भोपाल। भारत में लोग वर्षों से मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाते आए हैं, लेकिन बीते दो साल से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया गया और इस साल फिर लगातार तीसरी बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। यह अजब संयोग वर्ष 2014 से शुरू हुआ, जो तीसरे साल 2016 में हैट्रिक पूरी करेगा।
भारत में पर्वों का निर्धारण चंद्र द्वारा निर्धारित काल गणना एवं तिथि क्रमानुसार किया जाता है। यही कारण है कि बहुप्रचलित ईस्वी सन की गणना में त्योहार आगे-पीछे हो जाते हैं।
भारतीय पर्वों में केवल मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है। इसी कारण मकर संक्रांति प्रतिवर्ष एक निश्चित तिथि पर 14 जनवरी को मनाया जाता है।
सूर्य जिस राशि पर रहते हुए उसे छोड़ कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। अयन गति से होने वाले परिवर्तनों के चलते 2016 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को आएगी। इससे पहले 2014 और 2015 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई गई थी।
वर्ष 2016 के बाद 2019, 2020 में भी संक्रांति 15 जनवरी को है, जबकि लीप इयर होने से बीच में 2017 और 2018 में संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
2016 में सूर्य 14 जनवरी को आधी रात के उपरांत 1.26 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5.26 मिनट तक रहेगा। इस कारण मकर संक्रांति का महत्व 15 जनवरी को रहेगा।
शास्त्रों के अनुसार संक्रांति में पूण्य काल का विशेष महत्व है जो संक्रांति काल से 6 घंटे पूर्व और 16 घंटे बाद तक रहता है। जिसके लिए उदयकाल भी होना आवश्यक है। इसलिए 2016 की मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायं 5.26 बजे तक रहेगा।14 जनवरी को इस वर्ष कोई पुण्य काल नहीं होगा। इस काल बेला में स्नानदान और धार्मिक महत्व के कार्य किए जा सकेंगे।