भोपाल। मध्यप्रदेश विगत दो-तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदाएं झेल रहा है। बीता वर्ष 2015 तो किसानों और खेती के लिए बहुत की खराब रहा है। इस वर्ष की दोनों ही फसलें पूरी तरह चौपट हो गई थीं।
पहले तो ओला-अतिवृष्टि से चलते गेहूं, चने की फसलें बर्बाद हो गई थीं, इसके बाद बारिश की कमी और पीला मौजेक बीमारी के चलते सोयाबीन की फसल भी पूरी तरह चौपट हो गई, जिसका मुआवजा अभी तर वितरित किया जा रहा है।
इसके बावजूद मध्यप्रदेश का चयन कृषि कर्मण अवार्ड के लिए होना आश्चर्यजनक है। आखिर, मध्यप्रदेश को क्यों मिला कृषि कर्मण अवार्ड? दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार खेती के क्षेत्र में लगातार नवाचारों का इस्तेमाल कर इसे लाभ का धंधा बनाने के लिए प्रयासरत है।
वहीं, खेती में किसानों की और ज्यादा उत्साहजनक भागीदारी के लिए मध्य प्रदेश ने नया रोडमेप तैयार कर लिया है। अगले साल किसानों को सहकारी बैंकों से 20 हजार करोड़ रूपयों के ऋण दिए जाएंगे। दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 25 हजार हेक्टेयर में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने जैसी नवाचारी पहल की जाएगी।
वर्ष 2020 तक 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होने लगेगी। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में सभी जिलों के सिंचाई प्लान बनना शुरू हो गए हैं। किसानों को 86 प्रतिशत सब्सिडी पर सोलर पम्प उपलब्ध करवाए जाएगे। मध्यप्रदेश की भंडारण क्षमता देश में सबसे ज्यादा है। वर्ष 2010-11 में भंडारण क्षमता 79 लाख मीट्रिक टन थी, जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 158 लाख मीट्रिक टन हो गई है।
खाद्यान्न उत्पादन बढा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की सोच और लगन का परिणाम रहा कि किसानों ने भी भरपूर सहयोग दिया और प्रदेश को लगातार चौथी बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला।
प्रदेश में सभी खाद्यान्न का उत्पादन वर्ष 2014-15 में बढ़कर 320.43 लाख टन हो गया है। यह पिछले साल के खाद्यान्न उत्पादन 242.40 लाख टन से 32.19 प्रतिशत ज्यादा है। प्रदेश ने कृषि से जुड़े हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। कृषि केबिनेट के कारण किसानों के हित में होने वाले फैसलों में तेजी आयी।
भरपूर सिंचाई
सबसे पहले प्रदेश ने कृषि के लिये जरूरी सिंचाई पर ध्यान दिया। वर्ष 2008-09 में सिंचाई 9.75 लाख हेक्टेयर में होती थी जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 32.29 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गई है। सभी स्त्रोतों से वर्ष 2012-13 में कुल सिंचाई 89.65 लाख हेक्टेयर में सिंचाई हुई थी, जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 102.48 लाख हेक्टेयर में हो गई है।
कपिल धारा योजना में 27 हजार 448 कुओं का निर्माण हुआ है। तीसरी फसल का क्षेत्र वर्ष 2014-15 में बढ़कर 3.60 लाख हेक्टेयर हो गया है। इसी प्रकार पड़त भूमि वर्ष 2007 में 14.33 लाख हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2014-15 में घटकर 6.95 लाख हेक्टेयर रह गई है।
जैविक बीज उत्पादन में बनेगा देश का अग्रणी प्रदेश
खेती में नवाचारी पद्धतियों का उपयोग बढ़ाते हुए मेडागास्कर पद्धति से धान की खेती का क्षेत्र बढ़कर 5.48 लाख हेक्टर हो गया है। इसी पद्धति का उपयोग गेहूँ, मक्का, चना, सोयाबीन और सरसों के उत्पादन में भी किया गया है। प्रदेश के किसानों के लिये यह नई पहल है।
जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए 40 हजार गांवों में बीज गुणवत्ता कार्यक्रम चलाचा गया है। खेती में यंत्रों का उपयोग बढ़ाते हुए 200 गांवों को यंत्रदूत गाँव बनाया गया है। इसके अलावा 16 जिलों के 32 विकास खंडों में जैविक खेती का कार्यक्रम बड़े पैमाने पर लिया गया है।
खेती में नवाचारी प्रयासों के अंतर्गत दस शासकीय प्रक्षेत्र में जैविक बीज उत्पादन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके परिणाम देखते हुए निकट भविष्य में मध्यप्रदेश जैविक बीज उत्पादन में देश का अग्रणी प्रदेश बनेगा।
मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना में वर्ष 2014-15 में करीब 82 हजार किसान को लाभ मिला। इसी प्रकार मुख्यमंत्री विदेश अध्ययन यात्रा योजना में वर्ष 2014-15 में 40 किसान जर्मनी, इटली, हॉलेण्ड गए थे।
किसानों, कृषि के मैदानी अधिकारियों और विशेषज्ञों के बीच आपसी समन्वय और संवाद के लिए कृषि महोत्सव का आयोजन किया गया। किसानों की उत्साहजनक भागीदारी को देखते हुए अब हर साल विभिन्न विषयों पर केन्द्रित कृषि महोत्सव आयोजित करने की पहल की गई है।
किसानों की साख सुविधा बढ़ी
किसानों को आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से सहकारी बैंकों से उन्हें वर्ष 2014-15 में 13 हजार 598 करोड़ रूपये का लोन दिया गया। वर्ष 2010-11 में यह लोन राशि 5845 करोड़ रूपए थी। अब तक 78.85 लाख किसानों के पास क्रेडिट कार्ड की सुविधा है। सिर्फ वर्ष 2014-15 में ही 13.36 लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवाए गए हैं।
भरपूर बिजली
बीज उत्पादन के क्षेत्र में अनूठी पहल करते हुए 2400 बीज उत्पादक सहकारी समितियां बन गई हैं। इन समितियों के किसान सदस्यों ने वर्ष 2014-15 में 29.45 लाख क्विंटल बीज का उत्पादन किया। इससे बीज की उपलब्धता बढ़ गई है। किसानों को दस घंटे बिजली मिल रही है।
वर्ष 2014-15 में 4480 करोड़ रूपए की सब्सिडी उन्हें दी गई। उन्हें 6.33 लाख अस्थाई और 3.03 लाख स्थाई पम्प कनेक्शन दिए गए हैं। किसानों के पास आज भरपूर बिजली है। वर्ष 2014-15 में 16.1 बिलियन यूनिट बिजली किसानों के पास उपलब्ध थी।