सम्मान के साथ जहर पीने वाला वास्तव मे बड़ी हैसियत का ही होता है। क्योंकि की वह खुद बडा है। मान सम्मान का शब्दकोश उसके पास नहीं होता है। अपमान रूपी जहर को वह पी जाता है, उसकी बिना शिकायत की खामोशी उस जहर को भी अमृत बना देती है। सही मायने में वह बडा व्यक्ति कहलाने का अधिकारी होता है अन्यथा पद कितना ही ऊंचा हो तो भी वो बड़ा नहीं होता है।
जहा नम्रता है, प्रेम है, सहनशीलता है, बैर विरोध नहीं है वह परमात्मा की तरह समदर्शी है तो छोटा होकर भी वह बडे व्यक्ति से भी बडा होता है। यदि यह समस्त गुण नहीं है तो वह ऊंचे आसन पर बैठकर भी छोटा ही होता है।
बदला लेने वाला तो नासमझ ही जाता है पहले अपने को जलाता है फिर दूसरों को तथा अपने उद्देश्य से भटक जाता है। भगवान भोलेनाथ तो सहनशीलता की एक अनुपम मिसाल हैं। उन्हें किसी भी नाम नाम से पुकारों वे कोई भेद नहीं मानते।
सरल, सच्चा, जीव और जगत के कल्याण के लिए ही जाना जाता है। इसलिए वे जग के कर्ता है ओर वे ही भरता। भृगु ऋषि ने जब विष्णु जी को लात मारी तो भगवान विष्णु मुस्करा कर कहने लगे हे ऋषि आप के पांव में कहीं चोट तो नहीं आई। वास्तव में यही बड़े व्यक्ति की पहचान है।
महाशिवरात्रि इस बात का संदेश देती है कि मानव कल्याण के लिए त्याग व तपस्या ही सबसे बड़ा सम्मान होता है और इसके लिए अपमान को पीकर भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकि मान व सम्मान तो मानव के द्वारा बनाई गई विचारधारा है।
शंकर भगवान् ने जगत के कल्याण के लिए समुद्र मंथन से निकले जहर को पिया नहीं तो यह सृष्टि समाप्त हो जाती। इस जगत में वह ही बड़ा होता है जो दूसरों के सम्मान की ही चिंता करता है अपने अपमान की नहीं।
सौजन्य : भंवरलाल