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अजमेर। हाल ही में वायुसैना की जरूरत के मुताबिक फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीद सौदा औपचारिक तौर पर हस्ताक्षर होने के और करीब आ गया। कहा जा रहा है कि तीन हफ्तों में यह समझौता हो जाएगा।
यह भारत सरकार और उनके रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की सफल राजनीति और दूरंदेशी का ही परिणाम है कि न केवल फ्रांस 36 राफेल लडाकू विमान लगभग 780 करोड यूरो में भारत को बेचने को राजी हो गया है जिसके लिए वह पहले 11 अरब यूरो की मांग कर रहा था बल्कि अमरीका की दिग्गज कम्पनीयां बोईंग और लॉकहीड मार्टिन भी अपने विमान एफ 18 आई एन व एफ 16 न केवल भारत को बेचने को तैयार हैं वरन उनका निर्माण भी भारत में ही भारतीय कम्पनीयों के साथ मिलकर करने का सोच रही हैं जो मोदी जी के मेक इन इण्डिया पॉलिसी का ही नतीजा है जिसके चलते ये बडी विमानन कम्पनीयां भारत का रूख कर रही हैं।
यदि फ्रांस कम कीमत पर भारत को राफेल विमान देने की भारत की शर्त पर सहमत नहीं होता तो यह सौदा रद्द होने का खतरा मंडरा रहा था जिसके चलते भारत सरकार कम लागत वाले अपेक्षाकृत सस्ते अमरीकी लडाकू विमान एफ 16 या एफ 18 खरीदने के अमरीकी प्रस्ताव पर विचार करने को तत्पर नजर आ रही थी साथ ही अमरीका इन विमानों का निर्माण भारत में कर तकनीकि हस्तांतरण को भी राजी था
ऐसे में फ्रांस के पास भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था क्योंकि अमरीकी कम्पनीयां निजी भारतीय कम्पनीयों के साथ विमानों के इंजन भी भारत में ही बनाने का प्रस्ताव लेकर आई थी जो भारत के ए.एम.सी.ए. (एडवाँस मल्टीरोल काम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट के लिये भी लाभदायक होता और यह इंजन उन विमानों में भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
इसके अतिरिक्त निर्माण के अलावा रखरखाव व ओवरहॉलिंग हब भी भारत में ही बनाने का प्रस्ताव अमरीकी कम्पनियों ने रखा है जिसके तहत भारतीय कम्पनीयों को उन देशों से भी आर्डर मिलने की पूरी संभावना होगी जो लगभग 3000 से ज्यादा अमरीकी एफ 16 या एफ 18 विमान इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस सबके चलते यदि फ्रांस के हाथ से राफेल लडाकू विमान का यह सौदा निकल जाता तो यह उसके लिए सबसे बडे घाटे का सौदा होता क्योंकि 780 करोड यूरो में भी यह सौदा फ्रांस के लिए बुरा नहीं है। अभी यह सौदा केवल केवल 36 विमान आपूर्ती का है जो भविष्य में 120 विमान का आंकडा भी छू सकता है।
यदि फ्रांस की डेसाल्ट कम्पनी जो राफेल का निर्माण करती है, भारत में उत्पादन इकाइ का निर्माण करती है तो इससे भारत के हल्के लडाकू विमान तेजस व पांचवी पीढी के लडाकू विमान के डिजाइन व निर्माण मे भी सहयोग का अवसर भी प्राप्त हो सकता है और भारत के अगले विमानवाहक युद्ध पोतों आई.एन.एस. विक्रान्त व आई.एन.एस. विशाल के लिए भी अत्याधुनिक लडाकू विमान तैयार करने का मौका हासिल हो सकता है।
यही कुछ कारण हैं कि फ्राँस इस सौदे को कम कीमत में भी छोडना नहीं चाहता इसे हमारे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की दूरदर्शिता ही कहेंगे की फ्रांस भारत को अपने पूर्व प्रस्ताव से इतनी कम कीमत पर विमान बेचने की भारत की शर्त पर तैयार हो गया।
आइए जाने राफेल विमान में क्या खूबियां है जो उसे अन्य विमानों से बेहतर बनाती हैं:—
विंग स्पैन : 10.90 मीटर
लम्बाई : 15.30 मीटर
उँचाई : 5.30 मीटर
वजन भार (रहित) : 10 टन
अधिकतम टेक आॅफ वजन : 24.5 टन
बाह्य भार : 9.5 टन
सर्विस सीलिंग : 50,000 फुट
उपरोक्त के अतिरिक्त यह विमान मीडियम मल्टीरोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट है जो हवा—से—हवा, हवा से जमीन पर हमले करने के साथ ही परमाणु आयुध ले जाने में भी सक्षम है। इसका रैडार इलैक्ट्रोनिक वॉरफेयर सिस्टम युक्त होने के साथ साथ एक ही साथ कई लक्ष्यों को पहचान कर नष्ट करने की क्षमता देता है जो लम्बी दूरी कर रैकोनिसैंस के साथ दुश्मन के रैडार को जाम करने की क्षमता भी उपलब्ध कराता है। विमान की रेंज 3700 कि.मी. के लगभग है। इसकी यही खूबियां इसे अन्य प्रतियोगी विमानों से आगे ला खडा करती हैं।
प्रशान्त झा