मुंबई। बॉलीवुड में सुप्रसिद्ध संगीत जोडी लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल ने अपने कई सुपरहिट संगीतबद्ध गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया लेकिन अमर अकबर एंथनी का गीत संगीत जगत की अमूल्य धरोहर के रूप में आज भी याद किया जाता है।
वर्ष 1977 में प्रदर्शित अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर की मुख्य भूमिका वाली मनमोहन देसाई की सुपरहिट फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ के यूं तो सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन इस फिल्म का एक गीत हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें आज भी संगीत जगत में अमूल्य धरोहर के रूप में याद किया जाता है।
इस गीत में पहली और अंतिम बार लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार जैसे नामचीन पाश्र्वगायकों ने अपनी आवाज दी थी। इन सबके साथ ही इसी फिल्म के गीत ‘माई नेम इज एंथोनी गोंजालविस’ के जरिये प्यारे लाल ने अपने संगीत शिक्षक एंथोनी गोंजालविस को श्रंद्धाजलि दी है।
लक्ष्मीकांत कांताराम कुदलकर का जन्म 1937 में हुआ था। नौ वर्ष की छोटी सी उम्र मे हीं उनके पिता का निधन हो गया जिसके कारण उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। बचपन के दिनों से ही लक्ष्मीकांत का रूझान संगीत की ओर था और वह संगीतकार बनना चाहते थे।
लक्ष्मीकांत ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उस्ताद हुसैन अली से हासिल की। इस बीच घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए लक्ष्मीकांत ने संगीत समारोह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन्होंने वाद्य यंत्र मेंडोलियन बजाने की शिक्षा बाल मुकुंद इंदौरकर से हासिल की। इसके साथ ही मशहूर संगीतकार जोड़ी हुस्न लाल-भगत राम से उन्होंने वायलिन बजाना भी सीख लिया।
एक बार लक्ष्मीकांत को महान गायिका लता मंगेशकर के संगीत कार्यक्रम में मेडोलियन बजाने का मौका मिला। इस कार्यक्रम में प्यारेलाल शर्मा भी हिस्सा ले रहे थे। लता मंगेशकर ने तभी संगीतकार शंकर जयकिशन, एस.डी.बर्मन और सी. रामचंद्र के सहायक के रूप में लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल के नाम सुझाए।
संगीतकार जोडी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने कैरियर की शुरूआत उस जमाने की स्थापित संगीतकार जोडी कल्याणजी आनंद जी के सहायक के रूप में की। सहायक के तौर पर उन्होंने मदारी सत्ता बाजार, छलिया और दिल भी तेरा हम भी तेरे जैसी कई फिल्मों में काम किया। इस बीच उनकी मुलाकात भोजपुरी फिल्मों के निर्माता के परवेज से हुयी जिन्होंने लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल को चार फिल्मों में संगीत देने का प्रस्ताव दिया लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से किसी भी फिल्म में उन्हें संगीत देने का मौका नहीं मिल पाया।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की किस्मत का सितारा वर्ष 1963 में प्रदर्शित निर्माता-निर्देशक बाबू भाई मिस्त्री की क्लासिक फिल्म ‘पारसमणिÓ से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल को बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।
कहा जाता है फिल्म ‘पारसमणि’ में लता मंगेशकर से गवांने के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अपनी जेब से कुछ पैसे भी दिए थे। फिल्म पारसमणि की सफलता के बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा और एक से बढ़कर एक संगीत देकर श्रोताओं का दिल जीत लिया। लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के पसंदीदा पार्श्वगायकों के रूप में मोहम्मद रफी का नाम सबसे पहले आता है। वर्ष 1990 में प्रदर्शित फिल्म क्रोध में अपने संगीतबद्ध गीत ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया तू बड़ा याद आया के जरिये लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने मोहम्मद रफी को अपनी श्रद्धांजलि दी है।
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म दोस्ती के लिए सबसे पहले उन्हें यह पुरस्कार मिला। इसके बाद मिलन, जीने की राह, अमर अकबर एंथनी, सत्यम शिवम सुंदरम, सरगम और कर्ज के लिए भी लक्ष्मीकांत प्यारे लाल को यह सम्मान प्राप्त हुआ। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने चार दशक से अधिक लंबे सिने करियर में लगभग 500 फिल्मों को संगीतबद्व किया। लक्ष्मीकांत 25 मई 1998 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।