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राजपुरोहित समाज छात्रावास फायरिंग प्रकरण के अनुसंधान में जबरदस्त खामियां, बरी हुए अभियुक्त

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राजपुरोहित समाज छात्रावास फायरिंग प्रकरण के अनुसंधान में जबरदस्त खामियां, बरी हुए अभियुक्त
firing in sirohi, asp ans other police officers on the crime spot on that night. file photo
firing in sirohi, asp ans other police officers on the crime spot on that night. file photo

सबगुरु न्यूज-सिरोही। राजपुरोहित छात्रावास में 8 जनवरी, 2014 को मनोज पुराहित पर कथित रूप से हुई फायरिंग की घटना की पुलिस अनुसंधार रिपोर्ट न्यायालय में धराशायी हो गई। बचाव पक्ष ने पुलिस अनुसंधान में इतनी खामियां न्यायालय के समक्ष रखी कि न्यायालय ने इनकी दलीलों से सहमत होते हुए संदेह का लाभ देते हुए इस प्रकरण में बनाए गए अभियुक्तों को बरी कर दिया।

बचाव पक्ष के अधिवक्ता मानसिंह देवडा ने न्यायालय को बताया कि इस मामले में एफआईआर दर्ज होने से पहले ही अनुसंधान शुरू कर दिया गया जो कि रिपोर्ट के संदेहास्पद होने की इशारा करता है। वहीं जिस पिस्टल की बरामदगी बताई गई है उसे सील नहीं किया गया था। इसकी बेलेस्टिक और एफएसएल रिपोर्ट नहीं निकलवाई गई थी।

पुलिस का अनुसंधान अधिकारी इस मामले में पकडे गए युवक सुरेन्द्रसिंह नोवी के जेब से बरामद कारतूसों के समय के समय को भी सही तरीके से नहीं दर्शा पाए। इतना ही नहीं बरामदगी रिपोर्ट पर अभियुक्त के हस्ताक्षर तक नहीं करवाए गए, जिससे यह सिद्ध हो सके कि पिस्टल और कारतूस उससे बरामद किए गए हैं। जो पिस्टल बरामद हुई पुलिस अनुसंधान रिपोर्ट में उसकी यह रिपोर्ट तक नहीं थी कि यह चलने योग्य है या नहीं है। रिपोर्टकर्ता मनोज पुरोहित और प्रत्यक्षदर्शी के बयानों में भी इतना विरोधाभास है कि घटना के होने में संदेह होता है।

अधिवक्ता ने बताया कि पुलिस रिपोर्ट में इंडिका कार का आना बताया गया जबकि पुलिस ने मौके से स्विफ्ट कार बरामद की। अनुसंधान अधिकारी ने इस प्रकरण में मनोज पुरोहित को घटना से पहले जिस मोबाइल से फोन आए थे उन नम्बरों की काॅल डिटेल या सीडीआर रिपोर्ट तथा बातचीत की एफएसएल रिपोर्ट पेश नहीं की गई।

घटना के तुरंत बाद ही पुलिस घटना स्थल पर पहुंच गई, लेकिन रिपोर्टकर्ता मनोज पुरोहित की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। रिपोर्ट दो घंटे बाद दी गई और इसमें भी रिपोर्ट में देरी का कारण स्पष्ट नहीं किया गया। पुलिस ने सुरेन्द्रसिंह को 11.05 बजे से पहले चिकित्सालय में भर्ती करवाया, लेकिन उसकी जेब से जिंदा कारतूसों की बरामदगी 11. 20 बजे बताई।

इसमें यह नहीं बताया गया कि इन कारतूसों की बरामदगी चिकित्सालय में की गई या घटनास्थल पर। ऐसे कई तथ्यों और दस्तावेजों के अभाव में विशिष्ट न्यायाधीश संतोष मित्तल ने संदेह का लाभ देते हुए इस प्रकरण में अभियुक्त बनाए गए पाली जिले के नोवी निवासी सुरेन्द्रसिंह पुत्र भवानीसिंह, वेराजेतपुरा निवासी सुरेन्द्रसिंह पुत्र किशनसिंह तथा जालोर जिले के नौसरा निवासी भोपालसिंह पुत्र इंद्रसिंह को हत्या के प्रयास समेत अन्य मामलों में दर्ज प्रकरण में दोषमुक्त करार दिया है।
-पुलिस के लिए भी सोचनीय
इस प्रकरण में न्यायालय ने पुलिस अनुसंधान में जितनी कमियों को उजागर किया है इसे देखकर पुलिस विभाग के आला अफसरों को भी यह सोचने पर मजबूर होना पड जाएगा कि ऐसे अनुसंधान अधिकारियों के रहते अपराधों पर अंकुश कैसे लग सकता है। इस प्रकरण में अनुसंधान की कमी पुलिस पर दोनों तरह से अंगुली उठाती है।

यदि अपराध हुआ था तो अनुसंधान अधिकारी इसकी समुचित जांच नहीं कर पाए और उनके आला अधिकारी इसका निरीक्षण नहीं कर पाए। अपराध नहीं हुआ था तो पुलिस को ऐसे विरोधाभासी तथ्यों की मौजूदगी में न्यायालय का समय खराब नहीं करना चाहिए था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कमियां तब आई जब जिले में पुलिस विभाग की तत्कालीन सबसे बडी अनुसंधान अधिकारी और एएसपी निर्मला बिश्नोई और सिरोही डीएसपी भी मौजूद थे।

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