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जापान के क्योतो और शिव नगरी काशी में कई समानताएं

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क्योतो। भारत की आध्यात्मिक राजधानी वाराणसी और जापान की सांस्कृतिक राजधानी क्योतो में कई समानताएं हैं और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी को इस जापानी शहर की तर्ज पर स्मार्ट शहर के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। जापान की पांच दिवसीय यात्रा पर रवाना होने से पहले शुक्रवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के समक्ष वाराणसी के जीर्णोद्वार के लिए एक प्रस्तुति पेश की गई थी।……..

शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू की मौजूदगी में उनके मंत्रालय के सचिव शंकर अग्रवाल ने इसे मोदी के समक्ष पेश किया था। दोनों शहरों में कई समानताओं के चलते वाराणसी के पुनरूद्धार में भारत क्योतो माडल से बहुत कुछ सीख सकता है। क्योतो जापान के सबसे पुराने शहरों में से एक है और करीब 1000 साल तक देश की राजधानी भी रहा। करीब 15 लाख की आबादी वाले क्योतो को दस हजार मठों वाले शहर के नाम से भी जाना जाता है।

शहर में करीब 2000 धार्मिक स्थल हैं जिनमें से 1600 बौद्ध मठ हैं जबकि 400 शिंतो मंदिर हैं। युद्ध, आग और भूकंप से कई बार तबाह हुए इस शहर को आधुनिक बनाने की कवायद एक अप्रेल 1889 को शुरू हुई। यह शहर जापान की बौद्धिक राजधानी माना जाता है और यही वजह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में अमरीका ने इस पर परमाणु बम गिराने की योजना बनाई थी लेकिन इस पर अमल नहीं किया। यही वजह है कि क्योतो जापान के उन चंद शहरों में शामिल है जहां विश्वयुद्ध के पहले की इमारतें बची हुई हैं।

बनारस में गंगा, वरूणा और अस्सी नदियां बहती हैं जबकि क्योतो में भी उजीगावा, कत्सूरागावा और कामोगावा नाम की तीन नदियां हैं। बनारस की तरह यहां भी सालभर पर्यटकों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है। करीब तीन करोड़ पर्यटक हर साल क्योतो आते हैं। बनारस की तरह क्योतो में भी हस्तकला का काम बड़े पैमाने पर होता है। बनारस के बुनकरों द्वारा बनाई गई बनारसी साडियां देश विदेश में लोकप्रिय हैं। उसी तरह क्योतो के किमोनो बुनकरों द्वारा बनाया गया सामान पूरे जापान में मशहूर है। हालांकि दोनों जगह बुनकरों की स्थिति लगभग एक जैसी है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जहां भारत में शिक्षा का प्रमुख केंद्र है वहीं क्योतो में उच्च शिक्षा के 37 संस्थान हैं। क्योतो विश्वविद्यालय जापान में टोक्यो विश्वविद्यालय के बाद दूसरा सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय माना जाता है। क्योतो में मेट्रो चलती है और साथ ही यह देश के बडे शहरों से हाई स्पीड ट्रेन से जुड़ा हुआ है। इस शहर में परिवहन के लिए जलमार्ग का भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत में भी कोलकाता से बनारस के बीच जलमार्ग बनाने का प्रस्ताव है।

जापान की 20 प्रतिशत राष्ट्रीय धरोहर और 14 प्रतिशत धार्मिकस्थल इसी शहर में हैं। बनारस को भी मंदिरों का शहर कहा जाता है और पूरी दुनिया के लोग आध्यात्म की खोज और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस शहर का रूख करते हैं। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने प्राचीन शहरों के विकास के लिए बजटमें 100 करोड़ रूपए का प्रावधान किया था और शहरी विकास मंत्रालय भी मोदी के संसदीय क्षेत्र को चमकाने मेंं कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वाराणसी में गंगा और उसके घाटों की सफाई, आधारभूत ढांचे के विकास, सड़कों के चौड़ीकरण, सीवेज सिस्टम में सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए भी बड़े पैमाने पर योजनाएं शुरू होने की उम्मीद है।

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