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मथुरा। मथुरा के जवाहरबाग काण्ड में बृहस्पतिवार चले आॅपरेशन के दौरान दो पुलिस अधिकारियों की मौत के बाद पुलिस की भी जवाबी फायरिंग हुई।
लोगों में शुक्रवार को भी चर्चा थी कि उपद्रवियों का सरगना और आताताई रामवृक्ष यादव भी मारा गया है। उसके साथी चंदन बोस की भी मरने की खबर है। यहां तक कि लोग यह भी कह रहे हैं कि मरने वाले इन उपद्रवियों की संख्या सौ के लगभग हो सकती है। शाम को उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने मारा गया मथुरा का कंस टिवट करके इस बात की पुष्टि कर दी की रामवृक्ष यादव मारा गया है।
हालांकि इसकी कोई पुष्टि पुलिस-प्रशासन के आला अधिकारियों से लेकर स्थानीय स्तर तक के अधिकारियों ने नहीं की लेकिन पूरे दिन इस प्रकार की चर्चाए जरूर होती रहीं। वहीं चर्चा थी कि इनके सरगना रामवृक्ष यादव को भी मार दिया गया है।
चर्चा थी कि झोंपड़ियों में लगी आग के दौरान कुछ लोग उसी में जल गए वहीं पेड़ों में आग के चलते वहां से फायरिंग करने वाले लोग भी जलकर मर गए जिनके शव भी बरामद नहीं हुए हैं। क्योंकि इन उपद्रवियों का कोई रिकार्ड नहीं था इसीलिए कुछ नहीं कहा जा सकता।
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‘छोटी’ सी भूल बन गई बड़ी गलती
जवाहर बाग में बृहस्पतिवार हुई घटना तत्कालीन पुलिस प्रशासन की छोटी सी भूल थी, जो बाद में नासूर बनकर कल सामने आई। वर्ष 2014 में जब जयगुरूदेव मेले में गाजीपुर का रहने वाला उपद्रवियों का सरगना रामवृक्ष अपने लोगों के साथ आया था।
पहले जयगुरूदेव की तमाम भूमि और संपत्ति पर कब्जा करने का उसका इरादा था लेकिन सत्ता में बैठे प्रदेश सरकार के बड़े मंत्री का जयगुरूदेव आश्रम पर वरदहस्त होने के चलते उसे वहां से भगा दिया गया था।
उन्हीं के इशारे पर स्थानीय पुलिस प्रशासन ने कथित सत्याग्रहियों को उनके सत्याग्रह के आवेदन के चलते दो दिन जवाहर बाग में अपना कार्यक्रम करने की इजाजत दी थी, यह इजाजत पुलिस प्रशासन के लिए भारी पड़ गई।
न तो पुलिस प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया और न मथुरा के लोगों ने जिसका गुरुवार को परिणाम सामने आया। अगर उसी समय तत्कालीन पुलिस प्रशासन इसे गंभीरता से लेकर जवाहर बाग में जमे इन लोगों को हटा देता तो आज इतनी बड़ी घटना नहीं होती।
गरीब और निरीह समझकर पुलिस प्रशासन ने इन्हें जवाहरबाग में रूकने का मौका दे दिया। फिर तो यह धूर्त नेता इन लोगों को डरा-धमका कर अपनी सत्ता चलाने लगा। इस फौज में तमाम ऐसे लोग भी शामिल थे, जिन्हें जबरन जबाहर बाग में रोके रखा था।
क्योंकि दस रोज पूर्व जब पुलिस ने चार लोगों को पकड़ा तो असलियत सामने आई। उन लोगों ने बताया कि हमें बंधक बनाकर रामवृक्ष यादव, चन्दन बोस ने जबरन रख रखा है। जबकि हम यहां रहना नहीं चाहते। यानी रामवृक्ष पूरी तरह गुंडई पर उतर आया था।
जयगुरूदेव आश्रम में जगह न मिलने के बाद उसने जवाहर बाग को ही घेरने का मन बना लिया था और फिर तो वह पुलिस प्रशासन और सरकारी कर्मचारियों और जनमानस सभी का उत्पीड़न करने को उतारू हो गया।
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5 हजार लोगों पर राज करता था रामवृक्ष
उपद्रव में शामिल तीन हजार लोगों का नेता रामवृक्ष यादव गाजीपुर के मरदह थाने का मूल निवासी है। वह बाबा जय गुरुदेव का शिष्य रह चुका है। वह जवाहरबाग में 270 एकड़ जमीन पर कब्जा कर समानांतर सरकार चलाने लगा था।
रामवृक्ष यादव के खिलाफ पहले से हत्या की कोशिश, जमीन कब्जा करने सहित आठ मुकदमे चल रहे हैं। जयगुरुदेव की विरासत के लिए समर्थन नहीं मिलने पर उसने अलग गुट बना लिया था। शहर में चर्चाएं हैं कि जयगुरुदेव के निधन के बाद विरासत के लिए तीन गुट पंकज यादव, उमाकांत तिवारी और रामवृक्ष यादव में टकराव हुआ।
इस बीच पंकज यादव को उत्तराधिकारी बनाया गया। 17 जून 2011 को तीसरे गुट रामवृक्ष यादव ने जयगुरुदेव आश्रम पर हमला कर दिया, लेकिन उसे वापस लौटना पड़ा। जयगुरुदेव के डेथ सर्टिफिकेट के लिए रामवृक्ष यादव लगातार धरना प्रदर्शन करता रहा।
