नई दिल्ली। कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में निचली अदालत द्वारा तलब किए जाने के आदेश के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
यह मामला उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला की कंपनी हडाल्को इंडस्ट्रीज को ओडिशा के तालाबिरा में कोयला ब्लॉक आवंटित करने में कथित गड़बड़ी से जुड़ा है।
डॉ. सिंह उस वक्त कोयला मंत्रालय भी संभाल रहे थे। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने गत 11 मार्च को डॉ. ङ्क्षसह, बिरला, पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख और तीन अन्य को आठ अप्रेल को आरोपी के रूप में अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था।
अदालत ने इन सभी को आपराधिक साजिश रचने, विश्वास तोडऩे और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के प्रावधानों के आरोपों के तहत तलब किया है। निचली अदालत के तलब आदेश को निरस्त करने संबंधी डॉ. सिंह की याचिका की सुनवाई इसी सप्ताह हो सकती है।
सितम्बर 2005 में पारख ने ओडिशा के तालाबिरा दो और तीन के कोयला ब्लॉक संयुक्त रूप से हडाल्को, महानदी कोलफील्ड्स और नेयवेली लिग्नाइट को आवंटित करने की सिफारिश की थी। कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सिंह ने उसी वर्ष अक्टूबर में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
अक्टूबर 2013 में सीबीआई ने एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें पारख और बिरला को आपराधिक साजिश रचने के लिए नामजद किया गया था। सीबीआई ने साक्ष्य के अभाव का हवाला देते हुए अगस्त 2014 में इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट भी दायर कर दी थी लेकिन उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद दो माह बाद उसने संशोधित रिपोर्ट पेश की।
नवम्बर 2014 में सीबीआई ने अदालत को बताया था कि उसके पास इस घटना का संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। न्यायालय ने सीबीआई से पूछा था कि आखिर उसने डॉ. मनमोहन सिंह के बयान दर्ज क्यों नहीं किए। इस वर्ष जनवरी में, सीबीआई ने डॉ. सिंह का बयान दर्ज किया था। सीबीआई ने जांच पूरी करने के लिए दो सप्ताह का वक्त मांगा था।