अजमेर/पुष्कर। तीर्थगुरू पुष्करराज के शांतानन्द उदासीन आश्रम में गुरूवार को एक विशाल धार्मिक आयेाजन के दौरान वर्तमान महंत राममुनिजी महाराज ने शिष्य हनुमानरामजी उदासीन को आश्रम का महंत बनाया गया।
इस मौके पर देश के कौने-कौने से आए संत, महात्मा और महापुरूषों के साथ आश्रम से जुडे सैकड़ों श्रृद्धालु भी मौजूद रहे। भव्य समारोह में महामण्डलेश्वरों और संत महात्माओं ने महंत बने हनुमानराम का जोरदार स्वागत किया और आशीर्वाद स्वरूप माला और शॉल पहनाकर महंताई ग्रहण कराई।
सेवादारों ने महंत हनुमानराम को माला पहनाकर आर्शीवाद प्राप्त किया। इससे पूर्व बुधवार से शान्तानन्द उदासीन आश्रम में चल रहे रामचरितमानस के अखण्ड पाठ का समापन विधिवत आरती और रामधुनी के साथ किया गया।
आयोजन को सम्बोधित करते हुए महामण्डलेश्वर स्वामी हंसराम साहिब ने कहा कि सनातन धर्म में मठों एवं मन्दिरों में यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। आज के इस युग में सन्त कम होते हैं। राममुनिजी ने एक ऐसा ही पुनित कार्य किया कि अपने जीवनकाल में ही मंहताई और उत्तराधिकारी पद दे दिया।
यह अपने आप में एक उदाहरण बन गया कि दूसरे आश्रमों में भी जहां महन्त अस्वस्थ है वहां नवयुवकों को आश्रमों की बागडोर देकर इस सनातन धर्म की परम्परा की ध्वजा को ऊंची करेगें।
महामण्डलेश्वर स्वामी कपिलमुनि महाराज ने कहा कि जो सेवा कर सन्त बनते हैं और एक भगवा पहनकर सन्त बनते हैं उनके सन्तों को सेवा और सिमरन का ध्यान रहता है। जिसको भी जीवन में सन्त बनना है वह पहले से सेवा करे। जिस तरह हनुमान भाऊ ने हिरदाराम की सेवा की अपने गुरू परम्परा को सेवा में रखकर आगे बढ़ाया।
महंताई पद देने वाले राममुनि महाराज ने कहा कि सत्संग, सेवा और सिमरन की ज्योत आगे बढ़ाने की बागडोर मैं महंत हनुमानराम भाऊ के जिम्मे कर रहा हूं। स्वामी के सिखाए रास्ते पर चलकर श्रद्धालुओं को भी सही रास्ता दिखाएंगें।
महंताई व उत्तराधिकारी बने महंत हनुमानराम भाऊ ने कहा कि जो जिम्मेदारी समाज को सही रास्ते पर ले जायेगी उसे अपने जीवन में गुरूओं के सिखाए सही मार्ग पर ले जाने का कार्य करेंगे। उन्होंने बच्चा, बुढ़ा या बीमार हो सभी परमेश्वर के यार, सभी करे भावना से सेवा, पाये लोक परलोक में सुख अपार की भावना से श्रद्धालुओं को सेवा व सिमरन करने पर जोर दिया।