खंडवा। केंद्र व प्रदेश सरकार गुड गवर्नेंस के प्रयास में जुटी हुई है। अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को उसका हक दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान नीतियां बना रहे है लेकिन शासकीय नुमाइंदे केवल अपना हित साधने में लगे हुए है।
जिले के शासकीय विभागों में घुसखोरों की लंबी फेहरिश्त है। बगैर रूपए लिए चाटूकार गरीबों की एक नहीं सुनते, नियमों का हवाला देकर आम आदमी को घुस देने के लिए मजबूर कर देते हैंं।
ऐसा ही एक मामला जिला चिकित्सालय का सामने आया है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी शीला कुमरावत से 11 महीने की छुट्टी की फाइल चलाने के एवज में स्थापना शाखा के लिपिक सीताराम चौहान ने महिला से 25 हजार रूपए की मांग की थी और 20 हजार रूपए में बात बनी। इस संबंधी शिकायत महिला ने लोकायुक्त इंदौर से की।
लोकायुक्त टीम इंदौर ने योजनाबद्ध तरीके से अपनी कार्रवाई को अंजाम देते हुए घुसखोर लिपिक को 20 हजार रूपए रिश्वत लेते रंगेहाथ दबोच लिया। टीम द्वारा स्थापना शाखा में जांच पड़ताल भी की। लोकायुक्त पुलिस निरीक्षक विजय चौधरी ने बताया स्वास्थ्य विभाग के एक सहायक लिपिक को 20 हजार की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया है। सहायक लिपिक ने एक आया से उसके रुके हुए वेतन का प्रकरण निपटाने के लिए 25 हजार की मांग की थी। आया पिछले चार साल से कार्यलय के चक्कर काट रही थी।
महिला ने इस लिपिक की शिकायत लोकायुक्त से की थी और उसे इंदौर से आई लोकायुक्त टीम के हाथों पकड़वा दिया। शीला कुमरावत ने बताया की खंडवा में आया के पद पर काम करती है और उनके पुराने प्रकरण में 11 महीने के वेतन का निर्धारण किया जाना था। स्थापना शाखा में पदस्थ बाबू सीताराम चौहान इस प्रकरण को निपटाने के लिए 25 हजार की रिश्वत मांग रहा था। शिकायत पर इंदौर से आई लोकायुक्त पुलिस की टीम ने योजना बनाकर उसे सिविल सर्जन कार्यालय में ही रंगे हाथ पकड़ लिया।
करोड़ों खर्च के बाद भी सुविधाएं नहीं…..
जिला चिकित्सालय में लाखों करोड़ों के निर्माण हुए और हो रहे हैं। अत्याधुनिक मशीनें आ चुकी हैं। फिर भी थोड़े से गंभीर मरीज को इंदौर रैफर करने की परंपरा जारी है। नैदानिक केंद्र के भूमिपूजन से लेकर लोकार्पण तक बढ़े-बढ़े सब्जबाग दिखाये गए थे, कि इसके निर्माण से सभी गंभीर मरीजों का सही डायग्नोसिस एवं इलाज यही हो सकेगा। ट्रामा सेंटर के समय भी यही दोहराया गया। लेकिन हालात वही हैं, थोड़े गंभीर मरीज को समाधानकारक उपचार भी नहीं दिया जाता, दो-तीन को छोड़कर शेष चिकित्सक औपचारिक प्राथमिक उपचार कर मरीज को इंदौर रवाना कर देते हैं।
अगर किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जहां उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहंीं होती, वहां से मरीज बड़े अस्पताल रैफर हो तो समझ आता है लेकिन जिला चिकित्सालय जहां आसपास के गांव के, शहर के लोग आस लगाकर आते हैं, वहां से मरीजों को इंदौर भेजा जाना किसी के गले नहीं उतरता। आखिर क्या कमी है, यहां? डॉक्टर योग्य अथवा साधन उपलब्ध नहीं? कुछ तो बताये जिला चिकित्सालय प्रशासन इसी तरह तम्बाकू नियंत्रण कक्ष, किशोर परामर्श केंद्र खुलते तो 11 बजे तक हैं, लेकिन यहां स्थायी कर्मचारी नहीं मिलते।