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भगवा आतंकवाद के झूठ का शिकार बनी साध्वी प्रज्ञा - Sabguru News
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भगवा आतंकवाद के झूठ का शिकार बनी साध्वी प्रज्ञा

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भगवा आतंकवाद के झूठ का शिकार बनी साध्वी प्रज्ञा
Malegaon blast case : sadhvi Pragya Singh Thakur
Malegaon blast case : sadhvi Pragya Singh Thakur
Malegaon blast case : sadhvi Pragya Singh Thakur

क्या उसका कसूर केवल यह था कि वह भगवा वस्त्र पहनती थी, उसका अपराध यह था कि वह प्रबल राष्ट्रवादी थी, उसका दोष यह था कि उसने संन्यासिनी बनकर धर्म जागरण के रास्ते हिन्दुत्व जागरण का व्रत लिया। हम बात कर रहे हैं उस साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की जो लगभग 8 वर्ष से बिना किसी सीधे सबूत के जेल की यातना भोग रही है।

साध्वी प्रज्ञा को जिन गवाहों के बयान के आधार पर गिरफ्तार करके रखा गया है, वह भी पलट गए हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि तत्कालीन जांच एजेंसी एटीएस ने डरा धमकाकर साध्वी पर मालेगांव विस्फोट का षड्यंत्र रचने का दबाव बनाया था।

साफ है तत्कालीन कांग्रेस सरकार एक भगवाधारी हिन्दू संन्यासिनी को आतंकवादी ठहराकर भगवा आतंकवाद के अपने जुमले को सिद्ध करने का षड्यंत्र कर रही थी। गवाहों ने इसकी पोल खोलकर रख दी है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि साध्वी प्रज्ञा को किस बात की सजा दी जा रही है। उसे कर्नल पुरोहित की तरह क्लीन चिट क्यों नहीं दी जा रही।

देश में लम्बे समय तक सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस की मानसिकता सदैव हिन्दुत्व विरोधी रही है। वोटों की भूखी कांग्रेस ने सदैव हिन्दुओं और हिन्दुत्व को नीचा दिखाने के लिए षड्यंत्र रचे हैं। वह कांग्रेस ही थी जिसने हिन्दू धर्म की त्याग तपस्या और बलिदान का प्रतीक भगवा को आतंकवाद की संज्ञा देकर भगवा आतंकवादी जैसे शब्द का इस्तेमाल किया और हिन्दुत्व और हिन्दुओं के लिए काम करने वाली देशभक्त शक्तियों को इस शब्द से अपमानित किया।

इसे सिद्ध करने के लिए साध्वी प्रज्ञा जैसे न जाने कितने प्रबल राष्ट्रवादियों पर झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें जेल में यातनाएं दी गईं। हाल ही में मालेगांव धमाकों के आरोपी कर्नल पुरोहित एनआइए ने समझौता एक्सपे्रस में हुए धमाके मामले में क्लीन चिट दे दी।

अब इस प्रकरण में कोई आरिफ नाम के व्यक्ति का नाम सामने आया है। यह व्यक्ति उसी समय से फरार है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कर्नल पुरोहित पर जो हिन्दू आतंकवादी होने के आरोप लगे, उन्हें यातनाएं दी गईं, बदनाम किया गया उसका क्या जवाब है?

ध्वी प्रज्ञा की बात करें तो 2008 से अभी तक उसके खिलाफ कोई सीधा सबूत नहीं है। मकोका को भी देश के शीर्ष न्यायालय ने आरोपित करने की इजाजत नहीं दी है। सबसे सनसनीखेज घटना तो 22 अप्रैल को सामने आई जिसने पूरी तरह यह सिद्ध कर दिया कि साध्वी प्रज्ञा को फंसाने के लिए तत्कालीन जांच एजेंसियों ने पूरी तरह झूठा षड्यंत्र रचा।

6 अप्रेल को दिल्ली में मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान में दोनों गवाहों ने कहा है कि तत्कालीन जांच एजेंसी एटीएस ने उनसे डरा-धमकाकर बयान लिया था।

गवाह ने कहा कि फरीदाबाद और भोपाल की मीटिंग में मेरे सामने किसी ने बम फोडऩे या किसी को मारने या दंगा करने की चर्चा नहीं की। गवाह ने आगे कहा कि बम फोडऩे वाली बात मैंने पहले कभी अपने बयान में कही ही नहीं है।

गवाह ने यहां तक खुलासा किया है कि जब एटीएस मुझे भोपाल के मंदिर में ले गई तो वहां मुझे कहा गया कि जब भी तुम्हारा बयान हो तो यह कहना कि राम मंदिर पर शंकराचार्य रुका था। यह भी कहा कि यह पूरा बयान एटीएस ने ही लिखा था, मुझे तो कॉपी तक नहीं दी गई। यह बयान पूरी तरह निराधार है क्योंकि मैं कभी भोपाल नहीं गया और कोई मीटिंग अटेण्ड नहीं की।

गवाहों के इस खुलासे से अब यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि एटीएस पर तत्कालीन गृह मंत्रालय से जुड़े नेताओं, अधिकारियों का कितना दबाव था। इस षड्यंत्र में कई हिन्दूवादी संगठनों को लपेटकर उन्हें बदमाम करने की साजिश रची गई थी।

अब कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट तथा गवाहों की सच्चाई सामने आने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि साध्वी प्रज्ञा इस प्रकरण में कैसे दोषी हैं? उस पर मकोका कैसे लगाया जा सकता है? उसको लगातार इतनी यातनाएं देने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?

साध्वी प्रज्ञा को कैंसर जैसी बीमारी और उस पर जेल के भीतर मुख्तार जैसे अपराधी द्वारा जानलेवा हमला किए जाने के पीछे का सच क्या है? इन प्रश्नों का उत्तर देश जानना चाहता है।

प्रवीण दुबे