उत्तर प्रदेश के मथुरा में दो जून को जवाहर बाग खाली कराने के दौरान वहां भड़ी हिंसा के मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव की मौत के पुलिस के दावे को खारिज करते हुए एक स्थानीय अदालत द्वारा उसका डीएनए टेस्ट कराने और किसी निकटतम रिश्तेदार से उसका मिलान कराने का आदेश दिया गया है।
अदालत ने पुलिस की ओर से पेश की गई पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तथा शिनाख्त कार्यवाही को यह कहकर नकार दिया है कि केवल इन तथ्यों के आधार पर हम यह नहीं मान सकते कि उक्त घटना में मारा गया व्यक्ति रामवृक्ष ही था।
अदालत द्वारा पुलिस को रामवृक्ष बताए जा रहे व्यक्ति के डीएनए परीक्षण हेतु सुरक्षित रखे गए अवशेषों की नज़दीकी रिश्तेदार के डीएनए सैम्पल से फॉरेंसिक लैब के माध्यम से मिलान कराने के आदेश दिए हैं तथा मुख्य चिकित्साधिकारी को इस मामले में पुलिस की सहायता करने का भी निर्देश दिया गया है।
वैसे अदालत का यह आदेश निश्चित तौर पर उन आशंकाओं की पुष्टि करता है जिसके तहत यह कहा जा रहा है कि हो सकता है कि रामवृक्ष की मौत की अफवाह सोची-समझी साजिश के तहत फैलाई गई हो तथा इसी साजिश के तहत उसके करीबी उसकी मौत की पुष्टि कर रहे हों।
रामवृक्ष की मौत की अफवाह फैलाए जाने के पीछे उसके गुनाहों को रफा-दफा करने का उद्देश्य भी हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि रामवृक्ष के मामले में पूरी सजगतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
रामवृक्ष ने कतिपय राजनेताओं के संरक्षण में मथुरा में जो आपराधिक साम्राज्य खड़ा किया था तथा उसकी अवांक्षनीय गतिविधियों को लेकर राज्य सरकार को लगातार आगाह किए जाने के बावजूद उस पर अंकुश न लगाया जाना इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि भविष्य में रामवृक्ष और उसके गिरोह का तांडव भविष्य में सामने आना ही था।
यह तो संयोग था कि रामवृक्ष एवं उसके फैलते सामाज्य का मुद्दा अदालत के संज्ञान में लाया गया तथा अदालती आदेश के बाद पुलिस जवाहर मैदान को उक्त अपराधियों के कब्जे से मुक्त कराने पहुंची।
सरकार ने संबंधित एजेंसियों द्वारा बार-बार आगाह किये जाने के दौरान ही अगर रामवृक्ष का फन कुचलने की पहल की होती तो शायद एसपी सहित पुलिस अधिकारियों की उक्त हत्या का दिन ही नहीं आता तथा पर्याप्त कानूनी अधिकार प्राप्त पुलिस द्वारा रामवृक्ष और उसके गुर्गों पर कानून की बेडिय़ां आसानी से डाल दी गई होतीं।
लेकिन सरकार के संवेदनहीन एवं गैर जिम्मेदाराना रवैये ने यूपी व मथुरा के इतिहास में पुलिस अधिकारियों- कर्मचारियों की हत्या का उक्त स्याह अध्याय जोड़ दिया। रामवृक्ष एवं उसके गिरोह की मजबूती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस के सर्च आपरेशन के दौरान जवाहर बाग में मेड इन यूएसए का राकेट लांचर मिला है, जिसे यहां कोलकाता के किसी व्यक्ति द्वारा अमरीका से लाए जाने की बात कही जा रही है तो उक्त आपराधिक गिरोह की नक्सलियों के साथ गहरी सांठ-गांठ की आशंका भी प्रबल है।
पुलिस के आपरेशन जवाहर बाग के बाद आए दिन वहां से जुड़े नित नये खुलासे होते गए। वहां रामवृक्ष के ठिकानों में कई आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद हुईं तो वहां इस बात की भी पुष्टि हुई कि रामवृक्ष द्वारा खुद को अपराधों का पर्याय साबित करने की पूरी तैयारी की गई थी। यह सभी पहलू इस बात को सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि रामवृक्ष ने दो-तीन साल में यहां अपना मजबूत नेटवर्क तैयार कर लिया था, जिसकी मदद से वह समाज व कानून को खुली चुनौती देने की तैयारी में था।
मथुरा हिंसा के बाद यहां से जुड़े चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। यहां समानांतर सरकार चलाने वाला रामवृक्ष ख़ुद को सम्राट बताता था। जवाहर बाग़ में इस तरह समानांतर सत्ता का संचालन किया जा रहा था तो सरकार को इस बात की जानकारी न रही हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता।
इस अराजक माहौल से आसपास के लोग भी परेशान थे। इसके बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा उसके साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की दिशा में समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की गई। जवाहर बाग से प्राप्त देसी और पेट्रोल बम देखकर साफ हो जाता है कि रामवृक्ष द्वारा प्रशासन से निपटने की तैयारी किस कदर की गई थी। रामवृक्ष अपने लोगों को जंग लडऩे के लिए गुरिल्ला ट्रेनिंग देता था।
हथियारों के साथ पेड़ पर चढऩे और ऊपर से हमला करने के लिए बड़े पैमाने पर लड़ाके तैयार किए थे। हथियार और गोला-बारूद जमीन के अंदर भी छुपाया गया था। हमला करने के लिए करीब एक हजार एलपीजी सिलिंडर रखे गए थे।
पुलिस से बचने के लिए उनमें विस्फोट किया गया। ऐसे में रामवृक्ष की मौत हो जाने की जो बात सामने आ रही है वह साजिशन फैलाई गई अफवाह भी हो सकती है। ऐसे में पुलिस को पूरी जांच-पड़ताल करनी चाहिए।
सुधांशु द्विवेदी