Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
जातिवाद और छूआछूत के प्रबल विरोधी थे बाबा रामदेवजी - Sabguru News
Home Breaking जातिवाद और छूआछूत के प्रबल विरोधी थे बाबा रामदेवजी

जातिवाद और छूआछूत के प्रबल विरोधी थे बाबा रामदेवजी

0
जातिवाद और छूआछूत के प्रबल विरोधी थे बाबा रामदेवजी
lok devta Baba Ramdev Ji
lok devta Baba Ramdev Ji
lok devta Baba Ramdev Ji

भक्ति, ज्ञान और कर्म ये विरासत में नहीं मिलते और ना ही इन पर बलपूर्वक कोई अधिकार कर सकता है। सामाजिक व्यवस्था में जातिवाद,छुआ-छूत कितना भी बढ़ गया हो लेकिन चमत्कार, आस्था और श्रद्धा के केन्द्र में इनका कोई भी अस्तित्व नजर नहीं आता है।

राजस्थान की मरू भूमि के जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में अब से छह सौ साल पहले तंवर वंश के राजा हिन्दू राजा अजमल जी राज करतें थे। उनके संतान नहीं होती थी। वे द्वारका में श्रीकृष्ण के दर्शन हेतु गए, वहां उन्हें पुत्र होने का वरदान मिला तथा श्रीकृष्ण के रूप में रामदेव जी के अवतार की बात कही ऐसा माना जाता है। बाद में ऐसा हो भी गया।

सायर मेघवंशी बाबा रामदेव जी के परम भक्त थे। एक दिन जब वे जंगल घूमने जा रहे थे तब एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। वहां देखा तो पेड़ पर बंधे पालने में एक बच्ची रो रही थी। बाबा रामदेवजी ने सायर मेघवंशी को बच्ची का लालन-पालन के लिए कहा। बाबा रामदेवजी उसे बहन मानते थे और उससे बहुत प्रेम करते थे।

उस समय जातिवाद, छुआ-छूत चरम सीमा पर चल रहा था। बाबा रामदेवजी इसके विरोधी थे और सभी छोटी कही जाने वाली जातियों को आदर सत्कार देते थे। समाज में व्यापत कुरीतियों का बाबा रामदेवजी ने अंत किया। इससे राज घराने के लोग नाराज थे तब बाबा रामदेवजी ने पोकरण के पास गांव रामदेवरा बसाया ओर वहीं रहने लगे। थोडे दिन बाद उन्होंने जीवित समाधि लेने की घोषणा कर, जगह पर खुदाई शुरू करवा दी।

जैसे ही डाली बाईं को मालूम पडा वह तुरंत बाबा रामदेवजी के पास जाकर बोलीं, पहले मैं समाधि लूंगी। दोनों में बहस छिड गई। डाली बोलीं हे बाबा ये समाधि खुदवा रहे हो यदि इसमें मेरे श्रृंगार का सामान निकला तो मैं ही पहले-पहल समाधि लूंगी और ऐसा ही हुआ। समाधि जब पूरी ख़ुद गई तब उसमें श्रृंगार का सामान निकला ओर बाबा रामदेवजी देखते हीं रह गए और डाली बाईं ने समाधि ले ली और इस दुनिया से विदा हो गईं।

अपनी भक्त की ये आस्था देख बाबा रामदेवजी ने नवमीं के तीन दिन बाद जीवित समाधि ले ली क्योकि डाली बाईं ने समाधि नवमी के दिन ली। आज भी बाबा रामदेवजी की समाधि के साथ साथ डाली बाईं की समाधि को श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा जाता है।

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की दूज से दसमी तक रामदेवजी की समाधि के दर्शन करने के लिए सम्पूर्ण भारत सें पचास लाख से ज्यादा श्रदालु आते हैं। राम सा पीर की जय।