इंदौर। इंदौर शहर ने रविवार को एक बार फिर इतिहास रच दिया। इंदौर से दिल्ली तक लीवर को सुरक्षित पहुंचाने के लिए एक बार फिर शहर का यातायात कुछ देर के लिए थम गया।
लिवर के साथ ही किडनी को शहर के दूसरे अस्पताल तक ले जाने के लिए दो ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए।, जहां से मृत व्यक्ति अंग दूसरे अस्पतालों में पहुंचाए जाकर किसी का जीवन बचाया गया।
पलसीकर कालोनी निवासी रमेश असरानी को कल ब्रेन डेड घोषित कर दिया था। मुस्कान ग्रुप के सेवादार जीतू भवानी और हेमंत छाबड़ा ने रमेश असरानी के बेटे सन्नी असरानी से संपर्क किया। बेटे ने नेत्रदान की हामी भरी तो सेवादारों ने उन्हें लीवर, किडनी व त्वचा दान के लिए भी मनाया। सुबह सर्जरी कर उनके अंग ट्रांसप्लांट के लिए निकाले गए। मुस्कान ग्रुप के सेवादार नरेश फुदवानी ने बताया कि रमेश के अलग-अलग अंगों को 6 लोगों में प्रत्यारोपित किया जाएगा।
9 मिनट में एयरपोर्ट पहुंची एंबुलेंस
चोइथराम अस्पताल से एम्बुलेंस में डॉक्टरों की टीम 11.46 बजे लेकर एयरपोर्टं के लिए रवाना हुई और नौ मिनट का सफर तय एयरपोर्ट पर 11.54 बजे टीम पहुंची। यहां से गुडग़ांव के लिए रवाना होने की प्रक्रिया की गई। इधर चोईथराम अस्पताल से कार से किडनी लेकर बाम्बे हॉस्पिटल लेकर गए। इनके साथ में पुलिस वाहन भी था, इसके साथ ही चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा व व्यवस्था के लिहाज से पुलिसकर्मी तैनात रहे। मेदांता गुडग़ांव के डॉ. संजय के साथ तीन सदस्यीय टीम थी। मेदांता इंदौर के डॉ. संदीप श्रीवास्तव ने कहा कि इंटर स्टेट ट्रासप्लांट का दूसरा केस है, दोनों इंदौर से ही है। इंदौर ट्रांसप्लांट के मामले में देश का बड़ा सेंटर बनने जा रहे है।
ये दो ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए
लिवर और किडनी ले जाने के लिए रविवार को दो ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए। पहली कॉरिडोर चोइथराम अस्पताल से एयरपोर्ट तक दूसरा कॉरिडोर चोइथराम से बॉम्बे हॉस्पिटल तक बनाया गया। जिला प्रशासन और पुलिस दल ने सुबह 9.30 बजे से तैयारी शुरू कर दी थी। बॉम्बे हॉस्पिटल के मरीज को किडनी लगाई जाएंगी। आंखें और त्वचा बैंकों में रखी गईं।
इससे पहले 7 अक्टूबर को
गौरतलब है कि इससे पहले 7 अक्टूबर को शहर में पहली बार ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था। तब चोइथराम अस्पताल में भर्ती खरगोन जिले के बरूड़ गांव निवासी ब्रेन डेड मरीज रामेश्वर खेड़े का लीवर निकालकर विमान से गुडग़ांव ले जाया गया था। एक माह पहले 7 अक्टूबर को बनाए गए ग्रीन कॉरिडोर की लंबाई करीब 10.4 किलोमीटर थी। तब डॉक्टरों ने कहा था कि चोइथराम अस्पताल से लीवर लेकर एम्बुलेंस 12 मिनट में एयरपोर्ट पहुंच जाना चाहिए, लेकिन एम्बुलेंस ने दूरी महज आठ मिनट में तय कर ली थी। इस काम में शहरवासियों ने तो सहयोग किया ही, ड्राइवर की काबीलियत भी काम आई थी। एम्बुलेंस के आगे-आगे पुलिस की गाड़ी माइक पर अनाउंस करती जा रही थी और सड़क पर चलने वाले लोग रास्ता देते जा रहे थे ताकि एम्बुलेंस समय पर एयरपोर्ट पहुंच सके।
पंजीयन कराना जरूरी
जिला प्रशासन द्वारा व्यवस्था की जा रही है कि अगले एक वषज़् में इंदौर में ही अंगदान से प्राप्त लीवर को ट्रांसप्लांट किया जाए। इसके लिये आपरेशन थियेटर और विशेषज्ञ चिकित्सकों की व्यवस्था की जा रही है। कानूनी तौर पर भी इंदौर आगज़्न सोसायटी को सक्षम बनाया जा रहा है। अंगदान लेने और देने का अधिकार इंदौर में चोइथराम और बाम्बे हास्पिटल को है। अंगदान के लिये किसी भी मरीज का पंजीयन कराना जरूरी है।
ज़्यादा मुश्किल था ये केस
कमिश्नर संजय दुबे ने बताया कि अंगदान का ये मामला पहले से ज्यादा गंभीर था, क्योंकि मृतक रमेश को हाई बीपी की शिकायत थी और यदि समय पर बीपी कंट्रोल नहीं होता तो उनके अंगों का उपयोग नहीं किया जा सकता था। उन्होंने बताया कि इस बार दानदाता के परिजन को इलाज के दौरान लगे सभी बिल माफ़ करवाए गए है।