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कुम्भ के प्रवर्तक हैं भगवान श्री आद्य शंकराचार्य - Sabguru News
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कुम्भ के प्रवर्तक हैं भगवान श्री आद्य शंकराचार्य

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कुम्भ के प्रवर्तक हैं भगवान श्री आद्य शंकराचार्य
simhastha kumbh mahaparv 2016
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पूर्ण कुम्भोधिकाल अहितस्तं वै बहूधा नु सन्त:।
सइमा विश्वा भुवनानि प्रत्यंग कालं तमाहू परमे व्योमन॥

अत: इसकी प्राचीनता के संबंध में संदेह की कोई भी संभावना नहीं रह जाती है। परन्तु इस पर अवश्य विचार किया जा सकता है कि कुम्भ मेले का धार्मिक स्वरूप संसार में कब से प्रचलित हुआ? और किसके द्वारा? पर्याप्त अध्ययन एवं शोध के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि कुम्भ मेलों के प्रवर्तक वस्तुत: भगवान आदि शंकराचार्य है।

पच्चीस सौ (2500) वर्ष पूर्व वास्तव में उन्होंने कुम्भ पर्व के प्रचार एवं प्रसार की व्यवस्था हिंदू धर्म और संस्कृति को सुदृढ़ एवं अक्षुण्ण बनाने तथा नाना प्रकार के सर्व कल्याण के उद्देश्य से ही किया था।

अत: उन्हीं के आदर्श एवं आचरणानुसार ही कुम्भ पर्व के चारों सुप्रसिद्ध तीर्थों (हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक) में सभी सम्प्रदायों के साधु-महात्मा आदि देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जगत कल्याण की भावना से धर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु उसका प्रचार एवं प्रसार करते रहें, ताकि सर्वविधि से देश और समाज के समस्त सम्प्रदायों, प्राणियों का कल्याण हो सके।

विश्व जनाकर्षण का केंद्र कुम्भ पर्व की वैज्ञानिकता शास्त्र सम्मत है – हमारी सम्पूर्ण सृष्टि जीवनवर्द्धक और जीवन संहारक दो तत्वों से युक्त है, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में क्रमश: आक्सीजन प्रधान पिंड (अर्थात जीवनवर्द्धक) और कार्बनडाइऑक्साइड प्रधान पिण्ड (अर्थात जीवन संहारक) कहा जाता है।

यह पृथ्वी विभिन्न ग्रहों, उपग्रहों तथा नक्षत्रों आदि की गतिविधियों के परिणामस्वरूप कभी जीवनवर्द्धक वातावरण से परिपूर्ण हो जाती है, तो कभी जीवन संहारक हो जाती है। किसी समय विशेष में पृथ्वी के किस क्षेत्र में कैसा और क्या प्रभाव पड़ेगा यह हमारे विद्वान और दूरदर्शी महर्षियों ने ज्योतिष विज्ञान द्वारा हजारों वर्ष पहले ही जान लिया था।

उसी आधार पर सम्भवत: पृथ्वी के स्नान विशेष पर काल विशेष में कृत्य विशेष करने की परम्परा अनादिकाल से आज तक चली आ रही है। पृथ्वी के उन्ही विशिष्ट स्थानों का नाम तीर्थ है और तादृश्य काल की उपस्थिति का नाम ही पर्व है।

इस बात को कोई माने अथवा न माने समस्त हिन्दू पर्व या त्यौहार एक ठोस वैज्ञानिक नींव पर आधारित है। इसलिये हमारे तीज त्यौहार में कोई न कोई वैज्ञानिक रहस्य अवश्य ही छुपा रहता है, जो प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य और आत्मिक शुद्धि की दृष्टि से अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।

कुम्भ पर्व में स्नान, दिन और ग्रह विशेष के संधियोग में स्नान के पीछे एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है। बृहस्पति पिण्ड जीवन वर्द्धक तत्वों को सबसे प्रमुख केंद्र माना जाता है। वैदिक वांग्मय में बृहस्पति को जीव नाम से सम्बोधित किया जाता है।

शनि पिण्ड जीवन संहारक तत्वों से युक्त है, इसलिए अपनी संहारक प्रकृति के कारण यह मारक गृह (मारकेश) के नाम से जाना जाता है। सूर्य के द्वशांस (बारहवें हिस्से) को छोड़कर शेष समस्त भाग जीवनवर्धक तत्वों से युक्त है। वैज्ञानिक खोजों के अनुसार सूर्य में पाये जाने वाले धब्बे वाला हिस्सा ही केवल जीवन संहारक तत्वों से पूर्ण है।

चन्द्रमा अमावस्या के समीपस्थ दिनों में जब क्षीणावस्था में रहता है तभी वह संहारक तत्वों से युक्त होता है, तत्पश्चात शेष दिनों में विशेषत: पूर्णमासी के दिन जब वह अपनी पूर्णावस्था में होता है, सर्वाधिक जीवनवर्धक हो जाता है।

शुक्र ग्रह सौम्य स्वभाव वाला होते हुए भी दूसरों द्वारा पोषित होता है अर्थात अन्य ग्रहों से अधिक प्रभावित होता है। अत: जीवन संहार करने में अतिशय मदद करता है। इसलिए उसे आसुरी स्वरूपशक्ति का प्रतीक माना जाता है।

