चंडीगढ़। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर पड़ने वाली अहोई माता का व्रत शनिवार को महिलाओं ने बड़े उत्साह से रखा। जहां करवाचौथ का व्रत पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है, वहीं अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सुरक्षा व लंबी आयु के लिए रखा जाता है।
दोनों ही व्रत निर्जल रखे जाते हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही खोले जाते हैं। इस व्रत के पालन से संतान सुख एवं बच्चों से सुख प्राप्त होने का प्रतिफल मिलता है।
ज्योतिर्विद् मदन गुप्ता सपाटू के अनुसार शनिवार दोपहर एक बजकर 11 मिनट पर सप्तमी समाप्त हो जाएगी तथा अष्टमी लग जाएगी जो रविवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगी।
शनिवार पूजा का मुहूर्त
शाम 5 बजे से 6 बज कर 17 मिनट तक
सितारे देखने का समय 5 बजकर 30 मिनट पर
चंद्र दर्शन रात्रि 11 बजकर 6 मिनट पर
क्या है अहोई अष्टमी
करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से एक 8 पूर्व पड़ने वाला यह व्रत पुत्रवती महिलाएं पुत्रों के कल्याण दीर्घायु सुख समृद्धि के लिए निर्जल करती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर 8 कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं।
आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं। पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है।
व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो ए उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए।
विधि
एक थाली में सात जगह 4.4 पूरियां रखकर उस पर थेाड़ा थोड़ा हलवा रखें। चंद्र को अध्र्य दें । एक साड़ी एक ब्लाउज एव कुछ राशि इस थाली के चारों ओर घुमा के सास या समकक्ष पद की किसी महिला को चरण छूकर उन्हें दे दें।
वर्तमान युग में जब पुत्र तथा पुत्री में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता। यह व्रत सभी संतानों अर्थात पुत्रियों की दीर्घायु के लिए भी रखा जाता है। पंजाब, हरियाणा व हिमाचल में इसे झकरियां भी कहा जाता है।