नई दिल्ली/जम्मू। जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गुरूवार को सुरक्षाकर्मियों पर पथराव करने वाले घाटी के लोगों को आड़े हाथों लिया।
कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में नागरिकों की जान जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि ‘जिन्हें गोली या पेलेट लगी, वह क्या दूध या टॉफी खरीदने बाहर निकले थे?
श्रीनगर में गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ पत्रकारों से बातचीत में महबूबा उस समय कोध्रित हो गई जब किसी पत्रकार ने उनसे याद दिलाया कि 2010 में विपक्ष में रहते हुए नागरिक हत्याओं को लेकर उन्होंने उमर अब्दुल्ला की सरकार की आलोचना की थी और अब वह इसे जायज ठहरा रही हैं।
महबूबा मुफ्ती ने इस सवाल पर कहा कि 2010 और 2016 की स्थितियों में बहुत फर्क है। 2010 में जो हुआ उसके पीछे कारण था, तब माछिल में एक फर्जी मुठभेड़ हुआ था जिसमें 3 नागरिक नारे गए थे।
उसके बाद बालात्कार और हत्या जैसी घटनाएं हुई थी जिससे कारण लोगों में गुस्सा था। आज तीन आतंकवादी मारे गए हैं और उसके लिए सरकार को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि 8 जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद लोग सड़कों पर बाहर क्यों निकले जबकि सरकार ने कर्फ्यू लागू कर रखा था।
उन्होंने कहा कि क्या कोई बच्चा आर्मी कैंप से टॉफी खरीदने गया था? एक 15 साल का लड़का जिसने दक्षिण कश्मीर में एक पुलिस थाने पर हमला किया तब क्या वह दूध खरीदने गया था? दोनों स्थितियों की तुलना न करें।
उन्होंने कहा कि मारे गए 95 प्रतिशत लोगों में गरीबों के बच्चे हैं। वह सुरक्षाकर्मियों पर हमला करने के दौरान जवाबी कार्रवाई के दौरान मारे गए या जख्मी हुए।
महबूबा ने कहा कि गरीब कश्मीरी युवाओं को कुछ निहित स्वार्थों द्वारा ढाल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। केवल 5 प्रतिशत कश्मीरी हैं, जो हिंसा का सहारा ले रहे हैं जबकि 95 प्रतिशत लोग हिंसा नहीं चाहते।
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