लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी सूबे में प्रचण्ड बहुमत हासिल करने के बाद शनिवार को नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में उनकी राय लेने के साथ ही मुख्यमंत्री का नाम सार्वजनिक कर देगी।
इसके बाद 19 मार्च को शाम 4.30 बजे प्रदेश में नये मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमण्डल का शपथ ग्रहण समारोह कांशीराम स्मृति उपवन में आयोजित किया जायेगा। सीएम पद की रेस में यूं तो कई नेताओं के नाम चल रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे आगे केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का नाम है।
उनके अब तक सफरनामे पर नजर डालें तो गाजीपुर से सांसद मनोज सिन्हा वर्तमान में रेलवे के राज्यमंत्री और संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। 01 जुलाई, 1959 को मोहनपुरा, गाजीपुर में पिता बीरेन्द्र सिंह और मां वृन्दवासिनी के घर पैदा हुए मनोज शुरुआत से ही मेधावी छात्र थे।
उन्होंने हाईस्कूल तक गांव में ही शिक्षा ग्रहण की और हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में मेरिट लिस्ट में यूपी में 08वीं रैंक हासिल की। इसके बाद इण्टरमीडिएट की परीक्षा उन्होंने राजकीय सिटी इन्टर कॉलेज में की और एक बार फिर मेरिट में आते हुए पूरे प्रदेश में 09वीं रैंक हासिल करने में कामयाब रहे।
मनोज आगे भी इस तरह बेहतर प्रदर्शन करते रहे और उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू) से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक और एम.टेक की उपाधियां प्राप्त कीं। इन दोनों में वह गोल्ड मेडेलिस्ट रहे।
छात्र जीवन में उनका रूझान राजनीति की ओर हुआ और वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभविप) से जुड़े। इसके साथ ही वह 1982 में बीएचयू के छात्रसंघ अध्यक्ष भी बने।
छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए मनोज सिन्हा को कई सरकारी विभागों से नौकरी का ऑफर मिलता रहा, लेकिन उन्होंने राजनीति को ही अपना करियर बनाने का फैसला किया। इससे पहले वह इन्टरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रमों में हिस्स लेते थे।
मनोज सिन्हा स्वामी विवेकानन्द के विचारों से बेहद प्रभावित रहे हैं और उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने स्वामी विवेकानन्द से जुड़ी हर पुस्तक का बेहद गहराई से अध्ययन करने के साथ उन्हें आत्मसात भी किया है।
मनोज सिन्हा ने राजनीति जीवन पर नजर डालें तो वर्ष 1989 से 1996 तक वह भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य थे।
1991 में उन्होंने गाजीपुर से पार्टी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में सीपीआई के विश्वनाथ शास्त्री 32294 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए। उन्हें 191339 तथा निकटतम प्रतिद्वंदी रहे मनोज सिन्हा को 159045 मतों से ही संतोष करना पड़ा था।
इसे बाद 1996 में मनोज सिन्हा फिर मैदान में उतरे और 27174 मतों के अन्तर से चुनाव जीते। उन्हें 275706 तथा दूसरे स्थान पर रहे बसपा के युनूस को 170207 ही मत मिला। इसके बाद 1998 में सपा से ओमप्रकाश सिंह 17173 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए।
उन्हें 265705 तथा दूसरे स्थान पर रहे मनोज सिन्हा को 248532 मतों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं 1999 में हुए चुनाव में मनोज सिन्हा फिर 11033 मतों के अन्तर से चुनाव जीते। उन्हें 240592 तथा सपा के ओमप्रकाश सिंह को 229559 ही मत मिला। वर्ष 2004 में मनोज सिन्हा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
तब सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को 415687 मत मिले थे जबकि मनोज सिन्हा महज 188910 ही मत हासिल कर पाये। लिहाजा उन्हें 226777 मतों से सबसे बड़ी हार मिली। इसके बाद 2009 में सिन्हा ने चुनाव नहीं लड़ा वहीं 2014 में एक बार फिर वह जीत हासिल करते हुए लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे।
मनोज चार भाईयों में तीसरे नम्बर पर हैं। उनके सबसे बड़े भाई प्रवीण सिंह की मौत हो चुकी है। जबकि दूसरे नम्बर पर अमिताभ सिन्हा कृषि से जुड़े हैं। तीसरे नम्बर पर मनोज स्वयं हैं, जबकि चौथे नम्बर सुजीत राय भी कृषि से जुड़े हैं।
मनोज सिन्हा की शादी 1 मई 1977 को सुलतानगंज, भागलपुर की नीलम सिन्हा से हुई। उनकी एक बेटी और बेटा है। सियासत में हार-जीत का लम्बा सफर तय करते हुए मनोज सिन्हा ने अपनी खास पहचान बनायी है।
उन्होंने न सिर्फ गाजीपुर के विकास के लिए बेहद काम किया है, बल्कि अपनी कड़ी लगन और मेहनत के कारण वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबियों में भी शुमार हैं। प्रधानमंत्री उनके कामकाज से बेहद प्रभावित हैं। इसके साथ ही पूर्वांचल में मनोज सिन्हा को विकास पुरूष के तौर पर भी देखा जाता है।
सियासी विश्लेषक कहते हैं कि जमीन की राजनीति करने वाले मनोज अगर यूपी के मुख्यमंत्री बनते हैं तो वीर बहादुर सिंह के बाद वह पूर्वांचल के दूसरे ऐसे नेता होंगे, जो इस पद तक पहुंचे। इसलिए उनकी ताजपोशी की सम्भावनाओं के बीच अभी से पूर्वांचल में जश्न का माहौल है।
उनके समर्थक इसकी मनोकामना लेकर सुन्दरकाण्ड से लेकर हवन कर रहे हैं। वहीं क्षेत्र के लोगों को उम्मीद है कि मनोज सिन्हा अगर मुख्यमंत्री बनते हैं तो पूरे प्रदेश के समानान्तर पूर्वांचल का विकास भी सम्भव हो पायेगा।