मंगल पिण्ड का प्रभाव मात्र रक्त के प्रभावित करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बौद्धिक विश्लेषण में भी पड़ने वाले उसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। बुध पिण्ड अपना अलग से कोई प्रभाव नहीं डालता है।

उभयविद पिण्ड अपना अलग से कोई प्रभाव नहीं डालते हैं। उभयविद पिण्डों के तात्विक संघर्ष में बुध ग्रह जिसका पलड़ा भारी देखता है, उसी के साथ हो जाता है अर्थात जिस ग्रह के साथ बैठता है उसी के अनुसार प्रभाव डालता है।

इसी कारण ज्योतिष शास्त्र में इसे नपुंसक ग्रह की संज्ञा दी गई है। राहु एवं केतु ज्योतिष विद्या में स्वतंत्र ग्रह न माने जाकर इन्हें नीच ग्रह कहा गया है। अत: ये भी जीवन संहारक तत्वों से ही पूर्ण हैं।

सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड को ज्योतिष विज्ञान में सुगम अध्ययन की दृष्टि से बारह विभागों में बांटा गया है, जिन्हें राशि कहा जाता है। नक्षत्रों की आकृति के अनुसार ही उन बारह राशियों को मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन आदि नाम दिया गया है। सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड का राशि विशेष क्षेत्र किसी न किसी ग्रह पिण्ड से ही प्रभावित होता है। इन्हीं वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर उन राशियों से सम्बन्धित ग्रह पिण्ड को उनका स्वामी माना जाता है।

इसी आधार पर सूर्य सिंह का तथा चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है, शनि मकर और कुम्भ राशियों का स्वामी है तथा मंगल मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। अत: जब बृहस्पति मारकग्रह (मारकेश) की राशि में प्रवेश करता है तो जीवन वर्द्धक तत्वों को उत्प्रेरित कर उसे अत्यधिक जीवन वर्द्धक बनाता है।

इस प्रकार पृथ्वी के जिस केंद्र स्थान पर जितने समय तक उस अवस्था में रहता है, उस स्थान पर उतने ही समय तक जीवन वर्द्धक तत्वों से आसपास के वातावरण को परिपूर्ण रखता है, यह अवसर विशेष ही कुम्भ पर्व की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है।

अत: जब जीवसंहारक ग्रह शनि से प्रभावित कुम्भ राशि में बृहस्पति प्रवेश करता है तथा सूर्य और चन्द्रमा मंगल के स्वामित्व राशि में प्रवेश करते हैं तो इस प्रकार के ग्रह योग में हरिद्वार में, पंचपुरी क्षेत्र में जीवनवर्द्धक तत्वों की प्रमुखता एवं अधिकता रहती है, जिसके कारण वहां का वातावरण ही अमृतमय हो जाता है।

इस काल में जितने भी आस्तिक तथा नास्तिक हरिद्वार में जाकर कुम्भ पर्व के समय नियमित जीवन व्यतीत करते हैं और गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं, वे इस प्रकृति प्रदत्त दुर्लभ संयोग से अवश्यमेव लाभान्वित होकर निरोग एवं दीर्घजीवी होते हैं।

इसी प्रकार दैत्य गुरु शुक्र की राशि वृषभ में बृहस्पति की उपस्थिति और शनि की राशि मकर में सूर्य और चन्द्रमा के स्थित होने पर त्रिवेणी के संगम (तीर्थराजप्रयाग में) पर अमृत कणों की वर्षा होती है अर्थात जीवन वर्द्धक तत्वों की प्रचुरता रहती है जिससे व्यक्ति लाभान्वित हो लम्बे समय तक स्वस्थ एवं दीर्घजीवी बने रह सकते हैं।

इसी तरह जब बृहस्पति सिंह राशि में तथा सूर्य मेष राशि में और शुक्र की राशि तुला में चन्द्रमा प्रवेश करता है, तो इस अवस्था में महाकाल (अर्थात उज्जैन) के पवित्र स्थान पर जीवन वर्द्धक तत्वों की बहुलता हो जाती है। ऐसे में शिप्रा नदी के शुद्ध जल में स्नान करने से जीवनवर्द्धक वातावरण का आस्वादन कर प्रत्येक व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है। यही चारों निर्धारित कुम्भ पर्व की वैज्ञानिकता है।

मेष राशिगते सूर्ये सिंहराशै बृहस्पति:।
उज्जयिन्यां भवेत्कुंभ:, सर्वसौख्य विवर्धन: ॥

सूर्य के मारक भाग का प्रभाव जब सीधे पृथ्वी पर पड़ता है, तब भादों की तपती धूप में अनेक व्यक्ति रोग पीड़ित एवं त्रस्त रहते हैं। उस समय सूर्य की राशि सिंह में बृहस्पति प्रवेश करता है और सूर्य एवं चन्द्रमा सहित उस राशि (अर्थात सिंह) में उपस्थित रहते हैं, तब गोदावरी के पवित्र उद्गम स्थल नासिक में जीवन वर्द्धक तत्वों की प्रधानता एवं अधिकता रहती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति पुण्य नदी के जल में स्नान कर लाभान्वित हो सकता है।

कुम्भ पर्व की अलग ऐतिहासिक परम्परा और महत्ता भी है। कुम्भ पर्व से संबंधित उन्हीं चारों पवित्र स्थलों का अपना एक अलग ही ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक महत्व है, जिस पर हिन्दू संस्कृति को गर्व है।
-परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती