सकल चराचर तू ही जग मे कमलाक्षी नारायणी। तू ही भैरवी भद्रा काली चामुंडा जय हो रूद्राणी। हे अखिल ब्रह्मांड की माता तू ने ही इस जगत का निर्माण किया है। हे मा तूने ही हिमालयके घर जन्म ले पार्वती बनी।
सदियों से जगत के आधार शिव को बारम्बार प्रणाम। लाल नेत्र गोरे बदन ओर जो अपने अंग पर भस्मी लगाते हैं उस नीलकंठ महामृत्युंजय की शरण मे यह जग सारा है।
एक ही परमात्मा के दो रूप दिखने वाले स्त्री ओर पुरूष शिव ओर शक्ति आपको सदा ही प्रणाम। महामाया ने शिव को प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की और सती के रूप में खुद को बलिदान किया, फिर हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।
उन्होंने अपनी तपस्या जारी रखी। तृतीय तिथि को उन्होंने शिव से शादी कर ली। भाद्रप्रद मास की तिथि तृतीया हरतालिका तीज के रूप में मनाई जाती है, इसलिए गणगौर उनके सम्मान में मनायी जाती है।
ईसर और गौरा या शिव और पार्वती के बीच असीम प्यार को आदिवासी समुदाय के पुरुषों और महिलाओं को भी मुहैया कराने और उनके साथ बातचीत करने का मौका मिलता है और इस समय के दौरान, वे भागीदारों का चयन करते हैं और शादी करने के लिए भाग जाते हैं।
यह त्यौहार महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, जो पूजा व उपवास करती हैं और प्रार्थना करती हैं, जो विवाहिता हैं, उनके पतियों के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं और अविवाहित लड़कियां अपनी पसंद के एक अच्छे वर के लिए प्रार्थना करती है कि उन्हे मनोवांछित फल मिले।
इस अवसर के लिए पार्वती की छवियां विशेष रूप से तैयार की जाती है और गहने और बेहतरीन पोशाक से शिव को तलवार और ढाल से सजाया जाता है। शिव व पार्वती को ईसर व गणगौर के रूप में शहर में बैंड बाजे व घोडे की पालकी मे बैठाकर घुमाया जाता है और बाद में पानी में विसर्जन किया जाता है।
प्रतिमा बनाने का एक अन्य तरीका है। नदी के किनारे से कीचड़ लेना और होली जलने के बाद उसकी राख को मिला दिया जाता है, उन्हें कपड़े से बांधकर सजाया जाता है और पूजा की जाती हैं। चैत्र शुक्ला तृतीय को पानी में विसर्जित किया जाता हैं।
शिव ओर पार्वती के असीम प्रेम
हरतालिका तीज पर दोनो का विवाह हुआ। इसी अमर प्रेम की यादगार मे शिव व पार्वती को ईसर ओर गणगौर के रूप मे सजा धजा कर गाजे बाजे के साथ सवारी निकाली जाती है।
प्रकृति बसन्त ऋतु का श्रृंगार कर पूर्ण यौवना दुल्हन की तरह सज जाती है ओर पुरूष रूपी उत्तरायण का सूर्य प्रचंड होकर अपनी ऊर्जा के विशाल पुंज को प्रकृति पर फैला देता है और प्रकृति ओर पुरूष का यह मिलन ऐसा लगता है कि गौरी ओर शंकर का मिलन सजे धजे ईसर व गणगौर के रूप में दिखाई देता है। प्रकृति का यह राजसी स्वरूप ईसर ओर गणगौर के वैभवशाली रूप को दर्शाता है।