नई दिल्ली। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के द्वारा हाल में कराए गए अखिल भारतीय सर्वेक्षण से उजागर हुआ है कि करीब 82.7 प्रतिशत चिकित्सक अपने काम को लेकर तनाव में रहते हैं। एक ओर जहां, 46.3 प्रतिशत डॉक्टरों को हिंसा के कारण तनाव रहता है, वहीं 24.2 प्रतिशत को मुकदमे का डर सताता है।
13.7 प्रतिशत डॉक्टरों को आपराधिक मामला चलाए जाने से चिंता बनी रहती है। यह सर्वे चिकित्सा जगत में व्याप्त कठिनाइयों को लेकर कराया गया था, जिसमें सबसे चिंताजनक बात चिकित्सकों पर होने वाले हमलों और आपराधिक मामले दर्ज कराने को लेकर है।
इस मामले में डॉक्टरों की चिंता को इसी बात से समझा जा सकता है कि 56 प्रतिशत चिकित्सक हफ्ते में कई दिनों तक सात घंटे की सामान्य नींद भी नहीं ले पाते हैं।
सर्वे करीब 15 दिनों में ऑनलाइन तरीके से कराया गया, जिसमें 1681 चिकित्सकों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज कराई हैं। इनमें निजी ओपीडी, नर्सिग होम्स, कॉर्पोरेट अस्पतालों या सरकारी अस्पतालों में कार्यरत जनरल प्रैक्टिशनर, चिकित्सक, शल्य चिकित्सक, स्त्री रोग विशेषज्ञ और अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं।
यह आंखें खोल देने वाला सर्वे है, जो चिकित्सकों की मौजूदा हालत को दर्शाता है। सर्वे में भाग लेने वाले करीब 62.8 प्रतिशत डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें अपने मरीजों को देखते समय हर वक्त हिंसा का भय सताता है, जबकि 57.7 प्रतिशत को लगता है कि उन्हें अपने परिसर में सुरक्षा कर्मियों को नियुक्त कर लेना चाहिए।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि मेडिकल प्रोफेशन एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है और इसकी गरिमा दांव पर लगी है। आज इसे अन्य पेशों की तरह ही समझा जाता है और डॉक्टर भी अन्य लोगों की तरह असुरक्षित, असंतुष्ट और अपने भविष्य को लेकर चिंतित महसूस करते हैं। सर्वे से ज्ञात हुआ है कि डॉक्टर अपने काम से खुश नहीं हैं और ज्यादा चिंता इस बात को लेकर रहती है कि मरीजों का उन पर पहले जैसा भरोसा नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सकों के मन में हर वक्त भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक हमलों का भय छाया रहता है। सर्वे में भाग लेने वाले आधे से अधिक चिकित्सकों ने माना कि उन्हें निरंतर चिंता बनी रहती है। इनमें से कुछ तो बिल्कुल नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी इस पेशे को अपनाएं। अधिकांश डॉक्टरों का मत था कि उन्होंने चिकित्सा का पेशा इसलिए चुना, क्योंकि उन्हें यह व्यवसाय आदर्श लगता था, हालांकि अब यह पहले जैसा आदर्श काम नहीं रहा।
यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि अधिकांश डॉक्टरों को रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है। करीब 76.3 प्रतिशत डॉक्टरों को चिंतित रहने की शिकायत है।
आईएमए के एक पूर्व अखिल भारतीय अध्ययन के अनुसार चिकित्सकों पर सबसे अधिक हमले आपातकालीन सेवाएं देते समय होते हैं, जिनमें से 48.8 प्रतिशत घटनाएं आईसीयू में ड्यूटी के दौरान हुई हैं या फिर तब जब मरीज की सर्जरी हो रही थी। ज्यादातर ऐसे मामलों में हमलों की वजह अधिक जांच कराना और मरीज को देखने में देरी होना रहा है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि डॉक्टर्स डे के अवसर पर, यह आवश्यक है कि लोगों को बताया जाए कि डॉक्टरों की इस चिंता और तनाव से मरीजों के लिए परेशानी हो सकती है। डॉक्टर नाखुश रहेंगे तो मरीज कैसे खुश रह सकते हैं। मुकदमों के डर और पेशे में स्वतंत्रता की कमी की वजह से कई चिकित्सक दबाव में रहते हैं। इस सर्वे से तो यही जाहिर होता है।
चिकित्सकों और मरीजों का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है और इस सर्वे से यह संकेत मिलता है कि अब इस पेशे की गरिमा को बहाल करने का वक्त आ गया है। चिकित्सक भी मनुष्य है और वे कोई फरिश्ते नहीं हैं। यदि दवा और इलाज से मरीज ठीक नहीं हो पाता है, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि चिकित्सक पर ही हमला बोल दिया जाए।
आईएमए के ही एक अन्य अध्ययन से यह भी संकेत मिला है कि डॉक्टरों को सॉफ्ट स्किल्स में प्रशिक्षित करना भी जरूरी है।
सर्वे से ज्ञात हुआ कि मरीजों को उम्मीद होती है कि डॉक्टर उनसे अच्छे से पेश आएंगे। करीब 90 प्रतिशत मरीज चाहते हैं कि डॉक्टर पहले अपना परिचय दें, मरीज को पहचानें, उसकी बात को ध्यान से सुनें, पूरी जानकारी ठीक से दें और जांच व चिकित्सा के तरीके के बारे में भलीभांति मरीज को समझाएं। साथ ही डॉक्टरों से यह भी उम्मीद की जाती है कि वे मरीज से पूछें कि उन्हें बात समझ में आई या नहीं।
करीब 40 प्रतिशत मरीजों ने कहा कि वे डॉक्टर से यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इलाज का अवसर देने के लिए मरीज को धन्यवाद दें। वहीं डॉक्टरों को भी सावधान रहने की जरूरत है। मरीज से ठीक से बात कीजिए, ध्यान से उसकी बात सुनिए, इलाज के बारे में समझाइए और मुस्कराते हुए मरीज का शुक्रिया भी अदा कीजिए।