लखनऊ में समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में पहुंचे समान विचारधारा वाले अन्य दलों के नेताओं के उत्साह को देखकर ऐसा लग रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही समाजवादी पार्टी व अन्य दलों के बीच महागठबंधन की उम्मीद परवान न चढ़ पाई हो लेकिन यूपी में अगर स्वस्थ मन से प्रयास किए गए तो उक्त महागठबंधन अस्तित्व में आ सकता है।
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सपा द्वारा लगातार यह कोशिश की जा रही है कि उसके साथ वैचारिक एकता रखने वाले राजनीतिक दलों को अपने पाले में लाकर आपसी तालमेल को मजबूत बनाकर चुनाव लड़ते हुए जीत की संभावनाओं को पुख्ता बना लिया जाए।
समाजवादी पार्टी की ओर से इस दिशा में कोशिश भी शुरू कर दी गई है। इसके तहत सपा नेताओं ने कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड व राष्ट्रीय लोकदल के नेताओं से भी बातचीत की है। वैसे कांग्रेस और रालोद की ओर से यह कहा गया है कि सपा के साथ यूपी में उनका चुनावी गठबंधन तभी हो सकता है जब पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में ही राज्य का आगामी विधानसभा चुनाव लड़े।
उधर समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के प्रयासों की बदौलत ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पार्टी में सभी विवादों का पटाक्षेप हो चुका है तथा अखिलेश यादव के नेतृत्व को लेकर भी अब कोई विवाद की स्थिति नहीं होगी। क्योंकि पार्टी के रजत जयंती समारोह में माहौल काफी खुशनुमा व सामान्य नजर आया तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के पैर भी छुए।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पार्टी नेताओं के आपसी मतभेद खत्म करने में मुलायम सिंह को काफी हद तक सफलता मिली है। वैसे यूपी में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लडऩे वाली है तथा जानकारों का ऐसा मानना है कि विधानसभा चुनाव के बाद उत्तरप्रदेश में बसपा बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरेगी।
बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा राज्य में कथित तौर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, कुशासन तथा कानून -व्यवस्था की बदहाली के साथ-साथ केन्द्र की भाजपा सरकार की नाकामियों को भी आक्रामक ढंग से मुद्दा बनाया जा रहा है, उसका लाभ बसपा को यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में मिलना तय है।
वैसे प्रदेश की सपा सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खाते में भी कई उपलब्धियां दर्ज हैं। मुख्यमंत्री का दावा है कि उन्होंने अपने पिछले चुनावी घोषणापत्र के सभी वादे पूरे कर दिए हैं। राज्य में पढ़ाई, सिंचाई तथा दवाई की व्यवस्था मुफ्त कर दी गई है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावा है कि उनकी सरकार ने प्रदेश में बिना किसी भेदभाव के विकास एवं जनकल्याण के लक्ष्य को पूरा किया है। इसके अलावा राज्य में अन्य राजनीतिक दल एवं गठबंधन भी अपनी चुनावी जीत के लिए रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। यूपी के विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस भी काफी गंभीर है।
बिहार में नीतीश कुमार की विजयश्री में अग्रणी योगदान सुनिश्चत करने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को यूपी की कमान सौंपने के साथ ही बड़े संगठनात्मक परिवर्तन किए हैं, ऐसे में कांग्रेस भी अगर यूपी में इस संभावित महागठबंधन में शामिल होने को तैयार है तो इससे स्पष्ट है कि महागठबंधन का दायरा व्यापक होगा लेकिन यह महागठबंधन तभी आकार ले पाएगा जब संबंधित राजनीतिक दल व उनके नेता अपनी सोच को भी व्यापक रखें।
बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व जब जदयू और समाजवादी पार्टी के बीच महगठबंधन को आकार देने की बातचीत चल रही थी, कई फार्मूले तय हो गए थे। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को इस महागठबंधन का चीफ बनाने की बात तय हो गई थी लेकिन बाद में बात ऐसी बिगड़ी कि पूरी प्लानिंग फेल हो गई तथा समाजवादी पार्टी ने तो खुद को महागठबंधन से पूरी तरह अलग करके राज्य के सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार ही उतार दिए।
लेकिन अब उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन समान विचारधारा वाले दलों के लिए आपसी एकजुटता प्रदर्शित करने एवं उसका राजनीतिक फायदा उठाने का मौका एक बार फिर आया है तथा ऐसा लगता है कि यूपी में महागठबंधन के सपने को परवान चढ़ाने के हिमायती सभी राजनीतिक दल आपसी समन्वय, संवाद एवं सदाशयता का परिचय देते हुए साझा रणनीति को अमल में लाएंगे।
: सुधांशु द्विवेदी