसैक्सुअल को एक साधारण विषयवस्तु के तौर दिखाया गया है। लोगों ने इसे पसंद किया। हर किसी ने इसकी चर्चा की।

असहिष्णुता पर शाहरुख खान का बचाव करते हुए करण ने कहा कि वे शाहरुख खान आज भी प्यार करते हैं और उनकी पत्नी और बच्चे मेरे परिवार का हिस्सा हैं। हालांकि हमारे रिश्तों में उतार चढ़ाव रहे हैं। करण ने असहिष्णुता पर शाहरुख का बचाव करते हुए कहा कि जैसा उनके बारे कहा जा रहा है वैसे शाहरुख नहीं हैं। सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि जिस पर कैंची चलानी चाहिए, उस पर नहीं चलाते। फिल्मों के डायलॉग्स के लिए भी एक सेंसर बना देना चाहिए।

करण ने कहा कि मुझे स्कैंडल चाहिए, क्यों कि आखिर मैं शो बिजनेस का कारोबार करता हूं। इसके लिए मैं कहीं भी जा सकता हूं, जहां मीडिया हो। करण ने कहा कि मेरी बनाई फिल्मों में से मुझे ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ पसंद है। वैसे ऑल टाइम फेवरेट फिल्म ‘कभीअलविदा ना कहना’ ही है। अब मेरा पैशन डायरेक्शन है। इसमें मुझे मजा आता है और आज मैं जहां भी हूं, वह डायरेक्शन की वजह से ही हूं।

फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कुछ असल में बनावटी है। फिल्म निर्माताओं के बीच अपनत्व का अभाव है। यहां गला काट प्रतिस्पर्धा है और यहां कोई बिरादरी नहीं। एक सवाल के जवाब में करण बोले, मुझे लगता है कि मैं गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्में नहीं बना सकता, क्यों कि मैं सपने बेचता हूं और लेकिन जीवन की सच से भी वाकिफ हूं। ये मेरे पिता के अनुभवों ने मुझे जमीनी आदमी बनाए रखा है।