सबगुरु न्यूज। ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया ने अपनी तपस्या के द्वारा ब्रह्मा विष्णु और महेश को छोटे छोटे बच्चे बनाकर उनका लालन पालन करने लगी। ऋषि अत्रि ने तीनों ही बालकों का नामकरण संस्कार कर जगत पिता ब्रह्मा जी का नाम चन्द्र के रूप में तथा विष्णु जी को दत्तात्रेय व भगवान शिव को दुर्वासा नाम दिया। बालक दिनों दिन बड़े होने लगे और धीरे-धीरे उनके दीक्षा संस्कार हुए।
कुछ समय बाद चन्द्रमा व दुर्वासा ने माता पिता से अपने संकल्पित कार्य में रत होने की आज्ञा मांगी। यह सुनकर अत्रि और अनसूया को बहुत दुख हुआ लेकिन चन्द्र ओर दुर्वासा ने आश्वासन दिया कि हम अपने अंश को दत्त के पूर्ण अंश में छोड़ जाते हैं। दत्त ही दत्तात्रेय के नाम से जाने गए और तीनों देवता एक स्वरूप आ गए। यह सुन माता पिता भी अति आनंदित हो गए।
दत्त ने कई वर्षो तक आश्रम में रहकर एक दिन अपने माता पिता से तीर्थाटन की अनुमति मांगी। माता-पिता थोड़ा दुःखी हुए। तब दत्तात्रेय ने कहा कि आप जब मुझे स्मरण करेंगे उसी क्षण मैं उपस्थित हो जाऊंगा।
इस प्रकार दत्तात्रेय पूरे देश में अवधूत वेष धारण कर घूमे। भगवान दत्तात्रेय के बारे में अनेक चमत्कारी ज्ञान व वैराग्य पूर्ण कथाएं अनेक पुराणों में आईं हैं। श्रीमद् भागवत पुराण में यह बताया गया है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरूओं से कैसे शिक्षा प्राप्त की।
ब्रह्म पुराण में कार्त वीर्य अर्जुन को एक सहस्त्र भुजाएं प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया। वाल्मीकि रामायण में दत्तात्रेय ने रावण को शाप दिया कि तुम्हारे शरीर पर बंदर पैर रखेंगे क्योंकि रावण ने एक बार भगवान दत्तात्रेय का अभिमंत्रित जल कलश चुराया था।
महाभारत में भी वर्णन मिलता है कि दत्तात्रेय ने साध्य देवताओं पर कृपा की थी। पद्म पुराण के अनुसार पुरूरवा के पुत्र आयुष के पुत्र नहीं था। बडा विचित्र चरित्र दिखाकर दत्त भगवान ने परीक्षा ली अंत में फल देकर नहुष नाम का पुत्र दिलाया। ज्ञान वैराग्य पूर्ण अवधूत गीता इनका अलोकिक ग्रंथ है।
भगवान दत्तात्रेय आठ मास भ्रमण करते और चार महीने तपस्या। भिक्षा के लिए उनका विशेष स्थान है करवीर क्षेत्र। भोजन व शयन का स्थान माहुरगढ और ध्यान के लिए जूनागढ़ एव गुरू शिखर। राजस्थान के आबू पर्वत पर गुरू शिखर पर वे जब तपस्या कर रहे थे तब उनके माता पिता ने उनको याद किया तो दत्तात्रेय उनको भी गुरु शिखर पर ले आए। यहां दत्तात्रेय द्वारा स्थापित श्री भस्मेशवर महादेव जी का प्राचीन शिव लिंग है। यहां मान्यता है कि जिनके संतान नहीं होती यहां के दर्शन से लाभ मिल जाता है।
सौजन्य : भंवरलाल