दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। जंग के इस्तीफे के बाद दिल्ली के नए उप राज्यपाल पद पर ताजपोशी के लिये कई नाम सामने आ रहे हैं।
वैसे यह विचार किया जाना जरूरी है कि नए उपराज्यपाल की नियुक्ति के बाद क्या यह सुनिश्चित हो पाएगा कि राजनिवास और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच टकराव की स्थिति निर्मित न हो।
क्योंकि उपराज्यपाल के रूप में नजीब जंग का कार्यकाल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ उनके टकराव के चलते लंबे समय तक याद किया जाएगा।
स्थिति तो यह हो गई थी कि दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री दो विपरीत ध्रुव बन गए थे तथा इस स्थिति के चलते दिल्लीवासियों के हितों की जो अनदेखी हुई तथा प्रदेश में जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में जो बाधा पड़ी उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब नजीब जंग भले ही यह कहें कि उन्होंने किसी के दबाव में आकर इस्तीफा नहीं दिया है तो आखिर उससे क्या होने वाला है। क्योंकि उप राज्यपाल नजीब जंग दबाव में तो थे ही।
अभी पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के हालात के संदर्भ में उपराज्यपाल के प्रतिकूल टिप्पणी की गई थी कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पास आखिर कुछ अधिकार तो होने ही चाहिए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हमेशा ही यह आरोप लगाते रहे हैं कि उप राज्यपाल नजीब जंग उन्हें केन्द्र सरकार के इशारे पर परेशान कर रहे हैं तथा उन्हें सत्ता संचालन के लिए पूर्ण बहुमत मिला होने के बावजूद काम नहीं करने दिया जा रहा है।
दिल्ली में पिछले कुछ महीनों से स्थिति यह हो गई थी कि प्रदेश की संपूर्ण व्यवस्था उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के टकराव की भेंट सी चढ़ गई थी।
वैसे केजरीवाल के आरोपों को अगर राजनीतिक भी मान लिया जाए तब भी उपराज्यपाल जैसे गरिमामय पद पर आसीन व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन संवैधानिक मूल्यों एवं मर्यादाओं के दायरे में करे तथा उपराज्यपाल द्वारा सरकार के श्रेष्ठ सचेतक व पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई जानी चाहिए न कि उपराज्यपाल राजनीतिक मानसिकता से प्रेरित होकर राजनिवास को कूटनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना ले।
वैसे भी संवैधानिक मर्यादा के अनुरूप उप राज्यपाल या राज्यपाल का पद भले ही अधिक प्रतिष्ठित व बड़ा है लेकिन मुख्यमंत्री तो आखिर मुख्यमंत्री होता है क्योंकि वह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को मुखिया है, जिसे लोकतंत्र के भाग्यविधाता अर्थात् मतदाताओं ने सत्ता के शिखर तक पहुंचाया है।
लेकिन राज्यपाल या उपराज्यपाल ऐसा मानते नहीं हैं तथा उनके द्वारा संबंधित प्रदेश सरकार के कामकाज में अनावश्यक दखलंदाजी करते हुए सीधा टकराव मोल ले लिया जाता है।
बाद में स्थिति इतनी विस्फोटक हो जाती है कि आरोपों-प्रत्यारोपों के दौर में लोकतांत्रिक मर्यादाएं व वर्जनाएं भी तार-तार होने लगती हैं तथा अंत में कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ता है। ऐसे में देश में यह सिलसिला बंद होना चाहिए क्योंकि राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, राज्यपाल-उपराज्यपाल हों या मुख्यमंत्री।
संविधान व लोकतंत्र से बढक़र कोई नहीं है तथा उन्हें संविधान व कानून का प्रभुत्व तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। सरकार को यह तय करना होगा कि दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच जो टकराव की स्थिति निर्मित होती रही तथा जनहितों की घोर अवहेलना होती रही, वह स्थिति अब दूसरे राज्यों में निर्मित न हो।
केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह राज्यपाल या उपराज्यपाल को उनका मूल संवैधानिक काम ही करने दे तथा उन्हें केन्द्र सरकार या केन्द्र में सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी के एजेंट के रूप में काम करने के लिए बाध्य न करे तथा उन पर किसी तरह का अनुचित दबाव न डाला जाए।
क्योंकि राजभवन पर अगर हमेशा ही पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर काम करने का दबाव डाला जाएगा तो फिर लोकतंत्र पर इसका बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
वैसे दिल्ली के उपराज्यपाल के पद से इस्तीफा देने के बाद नजीब जंग ने कहा है कि वह पहले ही अपने पद से इस्तीफा देना चाहते थे, केन्द्र की भाजपा सरकार लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी, तभी उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उन्हें अपने पद पर बने रहने के लिए कहा था।
नजीब जंग का यह कथन स्वाभाविक हो सकता है क्यों कि संभव है कि उन्होंने पहले भी अपने इस्तीफे का मन बनाया रहा हो। हालांकि नजीब जंग से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल या अन्य किसी को अब कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए क्योंकि जंग के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री के टकराव की जो स्थिति रही वह परिस्थिति आधारित थी तथा उम्मीद की जाती है कि जंग का जीवन सुखद व भविष्य उज्ज्वल रहेगा।
वैसे राजनेताओं या सार्वजनिक पदों पर आसीन लोगों से यह भी उम्मीद की जाती है कि वह हमेशा ही मानवता के दायरे में काम करें तथा अपयशकारी कार्यों से दूर रहें।
: सुधांशु द्विवेदी