वे दोनों अभिमान ओर घमण्ड से इतने चूर हो गए कि वास्तविक शक्ति का अपमान करने लग गए। उन्हें भ्रम हो गया था कि हम दोनों अखिल ब्रह्मांड के महानायक है, जिस शक्ति वो आधारित थे उनका भी अपमान करने लगे। दोनों की असलियत देख शक्ति को भी हंसी आ गई ओर वो शक्तियां उन दोनों को शव बना कर चली गई।
ब्रह्माजी के वरदान से हलाहल नाम वाले अनेक महापराक्रमी दैत्य उत्पन्न हो गए और उन्होंने क्षणभर में तीनों लोको को जीत लिया तथा अपनी सेना के साथ कैलाश पर्वत व वैकुण्ठ को भी घेर लिया तब शिव व विष्णु उनके साथ युद्ध करने लगे। युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा ओर अंत में शिव व विष्णु जी बडे प्रयत्न पूर्वक उन दैत्यों को मार डाला।
दोनों ही अपनी जीत का गुणगान करने लगे और गोरी व लक्ष्मी का अपमान करने लगे। दोनों दैवियों ने अपना अपमान देख उसी क्षण शंकर व विष्णु जी से पृथक हो गई। गोरी व लक्ष्मी के जाने से दोनो देव निस्तेज, शक्तिहीन, विक्षिप्त तथा चेतनारहित हो गए।
ब्रह्माजी ने जब यह देखा तो वह अकेले ही ब्रह्मांड की व्यवस्था का संचालन करने लग गए। लेकिन कुछ महीने बाद वो परेशान हो गए तथा अपने मानस पुत्रों को व देवताओं को बुलाया तथा उनसे कहा तुम सभी मिलकर शक्ति की पूजा अर्चना करो ताकि विष्णु व शिव का तेज लौटकर आए तथा वे अपनी अपनी व्यवस्था का स्वय संचालन करे क्योंकि मै अकेला सृष्टि के इतने कार्य नहीं कर सकता हूं।
सभी देवों ने हिमालय पर्वत पर बैठ कर आदि शक्ति की पूजा करी। देवी प्रकट होकर बोली इन दोनों ने गोरी ओर लक्ष्मी का अपमान किया है। इन दोनों को यह झूठा अभिमान हो गया कि हम हमारी शक्ति के बल से जीते हैं जबकि यह सब मेरी ही कृपा से हुआ है। अब ये दोनों देवियां लोप हो गई है अतःसमय आने पर ही ये प्रकट होगी।
हे मानव तेरा जीवन दूसरों को धोखा देते देते ही निकल गया है ओर इतना होने के बाद भी तू मन मे छिपे हुए महामानव की ओर नहीं देख रहा है तू हर कदम पर अभिमान से भरा, झूठ, कपट का सहारा लेकर हकीकत को कुचलता जा रहा है। तेरे इस क्षणिक लाभ व मोह से क्या तू अमर हो जाए। नहीं, तू अमर नहीं होगा। इतिहास के पन्नों पर धूल की तरह चिपका रहेगा। तेरे जीवन के अब चन्द दिन बाकी बचे हैं अतः मानव जीवन को धन्य बना ओर सत्य के मार्ग पर चल।