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माहे रमजान यानी जहन्नम से निजात का माह - Sabguru News
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माहे रमजान यानी जहन्नम से निजात का माह

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माहे रमजान यानी जहन्नम से निजात का माह
Mahe Ramadan 2016
Mahe Ramadan 2016
Mahe Ramadan 2016

जयपुर। माहे रमजान इस्लामी साल का सबसे बा-बरकत माह है। इसी माह में अल्लाह की आखिरी मुकद्दस किताब कुरान मुहम्मद पर नाजिल हुई। बिरादारान-ए-इस्लाम का यह पाक माह मंगलवार से शुरू हो रहा है। इसी माह में एक रात शब-ए-कद्र है। जो हजार रातों से अफजल है।

इसी रात में अल्लाह-त-आला ने अपने बंदों के लिए कुरान करीम भी नाजिल भी किया। शब-ए-कद्र की फजीलत है कि जो इस रात में ईमान के साथ अर्ज व शवाब की नीयत से कयाम करेगा तो उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।

रमजान माह को तीन भागों में बांट दिया गया है। प्रत्येक भाग को अशरा कहते हैं। पहला अशरा, दूसरा अशरा और तीसरा अशरा। कुरान पाक में अल्लाह-त-आला फरमाते हैं कि माहे रमजान वह पाक महीना है जिसमें कुरान उतारा गया जो लोगों को हिदायत करने वाला है।

हदीश में हजरत अबु होरैरा से मरवी है कि अल्लाह के रसूल फरमाते हैं, तुम्हें रमजान मिल रहा है। यह बड़ा बा-बरकत महीना है। अल्लाह-त-आला ने इसके रोजे तुम पर फर्ज किए। इस माह में जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।

इस माह की सबसे बड़ी फजीलत यह है कि इसके जरिए बड़ी मगफिरत होती है। उसके गुनाह खत्म होते हैं। हदीश में हजरत अबू हुरैरा से मरवी है कि मुहम्मद ने फरमाया कि जिसने ईमान के साथ अर्ज व शवाब की नीयत से रोजे रखे उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।

रमजान के रोजों की एक फजीलत यह भी है कि कयामत के दिन रोजादार की मगफिरत और जन्नत में जीत की बुलंदी के लिए अल्लाह की बारगाह में सिफारिश करेगा। जन्नत में आठ दरवाजे हैं। उनमे से एक का नाम रेयान है। इससे सिर्फ रोजेदार ही जाएंगे।

रमजानुल मुबारक माह में नमाज की बड़ी फजीलत है। नमाजे तरावही कयामुल लैल था। तहज्जुद एक नमाज का नाम है जो रात के आखिरी समय पढ़ी जाती है। हदीश में रसूल ने फरमाया कि जिसने ईमान के साथ अर्ज व शवाब की नीयत से रातों में नमाज कायम किया तो उसके पिछले सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं (बुखारी मुस्लिम)।

माहे रमजान कुरान के नुजूल की सालगिरह है। इस माह में कुरान की तिलावत पढ़ने का खास एहतेमाम करना चाहिए। इस माह में रोजा रखने के लिए सहरी खाने की बडी़ फजीलत है। हदीश में जहरत अनस बिन मालिक से मरवी है। सहरी खाओ इसलिए कि सहरी में बरकत है (बुखारी मुस्लिम)।

एक और हदीश में है इस वक्त अल्लाह-त-आला आसमानी दुनिया पर नुजूल फरमाता है। उस वक्त दुआएं मकबूल होती हैं। रोजेदार को चाहिए कि इस माह में खास तौर पर अपनी जुबान की हिफाजत करे। ना ही किसी से झगड़ा करे और न ही गीबत, चुगली, झूठ और गाली। फहश कलामी से बचना चाहिए। अगर कोई झगड़ा करे तो उससे कह दें कि मैं रोजे से हूं।

रमजानुल मुबारक माह में सदका खैरात की बड़ी फजीलत है। इस माह में एक दाना खर्च करने का शवाब सात सौ गुना या इससे भी ज्यादा है। इस माह में अल्लाह-त-आला अपने बंदों की दुवाओं को कुबूल करता है। इसलिए इस माह में कसरत से दुआ करनी चाहिए।