भोपाल। श्रद्धालुओं के लिए जीवनदायनी नर्मदा नदी में राजनेता अपना भविष्य तराशने की कोशिश कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ‘नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा’ के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं।
दोनों की यात्रा में एक बड़ा अंतर है। मुख्यमंत्री चौहान को जहां सत्ता व संगठन का समर्थन हासिल था, वहीं दिग्विजय सिंह से पार्टी दूरी बनाए हुए हैं। इतना ही नहीं कई बड़े नेताओं ने तो परिक्रमा का हाईकमान के सामने विरोध तक दर्ज कराया था।
मुख्यमंत्री चौहान की सेवा यात्रा लगभग छह माह चली थी, वे बीच-बीच में प्रमुख स्थानों पर पहुंचकर यात्रा में शामिल हो जाया करते थे। यात्रा का शुभारंभ और समापन दोनों ही भव्य था, इन आयोजनों में केंद्र सरकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर तमाम धर्मगुरुओं ने भी हिस्सेदारी की थी। यह यात्रा नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त, प्रवाहमान बनाए रखने के लिए की गई थी।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी पत्नी अमृता सिंह के साथ दश्हरे के दिन ‘नर्मदा परिक्रमा’ की शुरुआत की। वे अपने गुरु शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती से आशीर्वाद लेकर परिक्रमा पर निकले। उनकी यह यात्रा छह माह चलेगी, वे इस दौरान लगभग 3,300 किलोमीटर से ज्यादा चलेंगे। हर रोज वे 15 से 20 किलोमीटर का रास्ता तय कर रहे हैं। सिंह ने अपनी इस यात्रा को आध्यात्मिक व धार्मिक बताया है।
सिंह अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान 100 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेंगे। इस दौरान उनका आम लोगों के साथ अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद भी होगा। वे राज्य के 10 साल मुख्यमंत्री रहे हैं, लिहाजा उनके समर्थक अब भी हैं। वर्ष 2003 में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी 14 साल से प्रदेश में राज कर रही है।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय सिंह की इस यात्रा को लेकर कई बड़े नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि यह यात्रा पार्टी को लाभ कम और नुकसान ज्यादा पहुंचाएगी, क्योंकि भाजपा को वर्ष 1993 से 2003 के सिंह के कार्यकाल की याद दिलाने का भरपूर मौका मिलेगा।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी हाईकमान ने भी सिंह से इस यात्रा को लेकर चर्चा की थी, जिस पर उन्होंने इस यात्रा को धार्मिक व आध्यात्मिक बताया था। इस पर हाईकमान ने न तो सहमति जताई और न ही असहमति। यही कारण है कि सिंह यात्रा के दौरान किसी तरह की राजनीतिक बयानबाजी नहीं कर रहे हैं।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर भी सिंह की परिक्रमा पर सवाल उठा चुके हैं। उनका कहना है कि दिग्विजय सिंह को अपनी यात्रा का उद्देश्य साफ करना चाहिए, उनके पास करने के लिए कुछ है नहीं, इसलिए सन्यासी बनने जा रहे हैं।
कांग्रेस की प्रदेश इकाई के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने बताया कि दिग्विजय सिंह ने इस परिक्रमा के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से अनुमति ली है और छह माह के राजनीतिक अवकाश पर हैं, उनकी यह यात्रा पूरी तरह धार्मिक व आध्यात्मिक है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि राज्य में विधानसभा चुनाव के लगभग एक साल पहले हो रही इस यात्रा के कई मायने हैं, भले ही इसे गैर राजनीतिक बताया जा रहा हो, मगर यह कैसे संभव हो सकता है कि दिग्विजय सिंह जैसा धुर राजनीतिज्ञ छह माह तक गैर राजनीतिक रहे। जब यात्रा खत्म होगी तब विधानसभा चुनाव में महज छह माह बचे होंगे। इस तरह दिग्विजय इस यात्रा के जरिए प्रदेश की राजनीति की नब्ज समझ चुके होंगे और उसके बाद ही अपना दाव खेलेंगे।
दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा पर उठ रहे सवालों का जवाब उनके पुत्र और विधायक जयवर्धन सिंह ने फेसबुक वाल और ट्विटर के जरिए दिया। उसमें उन्होंने लिखा कि 3,300 किलोमीटर की पैदल नर्मदा परिक्रमा किसी तप से कम नहीं है और इस परिक्रमा पर राजनीतिक कीचड़ उछालने से बड़ा कोई अधार्मिक कार्य हो ही नहीं सकता है।
उन्होंने आगे लिखा है कि मंदिर जाने की बात पर बस यही कहना चाहता हूं कि हम लोग जूतों के साथ-साथ राजनीति को भी मंदिर के बाहर ही रखते हैं।
दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा भले ही गैर राजनीतिक हो, मगर राज्य की राजनीति को तो गर्मा ही दिया है। कांग्रेस के बड़े नेता जहां इस यात्रा से किनारा करते नजर आ रहे हैं, वहीं भाजपा की पूरी नजर इस यात्रा पर है।