मथुरा। मथुरा हिंसा के मुख्य सूत्रधार रामवृक्ष यादव पर उत्तर प्रदेश पुलिस रासुका के तहत कार्रवाई करेगी। इस बात के संकेत उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक (डीजीपी) जावेद अहमद ने शुक्रवार को घटनास्थल का जायजा लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए दिए।
उन्होंने कहा कि मथुरा में अतिक्रमण स्थल पर पुलिस केवल निरीक्षण करने के लिए गई थी और इसी दौरान उन पर अचानक हमला कर दिया गया। इस घटना में अभी तक पुलिस अधीक्षक (एसपी) और थानाध्यक्ष (एसओ) सहित 22 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा कई लोग बुरी तरह से घायल हैं।
डीजीपी जावेद अहमद ने बताया कि इस हिंसात्मक घटना के मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव के खिलाफ रासुका की कार्रवाई की जाएगी। अभी तक कुल 124 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है। सभी आरोपियों पर रासुका के तहत कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने बताया कि मथुरा में बहुत ही बेरहमी से पुलिसकर्मियों को मारा-पीटा गया। झोपड़ियों में गैस सिलेंडर और बम तक रखे गए थे। घटनास्थल से अभी तक 47 कट्टे, 06 राइफलें, 178 जिंदा कारतूस सहित कई बाइक्स भी बरामद की गई है।
डीजीपी ने बताया कि उपद्रवियों ने पुलिस पर देसी बम फेंके। 23 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हैं और एसपी व एसएचओ समेत अब तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है। उपद्रवियों में से 22 लोगों की मौत हुई है। अतिक्रमण वाले जवाहरबाग को पूरी तरह से खाली करा लिया गया है।
गुरुवार को पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक सरकारी जमीन पर से अवैध कब्जा हटाने गई थी। इसी दौरान कथित सत्याग्रहियों ने पुलिस टीम पर अंधाधुंध फायरिंग की और हथगोला तथा मिर्ची बम फेंका।
इसमें थाना अध्यक्ष संतोष कुमार यादव की मौत हो गई। एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को गंभीर हालत में आगरा ले जाया गया, जहां बाद में उनकी भी मौत हो गई। इसके साथ ही कई पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हो गए।
जवाहर बाग में कब्जे को लेकर हिंसा पर उतारू हुए लोगों की यहां समानांतर सरकार थी। इन्होंने परिसर पर कब्जा करने के साथ ही प्रशासन को हैरान परेशान कर रखा था। खुद को सुभाषचंद्र बोस का अनुयायी कहने वाले कथित सत्याग्रहियों का इतना खौफ था कि पुलिस, पीएसी ही नहीं सेना तक इनके साम्राज्य को चुनौती देने से डरती थी।
इससे पहले भी कई बार सत्याग्रहियों ने पुलिस को टीम को बंधक बनाकर सीधे पुलिस को चुनौती तक दी थी। कथित सत्याग्रहियों की अजीबो-गरीब मांगे थीं, जो कभी पूरा न हो सकने वाली थी। इन मांगों को बाकायदा दीवारों पर लिख रखा गया था।