रामवृक्ष यादव ने 2014 में जिला प्रशासन से दो दिन के धरना की परमिशन मांगी। इसके बाद तकरीबन 5 हजार समर्थकों के साथ उसने जवाहरबाग में कब्जे की शुरुआत की। शुरु में यहां पर झोपड़ियां बनाईं, इसके बाद धीरे-धीरे 270 एकड़ में अपनी सत्ता चलाने लगा।
वह इतना ताकतवर हो गया कि प्रशासन भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था। बताया जा रहा है कि जवाहरबाग में शूटर और अपराधी भी रहने लगे थे। यहां हैंड ग्रेनेड, हथगोला, रायफल, कट्टे और कारतूस छिपाकर जुटाए गए थे।
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सागर से दिल्ली के लिए निकले थे ‘कथित सत्याग्रही’
पुलिस पर हमले में भूमिका एक गुट की है जिससे जुड़े लोग खुद को सत्याग्रही बताने का दावा करते हैं। गुट का लीडर रामवृक्ष यादव है। बताया जा रहा है कि वह घायल है और फरार है।
उसने एक रुपए लीटर में पेट्रोल-डीजल देने, 12 रुपए तोला सोना और गोल्ड करंसी चलाने जैसी अजीब मांगें रखते हुए मध्य प्रदेश के सागर से 2014 में अभियान शुरू किया। इससे जुड़े लोगों को ‘सत्याग्रही’ नाम दे दिया।
ये कथित सत्याग्रही दिल्ली जाकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने वाले थे लेकिन करीब पांच हजार लोग मथुरा के जवाहर बाग में ढाई साल पूर्व जम गए। दिल्ली न जाकर मथुरा में जमे इन कथित सत्याग्रहियों ने सरकारी जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया।
वहां आम, आंवला, बेर के बाग उजाड़ दिए। सरकारी बाग में 18 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाया। उन्होंने सरकारी स्टोर पर कब्जा कर लिया। तीन लाख रुपए की बिजली का इस्तेमाल कर लिया और कई बोरिंग पर कब्जा जमा लिया।
नालियां और वाॅकिंग ट्रैक उखाड़कर वहां टाॅयलेट बना लिए थे और रहने का इंतजाम भी कर लिया था। बोरिंग से पानी लेने आने वाले आसपास के लोगों से ये मारपीट करते थे। पास ही कलेक्ट्रेट और आसपास के दफ्तरों में आने वाले लोगों से भी ये मारपीट करते थे। लोगों से जबर्दस्ती जय हिंद-जय सुभाष का नारा लगवाते थे। जो ठीक से नारा नहीं लगाता था, उसके साथ मारपीट भी करते थे।
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आखिर बिना ताकत क्यों भेजा गया पुलिसबल
जवाहर बाग में बृहस्पतिवार हुई घटना के पीछे बड़े स्तर पर पुलिस के अधिकारियों और स्थानीय अधिकारियों की कमी नजर आई। आईजी डीआईजी लेविल से ड्रोन कैमरे और तमाम गुप्त जानकारियां का कोई मतलब निकल कर नहीं आया।
जबकि पिछले 15 दिन से स्थानीय पुलिस रिहर्सल कर रही थी लेकिन उनकी समझमें यह नहीं आया कि आखिर अंदर कितना गोला बारूद और हथियार है। उपद्रवियों के पास गैस के सिलेंडर देशी बम और आग लगाने के तमाम साधन मौजूद थे।
हालांकि अब पुलिस के अधिकारी कह रहे है कि वे ड्रोन कैमरे और दूसरे हवाई साधनों से जो जानकारी कर रहे थे, वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए थे। यहां सवाल उठता है कि यदि ऐसा था तो कार्यवाही तरीके से की जाती। उपद्रवियों से बातचीत करने का फैसला आखिर किसने लिया और मामले को इतने हल्के स्तर पर कैसे लिया गया।
यह जानते हुए कि रामवृक्ष और कथित सत्याग्रहियों के तेबर अक्रामक है। बृहस्पतिवार की ही तो बात है कि रामवृक्ष लाउड स्पीकर लगाकर डीएम और पुलिस के अधिकारियों को गालियां दे रहा था। पूर्व में भी रिहर्सल के दौरान उसका अपनी टीम के साथ शक्ति प्रदर्शन को पुलिस के आलाधिकारियों ने हल्के में क्यों लिया।
बातचीत को जाना भी था तो पूरी ताकत के साथ हथियारों से लैस होकर पुलिस टीम भेजी जानी थी, इसके पीछे किसकी गलती थी, यह जांच का विषय है। हालांकि पूरे मामले की आगरा के कमिश्नर को जांच सौंप दी गई है।
पूरी टीम जांच करेगी लेकिन इस सच को भी इंकार नहीं किया जा सकता कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों में आपसी तालमेल की कमी थी। जिसका नतीजा दो होनहार अधिकारियों की शहादत के रूप में सामने आया।